अफ़सर की बेबाकी, 'नदियों को बचाने में विफल रही सरकार'

- जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर ने बड़ी ईमानदारी से यह कुबूला है कि सरकारें नदियों को बचाने में विफ़ल रही हैं.
- यमुना जिए अभियान के संयोजक मनोज मिश्रा ने कहा है कि किसी प्रशासनिक अधिकारी का ऐसे संवेदनशील मुद्दे के प्रति इस कदर चिंतित होना और अपने विचार व्यक्त करना महत्वपूर्ण है.
भारत में 290 नदियां हैं. इनमें से 205 की हालत ख़राब है. यह बिल्कुल सच है कि मानव सभ्यता की जनक इन नदियों में से 70 प्रतिशत की हालत परेशान करने वाली है. देश भर में अलग-अलग राज्यों के प्रोफेसर, शिक्षाविद और पर्यावरण विशेषज्ञों सहित कई प्रतिनिधियों ने नदियों का जायज़ा लेने के इरादे से किए गए एक सर्वे में यह बात कही है. सभी विशेषज्ञ वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड सेक्रेटेरिएट के प्रोग्राम इंडिया रिवर्स वीक के सालाना प्रोग्राम में जमा हुए थे.
जिन नदियों की हालत नाज़ुक है, उनमें से 14 तो बड़ी हैं और 40 छोटी. इसकी फाइनल लिस्ट इस महीने में आ सकती है. जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय के सचिव शशि शेखर ने माना कि मंत्रालय अपना काम ठीक से नहीं कर पाया. मंत्रालय भारतीय नदियों के साथ हो रहे व्यभिचार से निपटने के लिए कोई कार्य योजना बनाने में विफल रहा.
भ्रष्ट लोगों की भेंट चढ़ती नदियां
शेखर की बात यहां इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि कोई भी नौकरशाह बिना वजह सार्वजनिक रूप से मंत्रालय या राजनेताओं को विफलता के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराता. उन्होंने कहा नदियों, नदी तटों और इसके संवेदनशील इलाक़ों का इस तरह से दुरुपयोग किया गया जिसका नतीजा आज प्रदूषण के रूप में हमारे सामने है. लेकिन इस प्रदूषण की एक खास वजह राजनेताओं और निर्माण क्षेत्र के व्यापारियों के बीच सांठ-गांठ है, जिसमें इन राजनेताओं के बड़े हित निहित हैं.
उन्होंने कहा, 'हैदराबाद और चेन्नई में नदियों के पास वाले बाहरी मैदानी इलाके में अनगिनत अवैध निर्माण खड़े दिखाई देते हैं. साथ ही कहा, जनता के लिए यह जानना ज़रूरी है यह ‘असल विकास’ नहीं है.' उन्होंने कहा, मौजूदा एनडीए सरकार द्वारा गंगा पुरूद्धार की जिम्मेदारी भी मंत्रालय पर थोप दी गई है.
अब मंत्रालय का नाम बदल कर ‘नदी विकास एवं गंगा पुनरूद्धार’ रख दिया गया है लेकिन नाम बदलने के सिवाय इस दिशा में कोई और काम नहीं हुआ है. शेखर ने इस बात की भी आलोचना की कि सरकारी आंकड़ों में कमी के चलते देश में नदियों की सही स्थिति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता.
उन्होंने कहा देश भर में ऐसा कोई जल भंडार नहीं है, जो 66 फीसदी के अनुपात में ज़रूरी लाभ पहुंचा सके. केवल मुठ्ठी भर परियोजनाएं ही ऐसी हैं, जिनमें पानी का कुशलता से इस्तेमाल किया गया है. कई बार इन प्रोजेक्ट की शुरुआत केवल इसी उद्देश्य से की जाती है कि वहां कोई न कोई निर्माण खड़ा किया जा सके.
उन्होंने यह भी कहा कि उनका मंत्रालय पर्यावरण व बिजली मंत्रालय के साथ तालमेल नहीं बिठा पाया. यमुना जिए अभियान के संयोजक मनोज मिश्रा ने कहा, 'किसी प्रशासनिक अधिकारी का ऐसे संवेदनशील मुद्दे के प्रति इस कदर चिंतित होना और अपने विचार व्यक्त करना महत्वपूर्ण है. यह नदी परियोजनाओं के संबंध में नीति परिवर्तन की दिशा में पहला कदम है.'
ज़रूरी बहस
पानी को लेकर राज्यों के बीच विवाद पर शेखर ने कहा, 'इसका कारण सीधा-सा है कि राज्यों को मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं हो रही है. उन्होंने कहा मांग व आपूर्ति के मसले पर किसी स्वतंत्र निकाय की कमी के चलते ही हाल ही कर्नाटक में कावेरी जल बंटवारे पर इतनी हिंसा हुई.'
विपक्षी स्वर
दिल्ली के जल संसाधन मंत्री और आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल मिश्रा ने कहा, 'नदी का प्रवाह और देश का प्रशासन दो अलग बातें हैं. हमें नौकरशाहों, सार्वजनिक व सिविल सोसायटी के लोगों के साथ मिल कर नदियों पर काम करना होगा.'
कार्यक्रम में पहले दिन मौजूद रहे राज्यसभा में कांग्रेस सांसद व पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा, 'अगले छह माह में जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और वन संरक्षण पर कानून थोड़े लचीले होंगे. नदियों का परिवहन व हाइड्रो पावर के लिए उपयोग नया आयाम होगा. ज़ाहिर है नदी जीर्णोद्धार से पहले मीलों का सफर तय करना होगा.'
First published: 3 December 2016, 7:31 IST