मप्र में 13 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार, श्योपुर में 70 से ज्यादा मौतें

कुपोषण की समस्या मध्य प्रदेश सरकार को बुरी तरह से परेशान कर रही है. पिछले एक महीने से जिस तरह से कुपोषण के नए मामले सामने आ रहे हैं, उसने सरकार के ऊपर गंभीर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं.
अकेले श्योपुर जिले में ही बीते कुछ दिनों के भीतर 70 से ज्यादा बच्चों की मौत कुपोषण से हो चुकी है. वहीं एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में 13 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.
कुपोषण के आरोपों से घिरी सरकार ने अब इस पूरे मुद्दे पर श्वेतपत्र लाने का ऐलान किया है. सरकार का दावा है कि श्वेतपत्र के माध्यम से वह इस समस्या से निपटने का रोडमैप तैयार करेगी और कुपोषण को लेकर एक विस्तृत एक्शन प्लान बनाएगी.
दरअसल, कुपोषण मध्यप्रदेश के लिए कोई नया विषय नहीं हैं. यहां हर साल हजारों बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है. यह बात और है कि सरकार या सिस्टम इन मौतों को बीमारियों से जोड़कर किनारा कर लेती है.
हर रोज करीब 60 बच्चों की मौत
विधानसभा में पेश किए गए सरकारी आंकड़ों पर भरोसा करें तो प्रदेश में हर रोज करीब 60 बच्चों की मौत हो रही है. यह छह साल से कम उम्र के बच्चे हैं. इनमें से ज्यादातर बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.
विधानसभा में श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक और पूर्व मंत्री रामनिवास रावत के सवाल के जवाब में सरकार ने विधानसभा में बताया था कि प्रदेश में फिलहाल 13,31,088 बच्चे कुपोषित हैं.
अकेले श्योपुर जिले में 19,724 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. महत्वपूर्ण यह है कि इस कुपोषण से सिर्फ दूर-दराज के जिले ही प्रभावित नहीं हैं, बल्कि शहरी क्षेत्र के कई जिलों का भी हाल बुरा है. राजधानी भोपाल में 26,164 बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं.
कारोबारी शहर इंदौर में भी करीब 22,326 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. मध्य प्रदेश का एक भी जिला ऐसा नहीं है, जहां कुपोषित बच्चों का आंकड़ा हजारों में न हो. बच्चों की मौतों पर बात करें तो जनवरी 2016 से मई 2016 के बीच में करीब 9,167 बच्चों की मौत हुई है जो औसत 60 बच्चे रोजाना है.

सबसे ज्यादा परेशान करने वाले आंकड़े श्योपुर जिले के हैं. यह राज्य का आदिवासी बहुल जिला है. मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे इस जिले में कुपोषण से हुई मौतों की संख्या परेशान करने वाली है.
पूरे श्योपुर जिले में कुपोषण को लेकर दौरा कर रहे विजयपुर के विधायक और पूर्व मंत्री रामनिवास रावत का दावा है कि यहां पर पिछले दो महीने में 72 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई है.
रावत, एक-एक बच्चे का आंकड़ा सार्वजनिक करते हुए कहते हैं कि प्रदेश में कुपोषण को लेकर हाल बुरे हैं. हमारे यहां तो यह भयावह स्थिति में है. उनके मुताबिक राज्य सरकार उनकी शिकायत को सुनने हर जगह बोलते हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है. विके लिए तैयार ही नहीं है. कई दफा सरकार को उन्होंने हकीकत बता दी है लेकिन फिर भी कोई एक्शन प्लान नजर नहीं आ रहा है. सरकार आखिर क्या चाहती है?
समय रहते बचाया जा सकता था

मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह भी स्वीकारते हैं कि मौतें हुई हैं. लेकिन उनकी वजह कुपोषण नहीं बल्कि कुछ और है. हालांकि वह स्वीकारने से गुरेज नहीं करते हैं कि अगर समय रहते इन बच्चों को इलाज मिल गया होता तो उन्हें बचाया जा सकता था.
सिंह साफ तौर पर स्वीकारते हैं की चूक सिस्टम में है, इसे कैसे और बेहतर बनाया जाए इसको लेकर प्रयास होने चाहिए. हालांकि वह दूसरी ओर कहते हैं कि सरकार ने इस मुद्दे पर श्वेतपत्र लाने का ऐलान किया है. एक कमेटी बनाई है जो पूरे मुद्दे पर काम कर रही है. जल्द ही श्वेतपत्र आएगा, उसमें इससे निपटने का एक्शन प्लान भी होगा.
महिला बाल विकास के प्रमुख सचिव जेएन कंसोटिया इस समस्या को अलग नजरिए से देखते हैं. उनका कहना है कि कुपोषण से कभी मौत नहीं होती है. श्योपुर में मौतें हुई हैं, उसकी वजह कुपोषण नहीं है. मौतें गरीबी और सेनिटेशन के प्रति जागरुकता नहीं होने के कारण हुई हैं.
छोटे बच्चे बीमारियों का शिकार हो रहे हैं और कुपोषित होने के कारण उन बीमारियों से लड़ नहीं पा रहे हैं. वह सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं कि अगर कुपोषण से मौतें हो रही हैं तो सिर्फ श्योपुर में क्यों हो रही हैं, दूसरे जिलों में भी होनी चाहिए. कुपोषित बच्चे तो पूरे प्रदेश में हैं.
जेएन कंसोटिया की राय से इतर एक आंकड़ा यह भी है कि प्रदेश के दूसरे जिलों से भी अब कुपोषण से होने वाली मौतें सामने आने लगी हैं. अभी हाल ही में विदिशा जिले में एक कुपोषित बच्चे की मौत हुई है. इन सबके बाद भी पूरे प्रदेश में कुपोषित बच्चों के मिलने का सिलसिता बदस्तूर जारी है.
First published: 1 October 2016, 2:27 IST