Kargil Vijay Diwas 2020: कारगिल की हार परवेज मुशर्रफ़ क्यों जीवन भर नहीं भूल पाएंगे ?

Kargil Vijay Diwas 2020: अगस्त सितम्बर 1998 में शासन और जातीय हिंसा से सम्बंधित मुद्दों के साथ-साथ पाकिस्तान में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की आवश्यकता और इसके गठन को लेकर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जहांगीर करामात और सेना प्रमुख नवाज शरीफ के बीच काफी मतभेद हो गए. अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति को लेकर भी प्रधानमंत्री के साथ उनका मतभेद था. जहांगीर करामात अगले कुछ महीनों में रिटायर होने वाले थे. पीएम नवाज शरीफ ने सार्वजनिक तौर पर उनकी आलोचना की थी, जिसके बाद उन्होंने अपना कार्यकाल ख़त्म होने से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया.
नवाज शरीफ ने परवेज मुशर्रफ को सेना प्रमुख नियुक्त किया. मुशर्रफ से वरिष्ठ दो अधिकारियों की उपेक्षा कर उन्हें सेना प्रमुख बनाया गया था. पदभार संभालने के तुरंत बाद मुशर्रफ ने सेना के कई पदों पर फेरबदल किया. लेफ्टिनेंट जनरल मेहमूद अहमद को 10 कोर का जीओसी नियुक्त किया. इस कोर के अंतर्गत पाक अधिकृत कश्मीर में पाक सेना के कई ठिकाने थे. आईएसआई के लेफ्टिनेंट जनरल को पाक सेना का प्रमुख बनाया गया, वह किसी कोर के प्रमुख नहीं थे.
पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मालिक ने अपनी किताब 'कारगिल' में लिखा है कि कारगिल सेक्टर में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ का एक प्रमुख कारण और उद्देश्य सियाचीन ग्लेशियर पर फिर से कब्ज़ा जमाना था. हालांकि पाकिस्तानी सेना कभी करगिल पर कब्ज़ा नहीं जमा सकी और वह सियाचीन को आज भी अपनी सबसे बड़ी विफलता के रूप में देखती है. सियाचीन में पाकिस्तानी सेना के अपमान की प्रतिध्वनि कई रूपों में प्रकट होती है. इसे भारतीयों द्वारा विश्वासघात और शिमला समझौते के रूप में देखा जाता है.
मालिक ने अपनी किताब में लिखा है कि सियाचीन ग्लेशियर पर भारत को कब्ज़ा ज़माने में निश्चित रूप से कुछ आर्थिक क्षति हुई और सेना को अथक प्रयास करना पड़ा. पाकिस्तान में सियाचीन एक ऐसा मुद्दा है जो उन्हें कबाब में हड्डी की तरह चुभता है. यह पाकिस्तानी सेना पर एक मनोवैज्ञानिक अधात की तरह भी है. मुशर्रफ ने कारगिल में भारतीय चौकियों पर कई बार कब्ज़ा जमाने का असफल प्रयास किया. 'ऑपरेशन बद्र' पाकिस्तानी सैन्य रणनीति का एक अंग था. अन्य उद्देश्यों के साथ-साथ इसका लक्ष्य जम्मू-कश्मीर विवाद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभारना था.
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