एनजीटी बनाम आर्ट ऑफ लिविंग: देर से आया अधूरा फैसला

नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल में आर्ट ऑफ लिविंग का केस लेटलतीफी की एक और मिसाल है. एनजीटी ने आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन पर गत 11 से 13 मार्च तक वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल आयोजित करने पर 4.75 करोड़ रु. की राशि बतौर क्षतिपूर्ति अदा करने के आदेश दिया था.
एनजीटी ने 9 मार्च को अपने आदेश में कहा था कि फेस्टिवल से यमुना के तटवर्ती क्षेत्र को स्थाई नुकसान हुआ है और इसकी क्षतिपूर्ति के रूप में एओएलएफ 5 करोड़ रुपए 11 मार्च से पहले अग्रिम जमा कराए.
लेकिन एओएलएफ ने मात्र 25 लाख रुपए इस वादे के साथ जमा कराए कि वह शेष राशि (4.75 करोड़) एक अप्रैल तक जमा करा देगी. भुगतान करने के अंतिम दिन एओएलएफ ने एनजीटी को पेशकश की कि वह शेष राशि नकद जमा नहीं करा कर बैंक गांरटी के रूप में दे देगी. एओएलएफ की यह पेशकश एनजीटी ने ठुकरा दी.
अब एओएलएफ को एक हफ्ते में शेष राशि जमा करानी होगी. ग्रीष्मकालीन अवकाश से एक दिन पहले एनजीटी ने आदेश निकालकर दो महीने से लम्बित मामले का पटाक्षेप कर दिया.
पढ़ें:एनजीटी ने आर्ट ऑफ लिविंग पर 5 करोड़ और डीडीए पर 5 लाख का जुर्माना ठोंका
एनजीटी द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के पैनल ने आयोजन स्थल का दौरा कर, पारिस्थितिकी तंत्र को हुए नुकसान व उस नुकसान को ठीक करने में खर्च होने वाली राशि का आकलन कर रिपोर्ट तैयारी की. रिपोर्ट के मुताबिक ही एनजीटी ने अपना आदेश दिया. एओएलएफ को प्रारंभिक क्षतिपूर्ति पांच करोड़ के साथ ही समस्त राशि का भुगतान करना होगा.
पैनल का दौरा, क्षतिपूर्ति व राशि का भुगतान यह सब कार्य अप्रैल तक समाप्त होने थे. एओएलएफ ने 4.75 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी की बात लाकर मामले को लटकाने की काशिश की.
बैंक गारंटी बैंक द्वारा जारी एक सर्टिफिकेट होता है जिसके अनुसार निर्धारित शर्तें पूरी करने पर निर्धारित तिथि को एक तय राशि का भुगतान कर दिया जाता है.
आर्ट ऑफ लिविंग के लिए निर्धारित शर्त यह थी कि पहले विशेषज्ञों का पैनल क्षति का पता लगाए कि कितनी क्षति हुई है. अगर क्षति पांच करोड़ से ज्यादा की है तो बैंक गारंटी का उपयोग किया जा सकता है. एओएलएफ ने तर्क दिया कि कोई क्षति हुई ही नहीं है इसलिए कोई राशि देने की जरूरत ही नहीं है.
किंतु विशेषज्ञों ने अब तक आयोजन स्थल का दौरा ही नहीं किया था क्योंकि एओएलएफ ने आयोजन के लिए बनाए गए ढांचे को हटाने में ही एक महीना लगा दिया. जब अप्रैल के प्रारंभ में पैनल वहां गया तो एओएलएफ के लोगों ने उसे परिसर में घुसने से रोक दिया.
पढ़ें:आर्ट ऑफ लिविंग की गुहार, 5 करोड़ हर्जाने के लिए 4 हफ्ते का समय
इस पर पैनल प्रमुख ने परिसर में प्रवेश से रोकने की बात एनजीटी को बताकर उससे लिखित दिशा-निर्देश मांगे. एनजीटी के आदेश से यह साबित होता है कि आर्ट ऑफ लिविंग कोर्ट को गुमराह कर रहा है.
यहीं पर एनजीटी की लेटलतीफी सामने आती है. अप्रैल और मई में लगातार रुकावटों के बावजूद और केस में अवमानना की अर्जी पर विचार करते हुए एनजीटी ने ऐसे कोई दिशा-निर्देश ही नहीं दिए. 25 मई को अपीलार्थी की अपील पर पैनल को स्थल का दौरा कर दो हफ्तों में रिपोर्ट पेश करने को कहा गया. आज, रिपोर्ट जमा कराने की तिथि बढ़ाकर चार जुलाई कर दी गई.
विशेषज्ञों का आकलन आने में शायद कुछ और देर हो जाए. एओएलएफ ने कल पैनल को बदलने की मांग की. पैनल ने आयोजन से पहले सतही तौर पर जांच कर पारिस्थितिकी तंत्र को हुए नुकसान का आकलन 120 करोड़ रुपए किया था.
एओएलएफ का तर्क है कि पैनल अपने आकलन को न्यायसंगत ठहराने की कोशिश करेगा. इसलिए पूर्वाग्रह से रहित दूसरा पैनल बनाया जाए. एओएलएफ की यह मांग भी रद्द कर दी गई.
एनजीटी ने आर्ट ऑफ लिविंग को ट्रिब्यूनल को गुमराह करने व कई आवेदन लगाने पर खिंचाई करते हुए देरी पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाया. यह आदेश साबित करता है कि आर्ट ऑफ लिविंग अदालत को गुमराह कर रहा है.
पढ़ें:यमुना के नुकसान पर ऑर्ट ऑफ लिविंग की पैंतरेबाजी
हर कदम पर उन्होंने ट्रिब्यूनल को गुमराह किया और झूठे वादे किए कि वे क्षतिपूर्ति राशि अदा कर देंगे. ऋत्विक दत्ता जो अपीलार्थियों की ओर से पेश हुई थी का कहना था कि 'ऐसा संगठन जो विश्व शांति जैसे कार्य में लगा हुआ है, उससे ऐसी उम्मीद नहीं थी.'
दोनों स्तरों पर निर्णय काफी देर से आया है. आर्ट ऑफ लिविंग जो प्रारंभिक क्षतिपूर्ति राशि दे रहा है वह भी आनाकानी करता रहा जबकि नुकसान का आकलन करने वाली कमेटी का निर्णय भी काफी देर से आया है. इस मामले में अब तक करीब दो महीने की देरी हो चुकी है.
सामाजिक कार्यकर्ता विमलेंदु झा के अनुसार, 'वो भी दिन थे जब एनजीटी का जलवा हुआ करता था. आयोजन को हुए 80 दिन हो चुके हैं और राशि का भुगतान 21 दिनों में करना था. अप्रैल तक तो केस को समाप्त भी कर दिया जाना था.'
साथ ही उन्होंने जोड़ा कि हमारा डर यह है कि इस साल सामान्य मानसून रहने पर भी प्रभावित इलाके जलमग्न हो जाएंगे जिससे विशेषज्ञों का नुकसान का आकलन प्रभावित हो सकता है.