शेल कंपनियों पर कार्रवाई इसलिए नहीं कर पा रही है मोदी सरकार!

नोटबंदी के बाद आयकर विभाग ने दावा किया कि उसने लगभग 224000 शेल फर्मों का पता लगाया है. इन कंपनियों में से सरकार ने 5800 पर कार्रवाई शुरू की थी और इनके निदेशकों को अयोग्य घोषित ठहराया था लेकिन सरकार इस मामले में अब मुसीबत में फंस गई है. सरकार यह तय नहीं कर पा रही है कि आखिर शेल कंपनियों की परिभाषा क्या है. इसको लेकर सरकार ने एक विशेष कार्यबल का गठन किया है, जो इन शेल कंपनियों पर कार्रवाई के लिए दिशानिर्देश जारी करेगा.
बिज़नेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार का मानना है कि कई ऐसी कंपनियां वैध उद्देश्यों के लिए बनायीं जाती हैं. इसलिए वह चाहती हैं कि ऐसी कंपनियों को उन कंपनियों से अलग किया जाए जो टैक्स चोरी और संदिग्ध लेनदेन के लिए बनायी जाती हैं. शेल कंपनियों पर कार्रवाई के दौरान पाया गया कि कई ऐसी कंपनियां हैं जो चवन्नी शेयरों के लिए बनायीं गई थी. इसके बाद कई कंपनियों पर कार्रवाई रोक देनी पड़ी थी.
सबसे ज्यादा शेल कंपनियां सूरत की
एक वक़्त हुआ करता था जब देश की सबसे ज्यादा शेल कंपनियां कोलकाता की हुआ करती थी लेकिन इस बार नोटबंदी के बाद जो आंकड़े सामने आये उनमें पाया कि जाँच के घेरे में आयीं दो लाख से ज्यादा शेल फर्मों में से 80 प्रतिशत सूरत की थीं. इन कंपनियों ने 5000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जमा की है.
जांच में पता चला है कि शेल कंपनियों के लिए सूरत दो प्रमुख कारणों से कोलकाता की तुलना ज्यादा सुरक्षित है. पहला, सूरत का हीरा कारोबार एक समानांतर रूप में विकसित हुआ है. व्यापारियों ने विदेशों में गैरकानूनी रूप से लाखों डॉलर के हीरे की शिपिंग की, जो कि ज्यादातर दुबई और दक्षिण एशियाई देशों से संबंध रखती हैं. यहाँ से वह इसे पश्चिमी बाजारों में बेचते हैं.