इस वैलेनटाइन डे पर मिलिए एजेंट्स ऑफ इश्क से

पारोमिता वोहरा बहूमुखी प्रतिभा की धनी हैं. वो नारीवादी लेखिका हैं, जेंडर जस्टिस एक्टिविस्ट हैं और फिल्ममेकर हैं. हाल ही उन्होंने डिजिटल दुनिया में कदम रखा है. उन्होंने पिछले साल 'एजेंट्स ऑफ इश्क़' नाम की एक वेबसाइट शुरू की है. वेबसाइट लव और सेक्स और उसके दरम्यान आने वाली चीजों पर केंद्रित है. वेबसाइट की टैगलाइन है, 'वी गिव सेक्स गुड नेम' (हम सेक्स को भला नाम देते हैं).
पारोमिता मुंबई में रहती है. वैलेंनटाइन डे के मौके पर कैच ने उनसे फोन पर खास बातचीत की. पढ़ें बातची के प्रमुख अंशः
क्या एजेंट्स ऑफ इश्क वैलेनटाइन डे पर कुछ खास कर रहा है? अगर हाँ तो क्या?
हमने कुछ दिन पहले ही वैलेनटाइन डे मनाना शुरू किया. रोज डे के दिन हम मुंबई के रुइया कॉलेज में गए और एलजीबीटी समुदाय से बातचीत की. अच्छी बात ये है कि वो प्यार को एलजीबीटी के प्यार के रूप में नहीं देखते. उन्होंने हमें बताया कि प्यार एक सार्वभौमिक भावना है.
एजेंट्स ऑफ इश्क से हमने जाना कि जब लोगों का किसी एलजीबीटी से परिचय होता है तो प्रेम की उसकी परिभाषा बदल जाती है. वीडियो के अलावा हम ऐसी छोटी छोटी प्यार भरी पेश कर रहे हैं जिसे ऑनलाइन शेयर किया जासके. मसलन, हर भारतीय प्रमुख भारतीय भाषा में किस मैप लॉन्च किया है जिससे अलग अलग तरह के रिश्तों की झलक मिलती है.
संत वैलेनटाइन हर तरह के रिश्ते को अपना आशीर्वाद देते थे. इसलिए इस वैलेनटाइन डे पर हमने प्रेम के ज्यादा व्यापक और खुली अवधारणा को सेलिब्रेट किया है.
नौजवान भारतीयों के लिए इसका क्या महत्व है? क्या इसकी कोई भारतीय अवधारणा हम विकसित कर सके हैं या बस आयातित विचार है हमारे पास?
जो संगठन लगातार वैलेनटाइन डे का विरोध करते रहे हैं वो इसबार ऐसा न करके अपना काफी समय बचा सकते हैं. करीब 15 साल पहले वैलेनटाइन डे को भारत में अहमियत मिलनी शुरू हुई. वो तब से विरोध कर रहे हैं. अब तो उनकी कोई ज्यादा परवाह भी नहीं करता. इससे यही पता चलता है कि भारत अब इसे पूरी तरह स्वीकार कर चुका है.
एजेंट्स ऑफ इश्क से हमने जाना कि जब लोगों का किसी एलजीबीटी से परिचय होता है तो प्रेम की उसकी परिभाषा बदल जाती है
तमिलनाडु में एक आदमी ने तो श्री वैलेनटाइन कृष्णा का मंदिर ही बनवा दिया है. ये बहुत खूबसूरत विचार है कि एक संस्कृति के लोग किसी दूसरी संस्कृति से जुड़ जाएं. इससे पता चलता है कि ये इस या उस रूप में हमारे यहां भी मौजूद रहा है.
कुछ साल पहले हमें मराठी और गुजराती में छपे वैलेनटाइन कार्ड दिखने लगे. इसलिए मुझे नहीं लगता कि ये कहना सही है कि प्यार किसी और संस्कृति से ली गई चीज है. लेकिन जाहिर है कि अब इसका'एक खास दिन' है और जिसे एक कमॉडिटी बना दिया गया है जिसपर एक पूरा बाजार पलता है.
जब मामला चाहत का हो तो आपको कोई चीज क्यूं चाहिए ये पूछना बचकाना सवाल है
बुरी बात ये है कि मार्केटिंग कंपनियां प्यार के बहुत ही संकीर्ण नजरिए का प्रचार करती हैं. वो स्त्री और पुरुष के बीच के प्रेम की रूढ़ छवि को आगे बढ़ाती हैं. हम सबको पता है कि रोजमर्रा के जीवन प्यार इस रूढ़ ढर्रे पर नहीं होता. प्यार एक बहुत ही खट्टा-मीठा अहसास होता है. मार्केटिंग इंड्स्ट्री जो प्यार के बारे में बताती हैं असल जिंदगी में ये उससे कहीं ज्यादा मजेदार और विविधता भरा होता है.
श्री राम सेना जैसे संगठन इस दिन को माता-पिता पूजन दिवस के रूप में मनाना चाहिए. आप उनसे कुछ कहना चाहेंगी?
हम हमने माता-पिता से रोज ही प्यार करते हैं. उसके लिए क्या किसी एक खास दिन की जरूरत है?
कई लोग तो स्त्री पुरुष के प्रेम के बारे में भी यही कहते हैं?
हां, इसके लिए किसी 'एक खास दिन' की जरूरत नहीं. असल में हमें जन्मदिन या स्वतंत्रता दिवस की भी जरूरत नहीं होती. इस तरह देखा जाए तो जिंदगी में कोई भी दिवस मनाने की जरूरत नहीं.
जिंदगी जीने के लिए बस दो वक्त का खाना, चार कपड़े और सिर पर एक छत काफी है. कोई कह सकता है कि जिंदगी पूजा-प्रार्थना के बिना भी चल सकती है. लेकिन लोग अपनी श्रद्धा व्यक्ति करने के लिए प्रार्थना करते हैं.
मुझे ये लगता है कि जब मामला चाहत का हो तो आपको कोई चीज क्यूं चाहिए ये पूछना बचकाना सवाल है. जिंदगी केवल जरूरत से नहीं चलती. उसमें इच्छाओं का भी अहम स्थान होता है. हम ये चाहते हैं बस इसीलिए ये चाहिए!