Akali Dal quits NDA: कृषि बिल के विरोध में अकाली दल ने NDA से तोड़ा नाता, ऐसा रहा BJP के साथ 23 साल लंबा सफर

Akali Dal quits NDA: बीजेपी (BJP) की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) ने शनिवार को उसका साथ छोड़ दिया. अकाली दल ने ये फैसला हाल ही में संसद मेें पारित किए गए कृषि अधिनियमों (Agriculture Bills) के विरोध में लिया है. इसी के साथ एनडीए (NDA) के साथ शिरोमणि अकाली दल का 23 साल का सफर समाप्त हो गया. इससे पहले कृषि बिलों के विरोध में अकाली दल के कोटे से केंद्र में मंत्री बनी हरसिमरत कौल बादल (Harsimrat Kaur Badal) ने इस्तीफा दे दिया था. हरसिमरत कौर के इस्तीफा देने के बाद अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) ने पहले कहा था कि उनकी पार्टी सत्तारूढ़ पार्टी के साथ संबंधों की समीक्षा कर रही है.
अकाली दल ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से से किसानों के साथ खड़े होने और विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं करने का अनुरोध किया है. अकाली दल का अलग होना बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका है. क्योंकि उसके सबसे विश्वस्त सहयोगियों में शामिल दो प्रमुख दल शिवसेना और अकाली दल अब उसके साथ नहीं रहे हैं. एनडीए से अलग होने की घोषणा करते हुए अकाली दल (Akali Dal) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि उन्होंने यह फैसला सर्वसम्मति से लिया गया है.
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हरसिमरत कौर के इस्तीफा देने के बाद से ही कृषि बिलों (Farm Bills) पर सरकार का विरोध करने के चलते अकाली दल और बीजेपी (BJP) मे तनातनी चल रही थी. बता दें कि बीजेपी (BJP) और अकाली दल (SAD) की ये साझेदारी दो दशक से ज्यादा पुरानी थी. साल 1992 तक अकाली दल और बीजेपी पंजाब (Punjab) में अलग-अलग ही चुनाव लड़ते थे. लेकिन सरकार बनाने के लिए दोनों पार्टियों ने आपस में हाथ मिला लिया.
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साल 1996 में बीजेपी और अकाली दल मोगा डेक्लरेशन नाम के एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद साथ आए थे. जिसके बाद ही पहली बार दोनों ने मिलकर साल 1997 में चुनाव लड़ा. तभी से यह रिश्ता चला आ रहा था. मोगा डेक्लरेशन एक तरह का समझौता पत्र था, जिसमें विजन को लेकर तीन प्रमुख बातों पर जोर था- पंजाबी पहचान, आपसी भाईचारा और राष्ट्रीय सुरक्षा. दरअसल, 1984 के दंगों के बाद से ही माहौल बहुत खराब हो गया था तो ऐसे में इन मूल्यों के साथ दोनों पार्टियों ने हाथ मिलाया था.
Shiromani Akali Dal core committee decides unanimously to pull out of the BJP-led #NDA because of the Centre’s stubborn refusal to give statutory legislative guarantees to protect assured marketing of crops on #MSP and its continued insensitivity to Punjabi and #Sikh issues. pic.twitter.com/WZGy7EmfFj
— Sukhbir Singh Badal (@officeofssbadal) September 26, 2020
जानकारों ने इस गठबंधन को यूं देखा कि अकाली पूरे सिख समाज को अपने पीछे एकजुट नहीं कर सकते थे. सिख समाज बंटकर वोट कर रहा था. ऐसे में बीजेपी में उन्होंने एक ऐसा सहयोगी देखा, जो उनके वोट बैंक में सेंध लगाए बिना उसे बढ़ाने का काम करता. वैसे अकाली दल को बीजेपी से गठबंधन के बाद पंजाब विधानसभा चुनावों में खूब फायदा हुआ. बीजेपी और अकाली दल का यह गठबंधन साल 2007 से 2017 तक पंजाब की सत्ता में रहा. हालांकि इस गठबंधन के हमेशा दिन अच्छे नहीं रहे, कई बार मात भी खानी पड़ी. लेकिन उतार-चढ़ावों के बीच भी गठबंध सुरक्षित रहा. लेकिन अब कृषि बिलों के खिलाफ जब पंजाब और हरियाणा के किसान सड़कों पर आ गए तो शिरोमणि अकाली दल ने बीजेपी से अपने 23 साल पुराने रिश्ते तोड़ लिए.
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एनडीसे अलग होने के बाद अकाली दल ने कहा है कि एमएसपी पर किसानों के उत्पाद की मार्केटिंग सुनिश्चित करने के अधिकार की रक्षा के लिए वैधानिक विधायी गारंटी देने से केंद्र सरकार ने मना कर दिया. इसके कारण बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से अलग होने का फैसला करना पड़ा. पंजाबी और सिख समुदाय से जुड़े मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार की असंवेदनशीलता को देखते हुए ये फैसला किया गया है.
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First published: 27 September 2020, 7:25 IST