नोटबंदी: नहीं कम होगी आपकी EMI, RBI की ब्याज दरें जस की तस

8 नवंबर को नोटबंदी के एलान के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी आरबीआई ने अपनी तिमाही मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए जनता को कोई राहत नहीं दी है. रेपो रेट पहले की तरह ही कायम है.
आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने बुधवार को क्रेडिट पॉलिसी का एलान किया. रघुराम राजन से सितंबर में कार्यभार संभालने वाले उर्जित पटेल की यह दूसरी मौद्रिक नीति समीक्षा है.
पटेल ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करते हुए इसे 6.25 फीसदी पर स्थिर रखा है. इसके अलावा रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर की दरों को भी पहले जैसा रखा गया है. सीआरआर में बदलाव ने करने का एलान करते हुए पटेल ने कहा कि नोटबंदी की वजह से बैंक सीआरआर का बोझ उठाने की स्थिति में नहीं हैं.
GDP का लक्ष्य घटाकर 7.1 फीसदी
उर्जित पटेल के गवर्नर बनने के बाद चार अक्तूबर को आरबीआई की मौद्रिक समिति की पहली बैठक में ब्याज दरों में कटौती का फैसला लिया गया था. नोटबंदी के बाद माना जा रहा था कि जनता को राहत देते हुए ब्याज दरों में बदलाव हो सकता है.
ऊर्जित पटेल ने बताया कि करीब साढ़े 11 लाख करोड़ पुरानी करेंसी बैंक में आ गई है. वहीं आरबीआई ने विकास दर (जीडीपी) का लक्ष्य भी 7.6 से घटाकर 7.1 फीसदी कर दिया है.
#RBI keeps policy rate unchanged at 6.25 per cent.
— Press Trust of India (@PTI_News) December 7, 2016
कैसे कम होती है EMI?
रेपो रेट
रेपो रेट वो ब्याज दर है, जिस पर रिजर्व बैंक कमर्शियल बैंकों को कर्ज देता है. अगर रेपो रेट कम हो जाता है तो इसका सीधा फायदा ग्राहकों को कम ईएमआई के रूप में मिलता है. यानी रेपो रेट में बेसिस प्वाइंट की कटौती से बैंकों को आरबीआई को कर्ज पर कम ब्याज देना पड़ता है और ग्राहकों को इसका सीधा लाभ कम ईएमआई के रूप में मिलता है.
रिवर्स रेपो रेट
रिवर्स रेपो रेट वो दर है जिस पर रिजर्व बैंक कमर्शियल बैंकों से कर्ज लेता है. अगर रिजर्व बैंक रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, तो इसका मतलब हुआ कि बैंकों को अपना पैसा रिजर्व बैंक में रखने से ज्यादा ब्याज मिलेगा.
सीआरआर
सीआरआर वो पूंजी है जो बैंकों को रिजर्व बैंक में रखनी होती है. अगर रिजर्व बैंक सीआरआर बढ़ा देता है, तो इसका मतलब ये है कि बैंकों को रिजर्व बैंक में ज्यादा पैसा रखना होगा. यानी लोन देने के लिए बैंकों के पास पैसा कम हो जाएगा.
First published: 7 December 2016, 2:55 IST