जान लीजिए 'पूर्ण शराबबंदी' की चाह में नीतीश कुमार ने किस 'काले कानून' को जन्म दिया है

- देश के जिन अन्य राज्यों में शराबबंदी सफल रही है, वहां भी \'पूर्ण शराबबंदी\' जैसा कुछ नहीं है. गुजरात जैसे राज्य में \'पूर्ण शराबबंदी\' के बावजूद शराब उपलब्ध होती है.
- यह पाखंड बिहार में बना हुआ है कि राज्य में शराब बनती रहेगी. शराब कारखानों का लाइसेंस रद्द नहीं किया गया है.
- नीतीश कुमार शराबबंदी के फैसले को महिलाओं के सशक्तिकरण का उपाय बताते रहे हैं. सच्चाई यह है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में शराब सिर्फ एक वजह होती है.
- बिहार अभी भी महिलाओं की दुर्दशा के लिहाज से सबसे खराब राज्यों में से एक है. महिला साक्षरता के मामले में बिहार का प्रदर्शन सबसे अधिक खराब रहा है.
सोमवार को वाराणसी में सोनिया गांधी की रैली और फिर तबीयत बिगड़ने के कारण उनका रैली बीच में ही छोड़ कर दिल्ली आना और मंगलवार को राज्यसभा में बहुप्रतीक्षित गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को पेश किए जाने जैसी राष्ट्रीय सुर्खियों के बीच बिहार विधानसभा ने एक ऐसा कानून पास कर दिया है जिसे देश का सबसे दमनकारी कानून कहा जा सकता है.
कमजोर विपक्ष की गंभीर आपत्तियों और फिर उनके सदन से वाक आउट के बावजूद बिहार सरकार ने मद्यनिषेध और उत्पादन विधेयक-2016 को ध्वनिमत से पारित कर दिया. नया कानून बिहार उत्पाद (संशोधन) विधेयक 2015 की जगह लेगा. विपक्ष ने दो संशोधन प्रस्ताव पर मत विभाजन की मांग की थी जो खारिज हो गया.
बिहार में शराबबंदी की सफलता और इससे हुए सामाजिक बदलाव से जुड़ा कोई अध्ययन सरकार के पास नहीं है. लेकिन इसके बावजूद बिहार सरकार ने एक कदम आगे बढ़ते हुए मौजूदा कानून में ऐसे बदलाव कर दिए हैं जो न केवल अलोकतांत्रिक और संविधान में दिए गए बुनियादी अधिकारों के खिलाफ है, बल्कि इसके बेजा इस्तेमाल की संभावना को कई गुना बढ़ा देता है.
कानून में बदलाव के बाद हालांकि सरकार ने बचपन बचाओ आंदोलन की तरफ से शराबबंदी के प्रभाव का अध्ययन कराए जाने की घोषणा की. लेकिन कानून उसने पहले ही पास कर दिया है.
- नए कानून में जिन दमनकारी प्रावधानों को शामिल किया गया है, उनमें सबसे खतरनाक प्रावधान घर में शराब की बोतल मिलने या उसकी खपत के मामले में परिवार के सभी बालिग सदस्यों को गिरफ्तार किया जाना है. परिवार में पति, पत्नी और उनके बच्चों को रखा गया है.
- शराब को बनाने में अगर कोई व्यक्ति वाहन, बर्तन या अन्य समान मुहैया कराता है तो उसे भी दोषी माना जाएगा.
- कानून के तहत आरोपी पर खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी होगी.
- अगर शराब कारखाने के भीतर कोई व्यक्ति शराब का इस्तेमाल करता हुआ पाया जाता है तो न केवल उसके खिलाफ बल्कि कंपनी के मालिक या फिर यूनिट हेड को भी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.
- अगर कोई व्यक्ति अपने घर पर किसी को पीने की अनुमति देता है तो उसे कम से 8 साल जेल की सजा (इसे बढ़ाकर 10 साल भी किया जा सकता है) और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है.
- अगर किसी के घर या परिसर में शराब की बोतल पाई जाती है तो न केवल उसे सील कर दिया जाएगा बल्कि उसे जब्त भी कर लिया जाएगा.
- जिला कलेक्टर को पूरे गांव या लोगों के समूह पर सामूहिक जुर्माना और जेल भेजने का भी अधिकार दिया गया है.
राज्य सरकार का कहना है कि अगर किसी के घर में शराब मिले, तो उसके लिए किसी की जिम्मेदारी तय करनी होगी. लेकिन सरकार से यह पूछा जाना चाहिए कि अगर किसी के घर या परिसर में शराब की बोतल मिलती है तो उसके लिए पूरे परिवार की जिम्मेदारी कैसे तय की जा सकती है?
कानून का उल्लंघन करने वाले की जवाबदेही तय नहीं किए जाने की खीझ में क्या पूरे परिवार, समुदाय या समूह को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
भारतीय दंड संहिता के मुताबिक किसी व्यक्ति को अपराध के लिए तभी सजा दी जा सकती है जब
- किसी ने सीधे तौर पर अपराध किया हो
- या फिर वह आपराधिक साजिश का हिस्सा हो
- या वह किसी अवैध सभा का हिस्सा हो जिसने अपराध किया हो.
नीतीश सरकार का मौजूदा कानून इन तीनों के खिलाफ जाता है.
गुजरात हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट आनंद याज्ञनिक कहते हैं, 'दीवानी मामले में आपको संपत्ति और विरासत दोनों साथ मिलते हैं लेकिन फौजदारी मामले में ऐसा नहीं है. फौजदारी मामले में आप किसी व्यक्ति के अपराध की सजा दूसरे व्यक्ति को नहीं दे सकते. पिता अगर घर पर शराब पी रहा है तो आप उसके लिए बेटे को कैसे सजा दे सकते हैं? हमारा संविधान इसकी अनुमति नहीं देता.'
याज्ञनिक बताते हैं कि संपत्ति का अधिकार भले ही मौलिक अधिकार नहीं है लेकिन वह एक संवैधानिक अधिकार जरूर है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जीवन जीने के अधिकार से जुड़ा है. इसलिए किसी के घर में शराब पीने के बावजूद आप उसे न तो सील कर सकते हैं और नहीं जब्त कर सकते हैं. आप पिता या बेटे के अपराध के बदले परिवार के दूसरे सदस्य को घर से कैसे बेघर कर सकते हैं?
कानून का बेजा इस्तेमाल
बिहार समेत उत्तर भारत के राज्यों में पत्नियां या घर की महिलाएं क्या उतनी सशक्त हैं जो अपने पति या बेटे को घर में शराब लाने या पीने से रोक पाएं? फिर इसकी क्या गारंटी है कि कोई व्यक्ति किसी से अपनी दुश्मनी निकालने के मकसद से घर या कंपनी के परिसर में शराब की बोतल नहीं रखवा सकता. नए कानून में इन पक्षों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है, जबकि ऐसा बिहार में धड़ल्ले से हो रहा है.
बक्सर और कैमूर जिले में उत्पाद विभाग के कर्मचारी वाहन चेकिंग के दौरान लोगों की गाड़ी में शराब की बोतल रख देते थे और फिर गिरफ्तारी का भय दिखाकर उनसे अवैध उगाही करते थे. जांच में यह घटना सही साबित हुई और फिर सभी अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया गया.
इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए नए कानून में लोगों को फंसाने के मामले में होने वाली सजा को तीन महीने से बढ़ाकर तीन साल किए जाने के साथ जुर्माने की रकम को एक लाख रुपया कर दिया गया है.
लेकिन बिहार में कनविक्शन दर में आई गिरावट को देखते हुए कहा जा सकता है कि नए कानून से पुलिस एवं उत्पाद विभाग के अधिकारियों को भ्रष्टाचार और उगाही की छूट मिलेगी. यह 'पूर्ण शराबबंदी' की आड़ में बिहार को पुलिस राज की तरफ ले जाएगा.
आंकड़े बताते हैं कि बिहार में अपराधियों को सजा दिलाए जाने की दर में तेज गिरावट आई है. जबकि अपने कार्यकाल में नीतीश कुमार को इसके लिए तारीफ मिली थी. ऐसे में दोषी अधिकारियों के खिलाफ फौरी कार्रवाई की उम्मीद बेमानी नजर आती है.
बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक 2010 से 2015 के बीच बिहार में अपराधियों को सजा दिलाए जाने की दर में 68 फीसदी की गिरावट आई है. 2010 में ऐसे मामलों की संख्या 14,311 थी जो 2015 में घटकर 4,513 हो गई.
मुख्यमंत्री को यह बात जरूर पता होगी कि सजा मिलने की दर में आई कमी से अपराध और भ्रष्टाचार को किस कदर बढ़ावा मिलता है?
बिहार में पिछले छह महीनों में ताबड़तोड़ अपराध की घटनाएं इसकी पुष्टि करती हैं. सरकार सामान्य संज्ञेय अपराध की घटनाओं से निपटने में फिसड्डी रही है.
पूर्ण शराबबंदी की सनक
नीतीश कुमार के नेतृत्व में दो तिहाई से अधिक बहुमत से बनी जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार विधानसभा में निरंकुश बर्ताव करती नजर आई. सरकार के शराबबंदी के फैसले का शायद ही किसी ने विरोध किया हो लेकिन उसकी आड़ में मनमाने कानून को थोपना सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल उठाता है.
विधानसभा में बहस के दौरान बीजेपी विधायक नंद किशोर यादव, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर के प्रेसिडेंट जीतन राम मांझी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के विधायक लल्लन प्रसाद और सीपीआई माले लिबरेशन के विधायक महबूब आलम ने इसके खिलाफ आवाज उठाई.
इन्होंने सरकार से परिवार के सभी सदस्यों की गिरफ्तारी संबंधी प्रावधान के बेजा इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए विधेयक को पारित नहीं किए जाने की मांग की लेकिन सरकार ने यह कहते हुए विपक्ष की वाजिब चिंता को खारिज कर दिया कि नए कानून से 'पूर्ण शराबबंदी' की स्थिति हासिल करने में मदद मिलेगी.
देश के जिन अन्य राज्यों में शराबबंदी सफल रही हैं वहां भी 'पूर्ण शराबबंदी' जैसा कुछ नहीं है. गुजरात जैसे राज्य में 'पूर्ण शराबबंदी' के बावजूद शराब उपलब्ध होता है. 'पूर्ण शराबबंदी' एक सनक से ज्यादा कुछ नहीं. वैसे भी बिहार में शराब कारखानों का लाइसेंस रद्द नहीं किया गया है.
सरकार का कहना है कि अगर कंपनियों के लाइसेंस रद्द किए गए तो वह हर्जाना मांगेगी. इसलिए हम उनका लाइसेंस रेन्यू करते रहेंगे और वह एक दिन खुद ही बिहार छोड़कर चली जाएंगी.
सरकार ने यह कैसे मान लिया कि बड़ा निवेश करने और भारी भरकम लाइसेंस शुल्क का भुगतान करने के बाद कंपनियां बिहार छोड़कर चली जाएंगी, समझ से परे है.
अपराध नियंत्रण का झूठा दावा
दूसरी तरफ सरकार ने वोट बैंक का ख्याल रखते हुए ताड़ी के सेवन को प्रतिबंध के दायरे से बाहर कर दिया है. ताड़ी के उत्पादन और कारोबार को राज्य में नीरा के उत्पादन व्यवस्था को शुरू होने तक जारी रखा जाएगा.
निश्चित तौर पर इससे ताड़ी की खपत में बढ़ोतरी होगी. बिहार के गांवों में सस्ती शराब की खपत आम रही है और इसे पीने वाले को ताड़ी के सेवन से कोई गुरेज नहीं होगा. क्या ताड़ी के सेवन की अनुमति दिए जाने से ग्रामीण इलाकों घरेलू हिंसा मामले नहीं बढ़ेंगे?
नीतीश कुमार शराबबंदी के फैसले को महिलाओं के सशक्तिकरण का उपाय बताते रहे हैं. उनका कहना रहा है कि शराबबंदी के फैसले से राज्य में महिलाओं के खिलाफ होने वाले घरेलू हिंसा के मामलों में कमी आई है. हालांकि सच्चाई यह है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में शराब एक वजह होती है.
कुमार राज्य में महिलाओं की दशा सुधारने में पूरी तरह से विफल रहे हैं. बिहार अभी भी महिलाओं के लिए सबसे खराब राज्यों में से एक है.
महिला साक्षरता के मामले में बिहार का प्रदर्शन सबसे अधिक खराब रहा है. 2011 की जनगणना के मुताबिक बिहार में महिला साक्षरता दर 51.1 फीसदी है, जबकि पड़ोसी राज्य झारखंड की महिला साक्षरता दर 55.4 फीसदी है.
मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिसटिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन के आंकड़ों के मुताबिक महिला श्रम शक्ति भागीदारी (एफडब्ल्यूपीआर) के मामले में भी बिहार सबसे निचले पायदान पर खड़ा है.
बिहार में प्रति 1,000 महिलाओं में से महज 90 महिलाएं काम करती हैं जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा प्रति 1,000 महिलाओं पर 253 है. राजस्थान की महिला श्रम शक्ति भागीदारी राष्ट्रीय औसत 331 के मुकाबले 453 है.
पूर्ण शराबबंदी के बाद बिहार में अपराध के मामलों में कमी आना तो दूर उसमें बढ़ोतरी ही हुई है. अप्रैल, मई और जून में राज्य में संज्ञेय अपराधों की संख्या में उत्तरोतर वृद्धि हुई है.
अप्रैल, मई और जून 2016 में बिहार में क्रमश: 14,279, 16,208 और 17,507 मामले दर्ज हुए. हत्या और बलात्कार के मामलों में भी इन तीन महीनों में बढ़ोतरी हुई है. अप्रैल, मई और जून महीने में राज्य में बलात्कार के क्रमश: 61, 79 और 95 मामले दर्ज हुए.
वास्तव में राज्य में शराबबंदी के बाद न केवल अपराध बल्कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में भी बढ़ोतरी हुई है. इसलिए यह मानना बेवकूफी है कि पूर्ण शराबबंदी से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में कमी आएगी. वास्तव में महिलाएं पहले के मुकाबले ज्यादा असुरक्षित हुई है.
सरकार में शामिल पार्टी के विधायक बलात्कार के आरोपी हैं. नवादा से आरजेडी के विधायक राजबल्लभ यादव कथित तौर पर एक नाबालिग का बलात्कार करने के मामले में पुलिस हिरासत में हैं. महिला विधायकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने विधानसभा स्पीकर से मुलाकात कर यादव को विधानसभा से बर्खास्त किए जाने की भी मांग की थी लेकिन सरकार ने उनकी मांग को नजरअंदाज कर दिया.
शराब मुक्त समाज का ढोंग
कुमार ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में रैली के दौरान 'संघ मुक्त भारत और शराब मुक्त समाज' का नारा दिया था. वह बार-बार सार्वजनिक मंच से इसकी अपील करते रहे हैं.
लेकिन नए कानून में बिहार में शराब के उत्पादन को प्रतिबंधित नहीं किया जाना उनके पूर्ण शराबबंदी और शराब मुक्त समाज के पाखंड को जाहिर करता है. बिहार में बना शराब बिहार में नहीं बिके लेकिन उसकी आपूर्ति दूसरे राज्यों में होती रहेगी. शराब बनेगी तो बिकेगी भी बिहार में सही कहीं और सही.
याज्ञनिक कहते हैं, 'पूर्ण शराबबंदी जैसा अगर कुछ होगा तो उसका मतलब यही होना चाहिए कि न बनाएंगे और नहीं पीने देंगे.'
First published: 4 August 2016, 12:21 IST