क्यों अगली आर्थिक मंदी 2008 से ज्यादा खतरनाक हो सकती है ?

अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने तब खतरे की घंटी बजाई जब उसने अप्रत्याशित रूप से ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला किया. फेड के इस संकेत ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में बाजारों के विश्वास को खत्म कर दिया और एक और मंदी की आशंका पैदा कर दी है. बाजार दुनिया भर में गूंज रहे हैं और भारत इसका अपवाद नहीं है. बेंचमार्क इंडेक्स, सेंसेक्स और निफ्टी सोमवार को एक प्रतिशत गिर गए, क्योंकि निवेशकों को वैश्विक संकट की आशंका थी.
विशेषज्ञ प्रोफेसर एडवर्ड अल्टमैन के अनुसार आने वाला वैश्विक दिवालियापन 2008 के आर्थिक संकट एक से बड़ा हो सकता है. उन्होंने कहा "संकट का प्रभाव ऋण के स्तर पर निर्भर करेगा. अमेरिका में ऋण का स्तर 2008 के संकट से पहले के मुकाबले दोगुना है. डिफ़ॉल्ट दर जब यह बढ़ती है तो यह पहले से कहीं अधिक ऋण के मुकाबले बढ़ जाएगी,"
एस एंड ग्लोबल रेटिंग्स के अनुसार, यूएस में कुल ऋण जून 2008 में 208% की तुलना में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 231% था. सिक्योरिटी इंडस्ट्री एंड फाइनेंशियल मार्केट्स एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल नवंबर में CNBC द्वारा उद्धृत जून 2018 तक संकट से पहले अमेरिकी कॉरपोरेट ऋण लगभग 4.9 ट्रिलियन डॉलर से बढ़ गया. भारत के लिए भी यह तस्वीर समान रूप से अशुभ हो सकती है, जहां सरकारी ऋण-से-जीडीपी अनुपात 68.4% है.
मोतीलाल ओसवाल के एक विश्लेषण के अनुसार, एकमात्र अन्य उभरती अर्थव्यवस्था ब्राज़ील के ऋण की स्थिति भारत से भी बदतर है. सिर्फ सरकार ही नहीं, उभरते हुए मार्केट कॉरपोरेट्स को हर 10 डॉलर में एक, कथित तौर पर भारत की एक कंपनी द्वारा उधार लिया जाता है. कोटक महिंद्रा बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री उपासना भारद्वाज ने कहा, "एक महत्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक मंदी एक गंभीर जोखिम को रोक सकती है, जो हमारे बाजारों में फैल सकती है."
भारतीय बैंक कर्ज से घिरे हुए हैं और सुधारात्मक उपायों ने उन्हें उधार देने से रोक दिया, कंपनियों ने बॉन्ड बाजारों की ओर रुख किया, रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने पिछले साल एक रिपोर्ट में कहा था. क्रिसिल के अनुसार, भारत के भीतर, वाणिज्यिक पत्र के माध्यम से कॉर्पोरेट उधार पिछले दस वर्षों में दस गुना बढ़ गया है और उस खाते पर बकाया ऋण चौगुना हो गया है.
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First published: 25 March 2019, 16:00 IST