सिंहस्थ कुंभ में जाति का जहर घोल रही भाजपा और संघ

- जो अब तक नहीं हुआ था वो शायद अब होने वाला है. मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में जारी सिंहस्थ महाकुंभ में पहली बार अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिये अलग से स्नान का आयोजन किया जा रहा है.
- राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की आनुषंगिक संस्था पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन उज्जैन कुंभ में समरसत और शबरी के नाम से दलितो और जनजातियों के लिए स्नान का आयोजन करेगी.
- भाजपा के इस कदम ने साधु-संतों और श्रद्धालुओं को दो धड़ों में बांट दिया है. ऐसे भी साधु भी है जो इसे सही ठहरा रहे है और अमित शाह का स्वागत करना चाहते है.
धर्म और राजनीति अलग-अलग चलने वाली धाराएं हैं. इनका घालमेल अक्सर बुरे परिणाम सामने लाता है. विशेषकर भारत जैसे मिश्रित समाज में इसका अलग-अलग चलना जरूरी नहीं बल्कि अंतिम विकल्प है. एक सच यह भी है कि धर्म लंबे समय से समाज की दिशा तय करता रहा है.
देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग समय पर होने वाले कुंभ और महाकुंभ के मेले उस परंपरा की जीवित मिसाल हैं. यह मेले इस लिहाज से अनोखे हैं कि इनमें अब तक किसी तरह का सीधा राजनीतिक हस्तक्षेप देखने को नहीं मिला है.
हालांकि राजनेता अपनी सुविधा के मुताबिक जब-तब इसका इस्तेमाल करने की कोशिशें करते रहे हैं. 2012 में इलाहाबाद के महाकुंभ में भाजपा के तत्कलीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने संगम पर डुबकी लगाई थी. थोड़ा और पीछे जाएं तो आपातकाल के दौरान सन 1977 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल खत्म कर नए चुनाव करवाने की घोषणा भी इलाहाबाद के कुंभ में ही की थी. लेकिन कुंभ की अंतरंग परंपराओं में अब तक किसी तरह का बड़ा राजनीतिक हस्तक्षेप देखने को नहीं मिला था.
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जो अब तक नहीं हुआ था वो शायद अब होने वाला है. मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में जारी सिंहस्थ महाकुंभ में पहली बार अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिये अलग से स्नान का आयोजन किया जा रहा है. राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की आनुषंगिक संस्था पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन इस आयोजन की सूत्रधार है.
अब संस्था पर सिंहस्थ जैसे कार्यक्रम में साधु संतों को जाति के नाम पर बांटने का आरोप लग रहा है. मसला सिर्फ संस्था से जुड़ा नहीं है. इसे मौजूदा सत्ताधारी भाजपा का भी समर्थन हासिल है.
पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन 11 मई को कुंभ में समरसता और शबरी स्नान के नाम से दो विशेष आयोजन अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिये करने जा रही है. इसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी शामिल होंगे. भाजपा के इस कदम से मध्यप्रदेश सरकार भी आरोपों के घेरे में आ गई है. ये दोनों स्नान तमाम पवित्र तिथियों पर होने वाले स्नान के इतर आयोजित होंगे.
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लोगों ने इस पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है कि आखिर सिंहस्थ महाकुंभ में जाति विशेष के लिये स्नान आयोजित करना कहां तक उचित है और क्या यह एक किस्म की राजनीतिक चाल नहीं है? विपक्षी कांग्रेस के साथ ही अब कुंभ में हिस्सा ले रहे साधु-संत भी इसका विरोध करने लगे हैं.
शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती ने समरसता स्नान को भाजपा की नौटंकी बताते हुए सवाल किया, “सिंहस्थ में दलितों को कभी किसी ने नही रोका है तो फिर इस बार इस तरह के नौटंकी भाजपा अध्यक्ष क्यों कर रहे हैं? ये महज़ दिखावा है और इससे दूरियां और बढ़ेंगी, कम नही होगी.”
पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन ने समरसता और शबरी स्नान के लिए बकायदा सर्क्युलर जारी किया था, जिसमें साफ साफ लिखा हुआ है कि इस स्नान के लिये अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के जनप्रतिनिधि जो कि सरपंच से लेकर सांसद तक हो सकते है. लोग सेवानिवृत्त अधिकारी और समाज के साधु संतों की सूची बनाएं ताकि उन्हें इसमें बुलाया जा सकें.
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लेकिन स्वामी स्वरुपानंद अकेले नहीं हैं जो इसकी खिलाफत कर रहे है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरीजी महाराज का कहना है, “साधुओं में कोई दलित या सवर्ण नही होता है. सिंहस्थ में हमेशा से ही सभी संत-महंत एक साथ स्नान करते है. अमित शाह अगर सिंहस्थ में आ रहे हैं तो वो साधु-संतों की सेवा करें, राजनीति से दूर रहें.”
हालांकि सभी लोग इसके विरोध में नहीं हैं. जाहिर है भाजपा के इस कदम ने साधु- संतों और श्रद्धालुओं को दो धड़ों में बांट दिया है. ऐसे भी साधु भी है जो इसे सही ठहरा रहे है और अमित शाह का स्वागत करना चाहते है. संत उमेशनाथ महाराज ने कहा कि हम हर मेहमान का स्वागत करते है और अमित शाह का भी स्वागत करेंगे. उन्होंने आगे कहा, “समरसता के लिये हम बरसों से मेहनत कर रहे है. इस तरह के अभियान चलाने की जरुरत है और ये सिंहस्थ के बाद भी जारी रहना चाहिये.”
धर्म और सियासत की जो राजनीति भाजपा ने सिंहस्त कुंभ में शुरू की है उसे दलीय दलदल में बदलने के लिए बाकी सियासी तंजीमें भी कूद पड़ी हैं. विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने इसके लिये बकायदा एक प्रस्ताव पास किया है और आरोप लगाया है कि भाजपा जिनकी सरकार प्रदेश में है वो इस आयोजन के जरिये एक तरफ राजनीति करना चाहती है और दूसरी तरफ समाज में भेदभाव पैदा करना चाहते है.
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मध्यप्रदेश कांग्रेस के विचार विभाग के प्रदेशध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने सवाल किया कि आखिर एक संस्था को जातीय आधार पर इस तरह के आयोजन करने की अनुमति क्यों दी गई है. वो कहते है,“सिंहस्थ लोगों को जोड़ने का संदेश देता है लेकिन सरकार इसके ज़रिये लोगों को तोड़ना चाह रही है.”
सामाजिक कार्यकर्ता अनुराग मोदी भी भाजपा के इस आयोजन से हैरान है. वो कहते है कि ये पूरी तरह से संविधान के विरुद्ध है. आखिर कैसे किसी जाति विशेष के लिये आप स्नान आयोजित कर समरसता की बात कर सकते है. जाति के आधार पर दलितो की खोजबीन और अलग से स्नान करा कर आखिर सरकार कौन सा मक़सद पूरा करना चाहती है.
धर्म में सियासत का दखल अनजान आदमी के हाथ में हथियार थमाने जैसी भूल है. आप हथियार पकड़ा तो सकते हैं लेकिन उसका इस्तेमाल किस रूप में होगा उस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं रहता.
First published: 7 May 2016, 8:33 IST