जेपी नड्डा: एंटीबायोटिक प्रतिरोध क्षमता बन सकती है महामारी, सभी मंत्रालय मिलकर करें सामना
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रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) एक गंभीर खतरा है. जो एंटीबायोटिक दवाएं अब तक किसी रोग विशेष के लिए शत प्रतिशत कारगर थीं, एएमआर के कारण वो अपना असर खो सकती है. इस स्थिति में बैक्टीरिया इन दवाओं के प्रति तेजी से प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर लेते हैं. आसन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपात स्थिति से निपटने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने बुधवार को कई मंत्रालयों से मिलकर काम करने का अनुरोध किया. नड्डा ने कहा कि इस समस्या का मूल कारण मेडिकल और मवेशी उद्यमों में एंटीबायोटिक का दुरुपयोग है. यह एक ‘बड़ी चुनौती’ है, जिससे उनका मंत्रालय अकेले निपट नहीं सकता.
22 फरवरी को पशुपालन, कृषि, औषध और पर्यावरण मंत्रालय मिलकर एएमआर के विरुद्ध मुहिम शुरू करेंगे और नई नीतियां बनाएंगे. नड्डा ने कहा, ‘हम सभी मंत्रालयों के साथ एमओयू भी रखेंगे. हम एक एक्शन प्लान विकसित करेंगे और नीतियों को उस दिशा में संचालित करेंगे.’
कागजों में कानून
एएमआर खतरनाक गति से क्यों फैल रहा है? इसकी एक वजह मवेशियों में एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक प्रयोग है. इनका इस्तेमाल पशुओं का वजन या दूध बढ़ाने के लिए किया जाता है. एएमआर जीवाणुओं को उन दवाओं के लिए प्रतिरोधी बना देता है, जो उनका इलाज करती हैं.
पब्लिक सेक्टर एएमआर का सामना कर सकते हैं. पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ, एक्टिविस्ट और स्वास्थ्य सचिव सीके मिश्रा का मानना है कि इसके लिए प्राइवेक्टर सेक्टर में काफी कुछ करना बाकी है. यहां ऑडिटिंग और नियमों का लागू करना आसान नहीं है. डॉक्टर्स और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि एंटीबायोटिक के गैर-कानूनी उपयोग के विरुद्ध कानून नाम मात्र को हैं.
भारत में सीमित एंटीबायोटिक नीति है. यह नेशनल पॉलिसी फॉर कंटेनमेंट ऑफ एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस का हिस्सा है. यह नीति तेज एंटीबायोटिक के अनावश्यक इस्तेमाल के लिए मना करती है. कानून के हिसाब से अस्पतालों को प्रतिरोधी बेक्टीरिया का आंकड़ा एकत्र करना है. मेडिकल स्टोर्स से ली गई कुल एंटीबायोटिक दवाओं की कुल खपत के आंकड़े का मासिक हिसाब भी रखना है.
कानून, इंसानी और पशु-चिकित्सा और उद्योगिक सेक्टरों में एंटीबायोटिक्स के उपयोग के लिए भी विनियामक प्रावधान को अमल में लाने का आदेश देता है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर)के एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, ‘चिकित्सक या औषध विक्रेता जरूरत नहीं होने पर भी वाइरल इंफेक्शंस जैसी स्थितियों में एंटीबायोटिक दे सकते हैं.’
बढ़ते मामले
डॉ. कामिनी वालिया के मुताबिक आईसीएमआर के महामारी विज्ञान और संक्रामक रोग विभाग से प्राप्त 2013 के राष्ट्रीय आंकड़े बताते हैं कि अस्पतालों में दवा-प्रतिरोधी संक्रमण बढ़ रहे हैं. इन आंकड़ों से यह भी जानकारी मिलती है कि एसिनेटोबेक्टर बौमनी और क्लेबसिएला निमोनिया जैसे तथाकथित सुपरबग्स, कार्बापीनेम के लिए 70 फीसदी प्रतिरोध दिखाते हैं.
कभी कार्बापीनेम निमोनिया और यूरिनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन के लिए बहुत प्रभावी एंटीबायोटिक थी. और अब न्यू देहली मेटालो-बीटा-लेक्टमेस-1(एनडीएम) भी एक जीन है, जो कई एंटीबायोटिक्स को बेक्टीरिया प्रतिरोधी बनाता है. इसमें कार्बापीनेम, पेनिसीलन और सेफालोसपोरिंस शामिल हैं.
पिछले साल एक सत्तर वर्षीय अमेरिकी महिला दो साल पहले टूटी जांघ की हड्डी का भारत में इलाज करवा रही थीं. इस दौरान उन्हें संक्रमण हो गया और उन्हें एंटीबायोटिक्स दी गईं. इन दवाओं ने उन पर असर नहीं किया और उनकी मौत हो गई. बाद में डॉक्टर ने पाया कि उनके सिस्टम में एनडीएम-1 मौजूद था.
First published: 19 February 2017, 7:51 IST