रेल बजट 2016: क्या रेल मंत्री इन मुद्दों पर खरा उतर पाएंगे?

अगर देश की जीवनधारा मानी जाने वाली भारतीय रेल के साथ तुलना की जाए और माल ढुलाई व यात्री परिवहन को पैमाने के रूप में लिया जाए तो दुनिया का कोई भी उद्यम विशालता के पैमाने पर इसके बराबर खड़ा नहीं होगा.
लगभग डेढ़ दशक पहले मुंबई और थाणे के बीच पहली यात्री सेवा प्रारंभ करने के साथ अस्तित्व में आया यह संगठन समय के साथ विकसित और स्थापित होता गया है.
इस अवधि के दौरान इसने पूर्ण रूप से सरकारी नियंत्रण वाले एक विभाग का रूप लेने से पहले निजी पूंजी और सरकारी खर्च के संयोजन का भरपूर इस्तेमाल किया.
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कभी प्रबंधन के अत्याधुनिक तरीकों से निजी-रेलवे के रूप से संचालित होते हुए इसने नौकरशाही की शैली को अपनाया जो स्पष्ट रूप से एक नाकाम रणनीति रही. इसकी वजह से अब इसे संबालना थोड़ा मुश्किल होता जा रहा है.
सामान्य तौर पर बजट को हिसाब-किताब का लेखा-जोखा, वेतन, ऊर्जा और अन्य खर्चों की मदद में संसाधनों को आवंटन के माध्यम के रूप में देखा जाता है.
मानव श्रम पर होने वाला खर्चा हमेशा से ही रेलवे बजट की लागत पर हावी होता आया है
भारतीय रेलवे का प्रत्येक विभाग अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिये बजट में से अपने हिस्से को लेने के लिए तत्पर रहता है फिर चाहे वह संगठनात्मक हित में हो या न हो.
रेलवे का एक पूर्व कर्मचारी होने के साथ एक पर्यवेक्षक होने के चलते मैं यह सुझाव देना चाहूंगा कि आगामी रेल बजट में सामने आने वाली निम्नलिखित चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए बजट का आवंटन होना चाहिए.
मार्केटिंग के पेशेवर प्रयासों का अभाव
वास्तव में भारतीय रेलवे के पास उपभोक्ताओं के सामने पेश करने के लिए, माल ढुलाई सेवा और यात्री सेवा के रूप में सिर्फ दो ही उत्पाद या सुविधाएं हैं.
मौजूदा समय की जरूरतों के आधार पर इन सेवाओं के विभाजन और एक स्वीकार्य स्तर तक ऐसी सेवाओं का वितरण करना एक मुख्य चुनौती है.
आपने कभी टिकट खरीदने के लिए कतारों में लगे हुए लोगों की ओर देखा है. मैं आपका ध्यान मुख्य रूप से उन मुश्किलों की तरफ दिलावा चाहता हूं जो आपको पैसा देने को तत्पर लोगों को उठानी पड़ रही हैं. मांग के बारे में ठीक तरीके से पता लगाने के लिए एक बेहतर पेशेवर सर्वेक्षण समय की बहुत बड़ी आवश्यकता है.
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मंत्रालय को राष्ट्रीय स्तर पर योग्य सलाहकारों को नियुक्त करने के लिए एक पूर्व-योग्यता आधारित प्रक्रिया को अपनाना चाहिए. इस काम के लिए सिर्फ ऐसे काबिल विशेषज्ञों का चयन किया जाना चाहिए जो पूर्व में प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ ऐसा ही काम करने का अनुभव रखते हों.
बजट में इस पहल के लिए कम से कम 100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया जाना चाहिए. अगर संभव हो तो संभावनाओं को खोजने और ऐसी सर्वेक्षा करने में माहिर एजेंसियों को खोजने के लिये इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट के मार्केटिंग प्रोफेसरों की सेवाएं भी लेनी चाहिए.
रेलवे ने हाल ही में 20 वर्ष पूर्व प्रारंभ की गई दिल्ली-कानपुर मार्ग की एक परियोजना को पूरा करने में सफलता पाई है
यह कवायद वर्तमान में उपलब्ध करवाई जा रही विशिष्ट सेवाओं की कमियों को सामने लाने के अलावा ऐसी सेवाओं को भी चिन्हित करने में कामयाब रहेगी जिनकी अब उपभोक्ताओं या कहे यात्रियों के बीच मांग है.
वर्तमान तंत्र की ढुलाई क्षमता को विकसित करना
बीते कई वर्षों से रेलवे बजट रेल बजट का निर्माण संसाधनों के लिए लामबंदी करने वाले विभिन्न विभागों के पुराने रुझानों को ध्यान में रखकर किया जाता रहा है.
अब सारा ध्यान सिर्फ इस लक्ष्य की ओर होना चाहिए कि किस प्रकार कम से कम लागत में इसकी क्षमता में बढ़ोतरी की जा सकती है. रेलवे ने हाल ही में 20 वर्ष पूर्व प्रारंभ की गई दिल्ली-कानपुर मार्ग की एक परियोजना को पूरा करने में सफलता पाई है जिसमें कई बेहतर स्वतः सिग्नल प्रणाली की सहायता से क्षमता में सुधार किया गया है.
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दुर्भाग्य से रेलवे का सिग्नलिंग विभाग एक ऐसा पिछड़ा हुआ विभाग है जो दूसरे विभागों की तर्ज पर अपने लिए बेहतर पूंजीगत संसाधनों को जुटाने में अक्षम ही रहा है जबकि दूसरे विभाग बड़ी चतुराई से ऐसा सफलतापूर्वक करते आए हैं.
मंत्री को सामने आकर यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि वह कौन सा विभाग है जो खर्च किए गए पैसे की पूरी कीमत चुका रहा है और दिल खोलकर बजट में उस विभाग को धन का आवंटन करना चाहिए.
यात्री गाड़ियों और रेलवे स्टेशनों पर बेहतर सुविधाएं
आज के तकनीकी युग में बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक के मध्य इंटरनेट एक रोजमर्रा की आवश्यकता बन गया है. व्यवसाय के संबंध में यात्रा कर रहे यात्रियों के लिए उच्च गति वाली नेट सेवाएं समय की एक बड़ी आवश्यकता हैं.
लंबी दूरी का बसों में विशेषरूप से देश के दक्षिणी राज्यों में, इस प्रकार की सेवा एक सामान्य बात है. इस बात का कोई तकनीकी कारण नहीं है कि रेलवे ऐसा क्यों नहीं कर सकता.
व्यवसाय के संबंध में यात्रा कर रहे यात्रियों के लिए उच्च गति वाली नेट सेवाएं समय की एक बड़ी आवश्यकता हैं
लगभग हर यात्री के पास मोबाइल फोन है. ऐसे में स्टेशन पर ट्रेन के पहुंचने से संबंधित सूचना देने का एसएमएस एलर्ट प्रदान करने की सेवा भी प्रदान की जा सकती है. यह एक ऐसी सेवा है जो विशेषकर बुजुर्गों के लिए बेहद आवश्यक है क्योंकि ट्रेन के स्टेशनों पर रुकने का समय बेहद कम होता है.
इस बजट में संसाधनों का आवंटन इस प्रकार से होना चाहिए ताकि रेलवे सभी यात्री गाड़ियों में इस सुविधा को उपलब्ध करवा सके न कि ऐसा हो कि पहले चरणबद्ध कार्यक्रम में तहत इसे पहले शताब्दी और राजधानी ट्रेनों में शुरू किया जाए.
कर्मचारियों का बेहतर प्रबंधन
मानव श्रम पर होने वाला खर्चा हमेशा से ही बजट की लागत पर हावी होता आया है, हो रहा है और भविष्य में भी हावी ही रहेगा. रेलवे 1990 तक प्रतिवर्ष अपने कर्मचारियों की संख्या में बढ़ोतरी करता आया था.
इसके बाद यह साफ हुआ कि अगर रेलवे ने इस पर काबू नहीं पाया तो कर्मचारियों की बढ़ती हुई लागत रेलवे की माली हालत को बिगाड़कर रख देगी.
इसके बाद एक प्रमुख कवायद की गई. पहली बार कर्मचारियों के कौशल का प्रोफाइल तैयार किया गया और कर्मचारियों के मध्य उत्पादकता की प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया गया.
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इस कवायद के फलस्वरूप लागत को नियंत्रित करते हुए कौशल में सुधार करने की रणनीति को विकसित करने के लिए बोर्ड में कार्यकारी निदेशक के एक पद का सृजन किया गया (मुझे इस पद को संभालने वाले पहले व्यक्ति होने का गौरव प्राप्त हुआ).
इस अध्ययन के नतीजे, जिनके आधार पर भविष्य की रणनीतियों का निर्माण हुआ, शीर्ष प्रबंधन के लिए बेहद चैंकाने वाले थे.
अधिकतर कुशल श्रमिक बिना किसी भी औपचारिक कौशल प्रशिक्षण के पाए गए और उनकी शैक्षिक योग्यता भी छठी कक्षा से नीचे के दर्जे की पाई गई.
पिछले 25 सालों में रेलवे अपनी माल ढुलाई की क्षमता को करीब दोगुना करने में सफल रहा
सिग्नलिंग और दूरसंचार जैसे विभागों में भी स्थिति इससे इतर नहीं पाई गई जहां किए जाने वाले कार्य के स्वाभाव को देखते हुए तकनीकी रूप से अधिक कुशल लोगों के होने की उम्मीद की जाती थी.
इसके अलावा प्रतिवर्ष करीब 30 हजार कर्मचारी सेवानिवृत भी हो रहे थे.
क्षेत्रीय रेलवे से परामर्श किया गया और कर्मचारियों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोत्तरी के खतरों के बारे में जानकारी देते हुए यूनियनों को भी विश्वास में लिया गया. प्रत्येक विभाग में विभिन्न कार्यशालाओं का आयोजन किया गया.
कर्मचारियों की संख्या में कमी लाने के विचारों को सामने लाने में सफल रहीं जिसके फलस्वरूप बजट में कमी करने को लेकर कुछ संसाधनों को चिन्हित करने में सफलता मिली.
अंत में इन्हें विचारों की संदर्भ पुस्तिकाओं के रूप में संकलित किया गया और रेलवे को नए कर्मचारियों को नियुक्त करने की एक नई प्रक्रिया अपनाने को कहा गया. इसमें प्रतिवर्ष सेवानिवृत होने वाले कर्मचारियों की संख्या का एक तिहाई नियुक्त करने का प्रावधान था.
वर्ष 1990 में रेलवे में कर्मचारियों की संख्या 16 लाख 52 हजार थी जिसे घटाकर 2006 में 14 लाख से नीचे लाने में सफलता मिली. इस दौरान रेलवे अपनी माल ढुलाई की क्षमता को करीब दोगुना करने में सफल रहा और यात्री यातायात 1.6 गुणा अधिक बढ़ गया.
वर्तमान में रेलवे में काम करने वाले वाले कर्मचारियों की संख्या 2006 की संख्या के बराबर ही है
और यह सब 2.5 लाख कम कर्मचारियों के साथ हुआ. इस दौरान संचालन अनुपात सुधरकर 91.97 प्रतिशत से 78.68 प्रतिशत तक पहुंच गया.
बीते दो दशकों में विद्युतीकरण, गेज परिवर्तन और उच्च क्षमता वाले वैगनों के चलते ढुलाई की क्षमता में बेहद सुधार हुआ है.
आने वाला दौर बेहतर सिग्नल प्रणाली का होना चाहिए जो अन्य तमाम प्रयासों की ही तरह कुछ विभागों में कर्मचारियों की संख्या में कटौती करते हुए बड़े पैमाने पर उच्च अंत प्रौद्योगिकी प्रबंधन को बढ़ावा देने का काम करेगी.
वर्तमान में रेलवे में काम करने वाले वाले कर्मचारियों की संख्या 2006 की संख्या के बराबर ही है लेकिन उन्हें दिये जाने वाला वेतन बढ़कर 76 हजार करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है. वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद इसमें और अधिक वृद्धि ही देखने को मिलेगी.
रेलवे बजट को इस आवश्यकता के तात्कालिक महत्व को समझते हुए एक उपयुक्त रणनीति विकसित करने के लिए संसाधनों का आवंटन करना चाहिए.