क्या मानसून किसानों के माथे पर खींचेगा चिंता की लकीर?

प्राचीन भारत के मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले महाकवि घाघ की एक पंक्ति है- दिन के बद्दर रात निबद्दर, बहै पुरवाई झब्बर-झब्बर, कहै घाघ कुछ होनी होई कुआं खोदि के धोबी धोई...इस अवधी कहावत का मतलब है कि अगर दिन में बादल छाए रहें और रात में आसमान साफ़ हो साथ ही पुरवा हवाएं चलें तो कुछ अनहोनी होने वाली है और धोबी कुएं के पानी से कपड़े धुलेगा. यानी सूखे के आसार हैं.
फिलहाल तो मानसून अभी दूर है. दक्षिण-पश्चिम मानसून के आने में भी अभी दो महीने हैं. देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली कृषि भी मानसून पर निर्भर है. लिहाजा मानसून अगर सामान्य रहता है तो किसान बेहतर उपज की उम्मीदें पाल लेता है. लेकिन अगर यही मानसून सामान्य नहीं रहता है या औसत से थोड़ा नीचे होता है तो किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ना स्वाभाविक है.

स्काईमेट के अनुमान ने बढ़ाई चिंता
मौसम के बारे में पूर्वानुमान लगाने वाली वेबसाइट स्काईमेट के एक अनुमान ने मानसून को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं. 2017 के लिए स्काईमेट ने मानसून का जो अनुमान लगाया है, उसके मुताबिक इस बार नॉर्मल से पांच फीसदी कम 95 फीसदी बारिश होने की संभावना है. हालांकि वेबसाइट के मुताबिक इन आंकड़ों में पांच फीसदी का इज़ाफ़ा या कमी दोनों हो सकती है.
स्काईमेट ने LPA- लॉन्ग पीरियड एवरेज (जून से सितंबर तक) यानी चार महीने के दौरान 887 मिलीमीटर बारिश का अनुमान लगाया है. जेजेएएस यानी जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर के लिए वेबसाइट ने यह अनुमान लगाया है:
जून: 164 मिमी औसत बारिश (LPA का 102 फीसदी)
सामान्य- 70 फीसदी संभावना, सामान्य से ज्यादा- 20 फीसदी संभावना, सामान्य से कम- 10 फीसदी संभावना
जुलाई: 289 मिमी औसत बारिश (LPA का 94 फीसदी)
सामान्य- 60 फीसदी संभावना, सामान्य से ज्यादा- 10 फीसदी संभावना, सामान्य से कम- 30 फीसदी संभावना
अगस्त: 261 मिमी औसत बारिश (LPA का 93 फीसदी)
सामान्य- 60 फीसदी संभावना, सामान्य से ज्यादा- 10 फीसदी संभावना, सामान्य से कम- 30 फीसदी संभावना
सितंबर: 173 मिमी औसत बारिश (LPA का 96 फीसदी)
सामान्य- 50 फीसदी संभावना, सामान्य से ज्यादा- 20 फीसदी संभावना, सामान्य से कम- 30 फीसदी संभावना
First published: 27 March 2017, 14:15 IST