मायावती के खिलाफ सीबीआई के इस्तेमाल में भाजपा और सपा को दिक्कत नहीं

- मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले की सुनवाई 15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में होनी है. इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक कोर्ट के नोटिस का जवाब नहीं दिया है.
- संसद के पिछले दो सत्र में मायावती ने संसद में लगातार यह कहा है कि उनके खिलाफ बदले की राजनीतिक कार्रवाई में सीबीआई का इस्तेमाल किया जा सकता है.
उत्तर प्रदेश की सियासत इन दिनों सीबीआई की वजह से गर्म है. केंद्र की बीजेपी सरकार और उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार मायावती को निशाना बनाने के लिए सीबीआई के इस्तेमाल की योजना बना रही हैं. उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और मौजूदा स्थितियों में कमल और साइकिल के ऊपर हाथी भारी पड़ता दिख रहा है.
कानूनी अड़चन
सुप्रीम कोर्ट में 15 जनवरी को मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले की सुनवाई होनी है. 15 जनवरी को ही बसपा सुप्रीमो मायावती का जन्मदिन भी होता है.
आय से अधिक संपत्ति के मामले की सुनवाई 2014 से चल रही है जब एक नई याचिका पर मामले की सुनवाई शुरू हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई, केंद्र सरकार, राज्य सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी उनका जवाब मांगा था.
आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट के नोटिस पर अभी तक उत्तर प्रदेश सरकार ने जवाब नहीं दिया है
राज्य सरकार ने फिलहाल इस मामले में कोई जवाब नहीं दाखिल किया है. वहीं मायावती कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर चुकी हैं. मायावती की तरफ से दिए गए जवाब में कहा गया है कि जब एक बार इस मामले में फैसला आ चुका है तो कोर्ट फिर से इस मामले को कैस सुन सकता है. उन्होंने कोर्ट से अपील की है कि उनके राजनीतिक विरोधियों को इसका राजनीतिक फायदा उठाने से रोका जाए जो इसकी आड़ में उनकी छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं.
ऐसा लगता है कि यह राज्य की सत्ताधारी पार्टी का मकसद है क्योंकि उसने अभी तक इस मामले में कोई आधिकारिक प्रातिक्रिया नहीं दी है.
यह चौंकाने वाली बात इस लिहाज से बिलकुल भी नहीं है क्योंकि पिछले दो सत्र में मायावती ने संसद में लगातार यह कहा है कि उनके खिलाफ बदले की राजनीतिक कार्रवाई में सीबीआई का इस्तेमाल किया जा सकता है.
सत्ता का खेल
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में साल भर से थोड़ा ज्यादा समय बचा है. ऐसे में सभी दलों ने अपनी तरफ से चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं. सत्ताधारी समाजवादी पार्टी 2012 के लोकप्रिय जनादेश को खोती नजर आ रही है. सरकार के बीच चल रही खींचतान और सत्ता की लड़ाई से अखिलेश यादव सरकार की छवि जनता के बीच खराब हो रही है.
राज्य की सियासत में दो मजबूत ध्रुव हैं. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जबकि बीजेपी का पिछले कुछ चुनावों में बुरा प्रदर्शन रहा है. हालांकि पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 80 में से 73 सीटें जीत ली थी.
लेकिन इस जीत के आधार पर 2017 की जीत के दावे नहीं किए जा सकते. बीजेपी यह बात बेहद अच्छे से समझती भी है.
'उत्तर प्रदेश में सपा और बीजेपी की आपसी मिलीभगत के बिना 226 दंगे नहीं हो सकते थे'
कांग्रेस की हालत राज्य में लगातार कमजोर होती जा रही है और अन्य ताकतवर दलों की गैर मौजूदगी में बसपा सबसे बड़े दल के तौर पर उभरती दिखाई दे रही है. और फिर यहां सीबीआई की एंट्री होती है.
मायावती के खिलाफ सीबीआई जांच से बीजेपी और सपा दोनों को फायदा होगा. दोनों पार्टियां राज्य में वैसा चुनाव चाहेंगी जिसमें कोई तीसरा दल मैदान में शामिल नहीं हो.
तीसरा पक्ष
राज्य की सियासत में सीबीआई की भूमिका को लेकर किसी को संदेह नहीं है. उत्तर प्रदेश के लोगों को इसकी बेहतर समझ है. बसपा के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने कैच को बताया, 'दोनों (बीजेपी और सपा) कमजोर पड़ रहे हैं. वह हर संभव पैंतरा आजमाने की कोशिशों में लगे हुए हैं.'
मौर्य ने कहा, 'मौजूदा सरकार के शासनकाल में 226 बड़े दंगे हुए हैं. अयोध्या में पत्थर गिराए जा रह हैं. यह दोनों पार्टियों की मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं है.' उन्होंने कहा कि सीबीआई का इस्तेमाल किया जाता रहा है और राजनीतिक बदले की भावना के तहत वह बहुत कुछ कर सकते हैं.
उनका मानना है कि मायावती के खिलाफ किसी भी हद तक जाकर सीबीआई का इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसा कि बिहार चुनाव में हुआ था. उस वक्त मायावती ने राजनीतिक बदले की प्रक्रिया की जमकर आलोचना की थी.
मौर्य ने कहा, 'सीबीआई का इस्तेमाल जनता परिवार के गठन को रोकने के दौरान भी किया गया. मुलायम महागठबंधन से इसलिए निकले ताकि मोदी को बिहार में फायदा पहुंचाया जा सके. वह इस बार भी ऐसा कुछ कर सकते हैं. यह सीधे-सीधे सीबीआई के दुरुपयोग और बीजेपी-सपा की मिलीभगत का मामला है.'
बसपा के एक अन्य नेता ने कहा, 'यादव सिंह से लेकर अन्य मामलों में राज्य सरकार और उसके नेता मोदी के दबाव में हैं. वह उनके हर आदेश का पालन करेंगे.' हालांकि सीबीआई के इस्तेमाल से मायावती को मदद भी मिल सकती है क्योंकि इससे उनके पक्ष में सहानुभूति की लहर पैदा होगी और उनका परंपरागत वोट बैंक बिखरने से बच जाएगा.
फिलहाल हम उनके जन्मदिन तक का इंतजार कर रहे हैं. जब उनके समर्थक उनके घर पर जमा होंगे और फिर उनका संदेश मतदाताओं तक पहुंचाएंगे. हम इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं.