नासाः वर्ष 2016 बना दुनिया का सबसे गर्म वर्ष

हमारी पृथ्वी की सतह का तापमान 1880 से शुरू किए इसके रिकॉर्ड के मामले में पिछले साल सबसे ज्यादा गर्म रहा है. नासा द्वारा जारी रिपोर्ट बताती है कि 2016 लगातार तीसरा साल रहा है जिसने ग्लोबल एवरेज सरफेस टेंपरेचर्स के मामले में नया रिकॉर्ड कायम किया है.
नेशनल ओसिएनिक एंड एटमॉसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) और नासा के स्वतंत्र विश्लेषण बताते हैं कि 2016 में पृथ्वी की सतह का तापमान सर्वाधिक रहा है. 1880 से इस तामपान का रिकॉर्ड करने की मौजूदा परंपरा शुरू हुई थी.
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20वीं सदी के मध्य के औसत तापमान से 2016 का वैश्विक औसत तापमान 1.78 डिग्री फॉरेनहाइट ज्यादा रहा. इस वजह से 2016 लगातार तीसरा ऐसा वर्ष बना जिसने वैश्विक औसत सतह तापमान को रिकॉर्ड ऊंचा बना दिया.
2016 के तामपानों ने लगातार एक लंबी अवधि तक गर्म रहने वाले ट्रेंड को जारी रखा है. क्योंकि मौसम मापन केंद्रों की स्थिति और मापन के तरीके वक्त के साथ बदलते हैं, इसलिए साल दर साल वैश्विक औसत तापमान के अंतर को परिभाषित करने में अनिश्चितता बरकरार है.
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हालांकि अगर इस बात को भी ध्यान में रखें तो भी नासा का अनुमान है कि वो 95 फीसदी दावे के साथ कह सकता है कि 2016 सबसे ज्यादा गर्म वर्ष रहा था.

न्यूयॉर्क स्थित नासा के गॉडर्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज (जीआईएसएस) के निदेशक गैविन शमिट कहते हैं, "2016 आश्चर्यजनक ढंग से इस कड़ी में तीसरा रिकॉर्ड वर्ष साबित हुआ. हम हर साल को रिकॉर्ड वर्ष बनने का अनुमान नहीं लगाते, लेकिन लंबी अवधि तक चलने वाला गर्म मौसम का ट्रेंड जारी है."
19वीं शताब्दी से पृथ्वी की सतह का औसत तापमान करीब 2 डिग्री फारेनहाइट बढ़ा है. इस बदलाव की प्रमुख वजह वातावरण में मानव निर्मित उत्सर्जन और कार्बन डाईऑक्साइज का बढ़ना है.
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सबसे ज्यादा गर्माहट पिछले 35 वर्षों में बढ़ी है और रिकॉर्ड 17 में 16 सबसे गर्म वर्ष 2001 के बाद रहे हैं. न केवल 2016 दुनिया का सबसे गर्म वर्ष बना बल्कि इसके 12 में से आठ महीने यानी जनवरी से लेकर सितंबर तक (जून को छोड़कर) इन महीनों की तुलना में भी रिकॉर्ड गर्म साबित हुए.
जबकि अक्तूबर, नवंबर और दिसंबर दूसरे सबसे ज्यादा गर्म महीने रिकॉर्ड किए गए. इन तीनों तापमानों की तुलना का आधार वर्ष 2015 (दूसरा सबसे गर्म वर्ष) रहा है.
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New record set in 2016 for Earth's global average surface temperatures - warmest since recordkeeping began in 1880: https://t.co/OHRQ2h6GND pic.twitter.com/3p1oElZe0J
— NASA (@NASA) January 18, 2017
अगर बात करें वैश्विक औसत तापमान में बदलाव लाने के लिए अल नीनो और ला नीना के प्रभाव का तो इनका योगदान बहुत कम अवधि के लिए होता है. अल नीनो और ला नीना की वजह से ट्रॉपिकल पैसिफिक ओसिएन का ऊपरी हिस्सा गर्म या ठंडा होता है जिससे वैश्विक वायु और मौसम के चलन में बदलाव होते हैं.
वर्ष 2015 और 2016 की शुरुआत में अल नीनो की गर्माहट का प्रभाव था भी. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अल नीनो की वजह से 2016 के वैश्विक तापमान में बहुत ज्यादा 0.2 डिग्री फारेनहाइट ही अंतर आया.
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मौसम के उतार-चढ़ाव अक्सर क्षेत्रीय तापमान को प्रभावित करते हैं, इसलिए पिछले साल पृथ्वी के हर हिस्से ने पिछले साल रिकॉर्ड औसत तामपान का सामना नहीं किया.
First published: 19 January 2017, 18:49 IST