60 प्रतिशत हिमालयी जलधाराएं सूखने की कगार पर, नीति आयोग हुआ एक्टिव

पर्यावरण के साथ लगातार की जा रही छेड़खानी के दुष्परिणाम सामने आने के संकेत दे रहे हैं. नीति आयोग रिपोर्ट में यह बात समाने आयी है कि हिमालय से निकलने वाली 60% जलधाराएं सूखने की कगार पर हैं. अब नीति आयोग ने इस संबंध में अपने सभी सदस्यों से 19 फरवरी तक सुझाव मांगे हैं.
इन जलधाराओं में गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियां भी शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन जलधाराओं की हालत ऐसी हो चुका है कि इनमें सिर्फ बारिश के मौसम में ही पानी आता है. नीति आयोग के साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग ने जल संरक्षण पर जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमे कहा गया है कि करीब 50 लाख जलधाराएं भारत में निकलती हैं. जिनमे करीब 30 लाख हिमालय क्षेत्र से निकलती हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक हिमालय की इन जलधाराओं में ग्लेशियरों के पिघलने से पानी बना रहता है. जिनसे गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी धाराएं बनती है. जलवायु परिवर्तन की वजह ग्लेशियर लगातार घट रहे हैं. पानी की बढ़ती मांग, पेड़ कटने की वजह से जमीन में होने वाले बदलाव और धरती की अंदरूनी प्लेट्स में होने वाली बदलाव की वजह से ये जलधाराएं सिकुड़ रही हैं और सूख रही हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस दिशा में फौरन कदम नहीं उठाए गए तो 10 साल के भीतर ही इन क्षेत्रों को भीषण जलसंकट का सामना करना पड़ सकता है.
पर्वतीय स्प्रिंग्स हिमालय क्षेत्र में ग्रामीण और शहरी घरों के लिए पानी का प्राथमिक स्रोत हैं. जबकि घरेलू और कृषि पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्प्रिंग्स पर निर्भर हैं. उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में अधिकांश पेयजल आपूर्ति वसंत पर आधारित है, जबकि मेघालय में, सभी गांवों में पीने और सिंचाई के लिए झरने का इस्तेमाल होता है.
हिमालय में पहाड़ के स्प्रिंग्स के सूखने, स्प्रिंग्स से पानी की गुणवत्ता के स्तर को मापने के लिए पिछले वर्ष नीति आयोग ने एक कार्य समूह ने तैयार किया था.
First published: 14 February 2018, 16:55 IST