'कोख' के मासूमों को बचा रहीं बिहार की दो बेटियां

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मीनापुर की रहने वाली सादिया और आफरीन पिछले तीन साल में डेढ़ दर्जन से ज्यादा भ्रूण हत्याएं रोक चुकी हैं.
मीनापुर के अल्पसंख्यक बहुल खानेजादपुर गांव की रहने वाली सादिया और आफरीन न केवल कन्या भ्रूणहत्या के खिलाफ लोगों को नई राह दिखा रही हैं, बल्कि दहेज और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ भी लोगों को जागरूक कर रही हैं.
उनके प्रयास का असर अलीनेउरा, रामसहाय छपरा, नूर छपरा, बहवल आदि गांवों में दिखता है. 21 वर्षीय सादिया ऑनर्स कर रही हैं जबकि 18 साल की आफरीन 12वीं की छात्रा हैं.
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उन्होंने बताया कि साल 2012 से वे लोग जनसंख्या नियंत्रण, कन्या भूणहत्या के खिलाफ गांव-गांव जाकर लोगों को, खासकर महिलाओं को जागरूक कर रही हैं.
'मासूम जान मादरे सिकम (गर्भ) में छिपी थी, अल्लाह की पनाह में इबादत गुजार थी, रो-रोकर कह रही थी दुनिया दिखा दे या रब, इतनी हसीन मां है जलवा दिखा दे या रब.' हाल ही में एक स्थानीय स्कूल में उर्दू शिक्षिका के रूप में चुनी गईं सादिया बताती हैं कि वह लोगों को जागरूक करने के लिए इसी शायरी की मदद लेती हैं.
सादिया हाल में ही स्थानीय स्कूल में उर्दू शिक्षिका के रूप में चुनी गईं हैं
उनकी इस पहल को व्यापक बनाने में स्वयंसेवी संस्था 'मानव डेवलपमेंट फाउंडेशन' की भी मदद मिल रही है. किराना दुकान से परिवार चलाने वाले दोनों बेटियों के पिता मोहम्मद तस्लीम ने कहा कि उनकी पांच बेटियां और एक बेटा है, लेकिन कोई भी बेटी उनके लिए बेटों से कम नहीं है.
आफरीन बताती हैं कि महिलाओं को समझाने के लिए वे स्पष्ट कहती हैं, 'क्या अपने बच्चों (भ्रूण) को कुत्ते और बिल्लियों को खाने के लिए बाहर छोड़ देंगी? आखिर इन्हीं में से कोई सानिया मिर्जा, रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्तान बनेंगी.'
आफरीन एक घटना का जिक्र करते हुए कहती हैं कि वर्ष 2012 में जमालाबाद की महिला ने चौथी बार गर्भधारण किया तो परिजन भ्रूण गिराने का दबाव डाल रहे थे. उन्होंने परिवार को समझाया. जन्म लेने वाली लड़की का नाम जन्नत रखा और आज परिवार चौथी बेटी के साथ खुश है.
सादिया कहती हैं, 'अल्लाह ने पृथ्वी पर अच्छे कर्म करने के लिए भेजा है और आज उन्हें इस काम से काफी सुकून मिलता है. शिक्षिका बनाना अल्लाह की रहम है लेकिन मैं महिलाओं को जागरूक करना नहीं छोड़ूंगी.'
(आईएएनएस)