सातवांं वेतन आयोग: 30 फीसदी वेतन वृद्धि का बोझ देश सहन कर पाएगा?

केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों को 7वें वेतन आयोग का लाभ संभवत: अगस्त से देने जा रही है. यह वेतन आयोग एक जनवरी 2016 यानी बैकडेट से लागू होगा जिसका एरियर दिया जाएगा. वैसे तो वेतन आयोग ने 24 फीसदी वेतन वृद्धि की सिफारिश की है, लेकिन सरकार वेतन में 30 फीसदी की वृद्धि का प्रस्ताव कर सकती है.
आयोग ने न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये और अधिकतम 2,50,000 रुपये करने का सुझाव दिया है. 30 फीसदी की वृद्धि पर यह क्रमश: 23,500 और 3,25,000 रुपये हो जाएगा.
क्या सरकार यह खर्च वहन कर सकेगी
अगर 24 फीसदी की वेतन वृद्धि होती है तो सरकार पर हर साल 1.02 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. यदि यह वृद्धि 30 फीसदी होती है तो सरकार को 1.29 लाख करोड़ रुपये का कोष बाहर निकालना होगा. वैसे वर्ष 2016-17 के बजट में सरकार ने 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के लिए 70,000 करोड़ रुपये का आवंटन कर रखा है.
यानी कि वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू करने के लिए सरकार को राजस्व के अतिरिक्त स्रोत जुटाने होंगे. मानसूून अच्छा रहता है जैसा कि पूर्वानुमानों में बताया गया है तो सरकार को संशोधित वेतन भुगतान में कोई आर्थिक दिक्कत नहीं आने वाली है. इसकी वजह यह है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती पर निर्भर उद्योगों की आमदनी बढ़ जाएगी.
इस स्थिति में सरकार को अपने 47 लाख कर्मचारियों के लिए वेतन और एरियर का भुगतान करना आसान रहेगा. इससे अर्थव्यवस्था को भी प्रोत्साहन मिलेगा. वहीं दूसरी ओर राज्य सरकारों की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं है कि वे संशोधित वेतनमान दे सकें.
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केंद्र तो जीएसटी लागू होने के इंजतार में है जिसके लिए तारीख 01 अप्रैल 2017 रखी गई है. जीएसटी लागू होने से तो राज्यों का राजस्व कम हो जाएगा. उन्हें वेतन बढ़ाने के लिए धन जुटाने में परेशानी आएगी.
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
जहां तक उद्योगों का सवाल है तो सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ने का अर्थ है आटोमोबाइल और उपभोक्ता सामान के निर्माण से जुड़ी कंपनियों का व्यापार बढ़ाना. मारुति सुजुकी जो देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी है. उसने 2015-16 में सरकारी कर्मचारियों को 13 लाख वाहन बेचे थे. यह कुल वाहन बिक्री का 16 फीसदी हिस्सा था.
कंपनी इस उम्मीद में है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन में 24 फीसदी की वृद्धि होने से सरकारी कर्मचारियों को बेचे जाने वाले वाहनों में काफी वृद्धि होगी. यह बिक्री कुल बिक्री के मुकाबले 18 फीसदी तक बढ़ जाएगी. यदि यह वृद्धि 30 फीसदी तक की होती है तो फिर कंपनी के लिए सोने में सुहागा ही है. कहना न होगा कि 30 फीसदी वृद्धि होने पर न सिर्फ आटोमोबाइल इंडस्ट्री बल्कि मंदी की मार झेल रहे रियल इस्टेट सेक्टर की भी चांदी हो जाएगी.
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साल 2015 में भारत के 8 बड़े शहरों में 4 फीसदी से भी कम लोगों ने घर खरीदे थे. साल के अंत तक इन शहरों में सात लाख घर बिना बिके रह गए. यह बैकलॉग भरने में दो-तीन साल लगेगा. अनुमान है कि इस दौरान कोई नए घर नहीं बनाए जाएंगे. सरकारी कर्मचारियों के हाथ में ज्यादा पैसा आने से अनुमान है कि वे घर खरीदेंगे.
मुद्रा स्फीति पर प्रभाव
जब कर्मचारियों के हाथ में ज्यादा धन आएगा तो उनमें खर्च करने की क्षमता बढ़ेगी. पहले से ही खाद्य पदार्थों और तेल के दामों से महंगाई आसमान छू रही है. वैसे इस समय हालात भयावह नहीं हैं. लेकिन यदि तेल की कीमतें अगस्त-सितंबर तक 50 डॉलर प्रति बैरल हो जाती हैं तो सरकारी कर्मचारियों के पास नगदी होने से खर्च का दबाव बढ़ जाएगा.
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रिजर्व बैंक को भी साल के अंत तक बैंक दरों में कटौती को टालना पड़ जाएगा. साफ तौर पर यही कहा जा सकता है कि सरकार को वेतन वृद्धि के पहले सभी मुद्दों पर विचार कर लेना आवश्यक होगा.
First published: 19 June 2016, 21:55 IST