क्या माल्या उतने 'दिवालिया' हैं कि बैंकों का कर्ज न चुका सकें?

- किंगफिशर एयरलाइंस को छोड़कर बतौर बिजनेसमैन माल्या एक सफल कारोबारी हैं. ऐसे में उनके लिए कर्ज की रकम से ज्यादा महत्वपूर्ण उनकी साख का बने रहना है. यूनाइटेड स्पिरिट्स में हुई अनियमितताओं की वजह से जिस तरीके से माल्या को कंपनी के बोर्ड से बाहर होना पड़ा, उससे उनकी साख को पहले ही झटका लग चुका है.
- माल्या दो बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों सनोफी (फ्रेंच दवा कंपनी) और जर्मनी की केमिकल कंपनी बेयर की भारतीय ईकाई में चेयरमैन हैं. कई बैंकों की तरफ से विलफुल डिफॉल्टर घोषित किए जाने के बाद भी इन कंपनियों ने अभी तक माल्या को अपने बोर्ड से बाहर नहीं निकाला है.
चेक बाउंस के मामले में हैदराबाद की अदालत ने दिग्गज शराब कारोबारी विजय माल्या के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया है. मामला जीएमआर हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड को दिए गए 50 लाख रुपये के चेक का है.
फिलहाल विजय माल्या लंदन में कहीं हैं और यह बात साफ हो चुकी है कि वह निकट भविष्य में भारत नहीं लौटने वाले. माल्या का यह कहना कि फिलहाल उनके 'भारत लौटने का सही समय नहीं है'. इससे साफ है कि वह अब भारत नहीं लौटने वाले क्योंकि आने वाला समय उनके लिए कहीं से भी ठीक नहीं होने जा रहा.
सदन में सरकार के बयान और विलफुल डिफॉल्टर (जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वाला व्यक्ति या कंपनी) के खिलाफ सेबी जैसी संस्था के फैसले को देखकर कम से कम इसकी उम्मीद की जा सकती है.
सीबीआई सरकारी बैंकों के करीब 7,000 करोड़ रुपये में से 900 करोड़ रुपये के कर्ज की जांच कर रही है
सीबीआई ने बंद हो चुकी किंगफिशर एयरलाइंस और इसके प्रोमोटर विजय माल्या के सभी लेन-देन की जांच शुरू कर दी है. फिलहाल सीबीआई सरकारी बैंकों के करीब 7,000 करोड़ रुपये में से 900 करोड़ रुपये के कर्ज की जांच कर रही है. यह लेन-देन धोखाधड़ी के दायरे में है.
कॉरपोरेट धोखाधड़ी से जुड़े मामलों की जांच पर नजर डालने से यह बात साफ हो जाती है कि ऐसे मामलों में बस जांच शुरू होने की देर होती है. उसके बाद हर दिन नए खुलासे होते हैं.
कर्ज का जाल
माल्या के ऊपर करीब 7,000 करोड़ रुपये का कर्ज है. माल्या का दावा है कि उन्होंने बैंकों को 1,200 करोड़ रुपये चुका दिए हैं. इसमें सबसे ज्यादा कर्ज सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक का है और सबसे कम कर्ज एक्सिस बैंक का 50 करोड़ रुपये का है.

माल्या आज किंगफिशयर एयरलाइंस को मिले कर्ज की वजह से मुश्किलों में हैं. इसकी शुरुआत 2012 से होती है जब माल्या की विमानन कंपनी को कर्ज के बढ़ते दबाव और पूंजी की तंगी की वजह से काम-काज रोकना पड़ा. करीब 8 सालों में किंगफिशयर एयरलाइंस कभी मुनाफे में नहीं आ पाई.
2012 में जब माल्या ने बैंकों से फिर से कर्ज के लिए संपर्क किया तो बैंकों के समूह में इसे लेकर जबरदस्त मतभेद था कि माल्या को नए सिरे से कर्ज दिया जाए या नहीं? हालांकि जब बैंकों ने एक बार फिर से किंगफिशर पर दांव लगाने का फैसला किया तब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थितियां एविएशन सेक्टर के मुताबिक नहीं थी. ऐसे में बैंकों ने किंगफिशर एयरलाइंस पर उम्मीद या मजबूरी में दांव लगाया, कहना मुश्किल है.
मार्च 2013 तक कंपनी का घाटा पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 1,150 करोड़ रुपये से बढ़कर 2,142 करोड़ रुपये हो गया. मार्च 2013 तक कंपनी का कुल घाटा 16,023 करोड़ रुपये रहा.
माल्या चाहे तो कर्ज चुका सकते हैं लेकिन देश से बाहर जाने के समय को लेकर उनकी मंशा ऐसी नहीं लगती है
इस बीच केवल एक बैंक आईसीआईसीआई किंगफिशर की खराब स्थिति को समझने में सफल रही और उसने अपनेे 430 करोड़ रुपये के कर्ज को 2012 के दौरान कोलकाता की डेट मैनेजमेंट कंपनी को बेच दिया. 2011 से 2012 के शुरुआती महीनों में अधिकांश बैंकों ने किंगफिशर एयरलाइंस को एनपीए घोषित कर दिया था.
बैंकों को मिल पाएगी उनकी रकम?
किंगफिशर एयरलाइंस की जो संपत्तियां बैंकों के कब्जे में है उसकी नीलामी से बैंकों को मामूली रकम ही मिलेगी. ऐसे में बैंकों के पास ही एक ही विकल्प बचता है कि वह माल्या की निजी संपत्ति से इसकी वसूली करे. यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि माल्या इसके लिए तैयार हो. माल्या चाहे तो कर्ज चुका सकते हैं लेकिन देश से बाहर जाने के समय को लेकर उनकी मंशा ऐसी नहीं लगती है.
चतुर कारोबारी हैं माल्या
पिता की मृत्यु के बाद विजय माल्या ने अपने कारोबार को ऊंचाई देते हुए उसे सही मायने में मल्टी नेशनल कंपनी बनाया. उन्होंने यूबी ग्रुप के तहत अपने कारोबार को एकीकृत किया और इस दौरान घाटे के कई कारोबार से हाथ झाड़ते हुए अल्कोहल के कारोबार पर ध्यान लगाया. यूबी ग्रुप और यूबी होल्डिंग की क्रॉस होल्डिंग माल्या की सभी कंपनियों में है.
140 करोड़ रुपये की बाजार पूंजीकरण वाली कंपनी यूबी होल्डिंग्स में माल्या और प्रोमोटर्स समूह की 52 फीसदी हिस्सेदारी है
करीब 140 करोड़ रुपये की बाजार पूंजीकरण वाली यूबी होल्डिंग्स में विजय माल्या और प्रोमोटर्स समूह की 52.34 फीसदी हिस्सेदारी है. इसमें माल्या की निजी 7.93 फीसदी हिस्सेदारी भी शामिल है.
कंपनी के पास बेंगलुरू और अन्य जगहों पर रियल एस्टेट का मालिकाना हक है लेकिन इससे आने वाले किराए को कंपनी ने गिरवी पर रखा हुआ है.
यूनाइटेड स्पिरिट्स माल्या की यूबी समूह की सबसे अहम कंपनी थी. उत्पादन के आधार पर यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी थी जिसकी कमान अब माल्या के हाथ से जा चुकी है.
डियाजियो ने 7.5 करोड़ डॉलर में माल्या से यूनाइटेड स्पिरिट्स की कमान अपने हाथों में ले ली है. हालांकि वह अभी भी कंपनी के माइनॉरिटी शेयरहोल्डर हैं. डील के तहत माल्या को जो 550 करोड़ रुपये की रकम मिलनी थी उसे कोर्ट ने बैंक में ही फ्रीज कर दिया है.
यूबीएल में 7,000 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी
यूनाइटेड ब्रेवरीज (यूबीएल) में विजय माल्या की 33 पर्सेंट हिस्सेदारी है जिसकी कीमत आज की तारीख में करीब 7,000 करोड़ रुपये है. हालांकि इसका करीब 50 फीसदी हिस्सा गिरवी रखा हुआ है.
अल्कोहल बाजार में यूबीएल के दबदबे का उसकी बाजार हिस्सेदारी से अंदाजा लगया जा सकता है. 2014-15 की कंपनी की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू बीयर बाजार में उसकी हिस्सेदारी 52.5 फीसदी है. 2013-14 में कंपनी की बाजार हिस्सेदारी 51.3 फीसदी रही थी.
वित्त वर्ष 2015 में कंपनी का ग्रोथ इंडस्ट्री के ग्रोथ से भी मजबूत रहा. कंपनी की ग्रोथ रेट इंडस्ट्री 3.7 फीसदी दर के मुकाबले 6 फीसदी रही.
भड़कीली जीवनशैली वाले माल्या ऑर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के जबरदस्त समर्थक हैं. यह सुनने में अजीब लग सकता है कि लेकिन माल्या हर दिन पूजा करते हैं और हर साल 42 दिनों तक चलने वाला सबरीमाला उपवास भी रखते हैं.
इसे महज संयोग ही कहा जा सकता है कि जब कई विवादों के बावजूद रविशंकर के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक ने शिरकत की तब माल्या 'फरार' होने की वजह से सुर्खियों में थे.
समय भांपने में माहिर माल्या
भारत जब उदारीकरण के लिए अपनी अर्थव्यवस्था खोल रहा था तब माल्या अपने कारोबार को फैलाने में जुटे थे. इसी रणनीति के तहत 1990 में माल्या ने मैंगलोर केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स के साथ फर्टिलाइजर्स और केमिकल्स की दुनिया में कदम रखा.
463 करोड़ रुपये की बाजार पूंजीकरण वाली मैंगलोर केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स (एमसीएफ) में माल्या की कंपनी में माल्या की करीब 22 फीसदी हिस्सेदारी है.
क्रिकेट में दखल
भारत में क्रिकेट के बदलते फॉर्मेट पर भी माल्या ने पैसा लगाया. आईपीएल की टी-20 टीम रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरू माल्या के बेटे सिद्धार्थ माल्या की कंपनी है.
अमेरिकन अप्रैजल की 2014 की रिपार्ट के मुताबिक में रॉयल चैलेंजर्स को तीसरा बड़ा ब्रांड करार दिया गया और इसकी कीमत करीब 5.1 करोड़ डॉलर आंकी गई.
यूबीएल में मैकाडॉवेल होल्डिंग्स की 3.81 फीसदी हिस्सेदारी है वहीं यूबी होल्डिंग्स के पास कंपनी के 11.46 पर्सेंट शेयर है
2002 में पहली बार कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर और फिर बाद में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल सेक्युलर के सहयोग से राज्यसभा सांसद बने माल्या बिजनेस के साथ-साथ ग्लैमर की दुनिया में भी मजबूत दखल रखते हैं.
माल्या सहारा फोर्स इंडिया एफ-1 फॉर्मूला टीम के मालिक भी हैं. अक्टूबर 2011 में सुब्रत रॉय सहारा की सहारा इंडिया परिवार ने माल्या से इस टीम की 42.5 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी और इस एवज में सहारा परिवार ने उन्हें 10 करोड़ डॉलर का भुगतान किया.
माल्या के पास सिने ब्लिट्ज फिल्मी पत्रिका भी मालिकाना हक है. यह कंपनी वीजेएम मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के तहत काम करती है जो माल्या की कंपनी है.
क्रॉस होल्डिंग का जाल
माल्या ने यूबी होल्डिंग्स के तहत अपनी कंपनियों में क्रॉस होल्डिंग का जाल बना रखा है. इससे अक्सर माल्या की कंपनियों में प्रवर्तक और प्रवर्तक समूहों की हिस्सेदारी को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है.
यूबी होल्डिंग्स में माल्या की बतौर व्यक्ति 7.91 फीसदी की हिस्सेदारी है जबकि उनकी कंपनी मैकडॉवेल होल्डिंग्स की 7.87 फीसदी हिस्सेदारी है.
जबकि मैकाडॉवेल होल्डिंग्स में यूबी होल्डिंग्स की 25.68 फीसदी हिस्सेदारी है. इसके अलावा किंगफिशिर फिनवेस्ट इंडिया लिमिटेड की 13.27 फीसदी हिस्सेदारी है.
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यूबीएल में मैकाडॉवेल होल्डिंग्स की 3.81 फीसदी हिस्सेदारी है वहीं यूबी होल्डिंग्स के पास कंपनी के 11.46 फीसदी शेयर हैं. फर्टिलाइजर एंड केमिकल कंपनी में जहां यूबी होल्डिंग्स की 15.05 फीसदी हिस्सेदारी है जबकि मैकडॉवेल होल्डिंग्स के पास कंपनी के 4.93 फीसदी शेयर हैं. इसके अलावा किंगफिशर फिनवेस्ट के पास कंपनी के 2.01 फीसदी शेयर हैं.
क्रॉस होल्डिंग का सीधा मतलब एक लिस्टेड कंपनी के पास दूसरे लिस्टेड कंपनी की हिस्सेदारी का होना है. ऐसे में सिक्योरिटी की गिनती को लेकर हमेशा भ्रम की स्थिति बनी रहती है. खासकर अगर दोनों कंपनियां एक ही इंडेक्स में लिस्टेड हैं.
लेकिन इसका दूसरा मतलब यह है कि अगर दो कंपनियां एक दूसरे में मालिकाना हक रखती हैं तो एक कंपनी के प्रबंधन में दूसरे कंपनी की सहमति के बिना फेरदबल करना संभव नहीं है. मतलब साफ है कि माल्या की सहमति के बिना इन सभी कंपनियों के मालिकाना हक में कोई बदलाव नहीं हो सकता.
माल्या अक्सर अपने बिजनेस से ज्यादा अपनी जीवनशैली को लेकर सुर्खियों में रहे हैं. 2004 में माल्या तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने टीपू सुल्तान की तलवार की बोली लगाकर उसे भारत वापस लाने में सफल रहे. इस बार माल्या बैंकों कर्ज लेकर 'फरार' होने की वजह से सुर्खियों में हैं.
किंगफिशर एयरलाइंस को छोड़कर बतौर बिजनेसमैन माल्या एक सफल कारोबारी हैं. ऐसे में उनके लिए कर्ज की रकम से ज्यादा महत्वपूर्ण उनकी साख का बने रहना है.
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यूनाइटेड स्पिरिट्स में हुई अनियमितताओं की वजह से जिस तरीके से माल्या को कंपनी के बोर्ड से बाहर होना पड़ा, उससे उनकी साख को पहले ही झटका लग चुका है.
माल्या दो बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों सनोफी (फ्रेंच दवा कंपनी) और जर्मनी की केमिकल कंपनी बेयर की भारतीय ईकाई में चेयरमैन हैं. हालांकि इन कंपनियों ने अभी तक माल्या को अपने बोर्ड से बाहर नहीं निकाला है.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया समेत कई अन्य बैंकों ने माल्या को विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर रखा है और भारत सरकार माल्या को भारत लाने के लिए उनका पासपोर्ट तक जब्त किए जाने के विकल्प पर विचार कर रही है. वैसे भी माल्या जिस तरह की जिंदगी जीने के आदी रहे हैं उसे देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि माल्या कर्ज नहीं चुकाने के बदले जेल जाने का विकल्प चुनेंगे.
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First published: 16 March 2016, 9:04 IST