हिंडन और कृष्णा नदी प्रदूषण पर एनजीटी का बड़ा फैसला

- पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पश्चिमोत्तर भाग में हिंडन और कृष्णा नदी के किनारे बसे सैंकड़ों गांव के लोगों के लिए पानी सबसे बड़ा जहर है. यहां मौजूद पानी में धातु की उपस्थिति के कारण बच्चों को कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं.
- लंबी सुनवाई के बाद एनजीटी ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव समेत अन्य बड़े अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए तीन दिनों के भीतर गांवों को साफ पानी मुहैया कराने का आदेश दिया है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पश्चिमोत्तर भाग में हिंडन और कृष्णा नदी के किनारे बसे सैंकड़ों गांव के लोगों के लिए पानी सबसे बड़ा जहर है. यहां मौजूद पानी में धातु की मात्रा के कारण बच्चों को कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं. यह सब कुछ पिछले दो दशक से हो रहा है.
राज्य सरकार ने इस स्थिति में सुधार के लिए कुछ नहीं किया. इससे मजबूर गांव वालों ने 2014 में एनजीओ की मदद से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया.
लंबी सुनवाई के बाद एनजीटी ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव समेत अन्य बड़े अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए तीन दिनों के भीतर गांवों को साफ पानी मुहैया कराने का आदेश दिया है. साथ ही एनजीटी ने कहा कि समय के भीतर आदेश का पालन करने के लिए उसे ईमेल के जरिए भेजा जाएगा.
एनजीटी का यह आदेश ऐसे समय में सामने आया है जब उत्तर प्रदेश सरकार गांव वालों को साफ पानी मुहैया कराने के मामले में दो बार ट्रिब्यूनल के निर्देशों का पालन करने में विफल रही है. मंगलवार को ट्र्रिब्यtनल के सामने 22-23 साल की उम्र के लोगों को पेश किया गया. यह सभी व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार थे. इसके बाद ट्रिब्यूनल ने सख्त आदेश पारित कर दिया.
राज्य की पैरवी कर रहे वकील से एनजीटी के चेयरपर्सन स्वतंत्र कुमार ने पूछा, 'क्या आपमें जिम्मेदारी नाम की कोई भावना नहीं है? यह पूरा मामला कलंक की तरह है.'
राज्य के बचाव को पूरी तरह से बेकार करार देते हुए ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश जल निगम के मैनेजिंग डायरेक्टर और उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी को नोटिस जारी कर दिया. जल बोर्ड की जिम्मेदारी जहां लोगों को साफ पानी मुहैया कराने की है वहीं पॉल्यूशन बोर्ड की जिम्मेदारी नदियों के जल को प्रदूषित होने से रोकने की है.
दोआबा पर्यावरण समिति के चेयरपर्सन सीवी सिंह ने इस मामले में याचिका दायर की थी. उन्होंने इस फैसले को बड़ी जीत बताया. सिंह ने बताया कि गाजियाबाद, शामली, मेेरठ, बागपत, मुजफ्फरपुर और सहारनपुर के करीब 356 गांव क्रोमियम, कैडमियम, सीसा, मरकरी और आर्सेनिक की वजह से दूषित हो चुके हैं.
उन्होंने कहा कि पानी में इन तत्वों की मिलावट की वजह इस इलाके में 45 उद्योगों का होना है. इलाके में मौजूद उद्योग हिंडन और कृष्णा नदी में अपना कचरा गिराते हैं और इसकी वजह से प्रदूषण फैलता है.
कैच से बातचीत में सिंह ने कहा, 'पानी काला हो चुका है. पानी में आपको एक भी मछली नहीं मिलेगी क्योंकि इसमें ऑक्सीजन पूरी तरह खत्म हो चुका है.'
पिछले साल उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने एनजीटी के दिशानिर्देशों पर काम करते हुए इस जिले से पानी के 48 सैंपल उठाए थे. जांच के परिणाम चौंकाने वाले थे. पानी में लोहा, कैडमियम, मैग्नीशियम, कैल्सियम, मैंगनीज और सल्फेट की सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक मात्रा थी.
रिपोर्ट की समीक्षा करते हुए 5 नवंबर 2015 को एनजीटी ने कहा था कि पानी में इस तरह की मिलावट साधारण घटना नहीं है. आदेश में कहा गया है कि राज्य को इस तरह के प्रदूषण को जल्द से खत्म करना चाहिए था लेकिन राज्य सरकार ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की.
एनजीटी ने 5 अगस्त को दिए गए आदेश का पालन नहीं किए जाने के मामले में भी सरकार को डांट पिलाई. एनजीटी में कहा गया है, 'राज्य के इन इलाकों में बेहद खराब स्थिति है. राज्य सरकार अपने वैधानिक दायित्वों को पूरा करने में विफल रही है जो कि लोगों का मौलिक और बुनियादी अधिकार है.'
एनजीटी ने तत्काल सभी प्रदूषित पानी देने वाले हैंडपंप को सील करने का आदेश देने के साथ ही राज्य सरकार को बिना देरी किए गांव वालों को साफ पानी मुहैया कराने के लिए कहा था. सरकार ने हैंड पंपों को सील तो कर दिया लेकिन उसने गांव वालों को साफ पानी मुहैया कराने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया.
ट्रिब्यूनल ने राज्य सरकार को इस मामले का विस्तार से अध्ययन कराने का आदेश दिया है.
First published: 21 July 2016, 8:39 IST