भारी बारिश के बावजूद एक बार फिर से सूखे की चपेट में आ सकता है मराठवाडा

- मराठवाडा में इस साल पिछले चार सालों के मुकाबले जबरदस्त बारिश हुई. हालांकि जल संरक्षण की खराब कोशिशों की वजह से यह पूरा इलाका एक बार फिर से सूखे की चपेट में जाता दिख रहा है.
- सभी छोटी सिंचाई परियोजनाओं और जलाशयों में पानी का स्तर तेजी से कम हो रहा है और उतनी ही तेजी से स्थिति गंभीर होती जा रही है. कई इलाकों में ऐसी ही स्थिति बन रही है. मराठवाडा के अधिकांश जलाशयों में 20 फीसदी से भी कम पानी है.
- विशेषज्ञों की माने तो सूखे से निपटने की दिशा में सबसे बड़ी समस्या सरकार के पास इस दिशा में किसी दीर्घकालिक योजना का नहीं होना है.
महाराष्ट्र सरकार का मराठवाडा क्षेत्र पिछले चार सालों से सूखे की चपेट में है और लातूर महाराष्ट्र में सूखे की निशानी बन चुका है. स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लातूर शहर में ट्रेन से पीने के पानी की आपूर्ति की जाती है.
सूखे की खतरनाक स्थिति से सचेत होते हुए सरकार और लोगों ने हाथ में हाथ मिलाते हुए जलायुक्त शिवार अभियान की शुरुआत कर दी है ताकि इस क्षेत्र में पानी को संरक्षित किया जा सके.
गर्मियों के दौरान सभी नदियों और छोटे जलाशयों को चौड़ा और गहरा किया जा रहा है. हालांकि यह सरकार की जिम्मेदारी थी लेकिन लोगों ने इस कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है.
लोगों की मेहनत का फल भी मिला और जून महीने में आए मानसून की वजह से इस इलाके में खूब बारिश हुई. सभी नदी और जलाशय पूरी तरह भर चुके हैं और इनमें से कई नदी और जलाशय ऐसे हैं जहां पहली बार पानी भरकर बाहर निकल रहा है.
बनाना होगा नियंत्रण
लोगों और सरकार की मेहनत का नतीजा रंग लाया और अब यहां रहने वाले लोगों को उम्मीद है कि पिछले चार सालों से चली आ रही समस्या इस बार खत्म हो जाएगी.
बेहतर बारिश से उत्साहित किसानों ने तुरंत ही फसल की बुआई शुरू कर दी. किसानों की खुशी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने अभी से बेहतर फसल से होने वाली शानदार आय की उम्मीद लगानी शुरू कर दी है.
जलाशयों में पानी का स्तर खतरे के स्तर से नीचे चला गया था और इस वजह से पिछले कुछ सालों में इस इलाके में आजीविका को लेकर गंभीर संकट पैदा हो गया था.
सूखे का कहर
लातूर सिंचाई विभाग के डिप्टी इंजीनयिर प्रकाश फंद बताते हैं, 'लातूर में पिछले 25 दिनों से बारिश नहीं हुई है. इस वजह से जलस्तर में भारी गिरावट आई है. अगर जल्द बारिश नहीं होती है तो स्थिति खराब होते देर नहीं लगेगी.'
सिंचाई विभाग के मुताबिक 23 अगस्त 2016 तक मराठवाडा के कुल 44 जलाशयों में पानी का स्तर 40.24 फीसदी था.
विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर बताया, 'पिछले साल के मुकाबले यह बेहद अधिक है जब पानी का स्तर महज 2.94 फीसदी था. यह कहीं से भी बेहतर संकेत नहीं है. मानसून अभी खत्म नहीं हुआ है और पानी का भंडार 40 फीसदी नीचे जा चुका है. अगर ऐसी ही स्थिति जारी रही तो प्रशासन को पिछले साल की तरह इस बार भी दूर से पानी मंगाना पडे़गा.'
कम होते संसाधन
पिछले चार सालों में पहली बार पानी आने की वजह से उस्मानाबाद जिले की तरना नदी पहली बार सुर्खियों में आई. लेकिन दो महीनों के भीतर ही तरना बांध में नदी का जलस्तर शून्य फीसदी हो चुका हैे.
ऐसी ही स्थिति सिना कोलेगांव बांध की भी है जहां पानी का स्तर महज 20 लाख घनमीटर जबकि सोंगरी बराज में पानी का स्तर महज 10 लाख घनमीटर है. अधिकारी ने बताया, 'इतने कम जलस्तर के साथ स्थिति बिलकुल भी ठीक नहीं क ही जा सकती.'
सभी छोटी सिंचाई परियोजनाओं और जलाशयों में पानी का स्तर तेजी से कम हो रहा है और उतनी ही तेजी से स्थिति गंभीर होती जा रही है. कई इलाकों में ऐसी ही स्थिति बन रही है. मराठवाडा के अधिकांश जलाशयों में 20 फीसदी से भी कम पानी है.
क्या होगा समाधान?
सभी छोटी सिंचाई परियोजनाओं और जलाशयों में पानी का स्तर तेजी से कम हो रहा है और उतनी ही तेजी से स्थिति गंभीर होती जा रही है. कई इलाकों में ऐसी ही स्थिति बन रही है. मराठवाडा के अधिकांश जलाशयों में 20 फीसदी से भी कम पानी है.
महाराष्ट्र के धूलिया जैसे वृष्टि छाया वाले इलाके में जल क्रांति लाने वाले सुरेश कनापुरकर की माने तो इस समस्या का सबसे बड़ा कारण सरकार के पास दीर्घकालिक योजना का नहीं होना है.
उन्होंने कहा, 'मराठवाडा में जो रहा है वह उम्मीद के मुताबिक ही है. मैंने जलायुक्त शिवार शुरू होने के दौरान ही ऐसी आशंका जाहिर की थी. सभी काम तकनीकी विशेषज्ञता नहीं रखने वाले लोगों के हाथों में है और उन्हें इलाके के भूगोल के बारे में भी जानकारी नहीं है. सरकार भी विशेेषज्ञों की राय लेना नहीं चाहती.'
धूलिया जिले के श्रीपुर तालुका में अभी तक जलाशय में भरे पानी का औसत करीब 50 फीसदी है और अभी भी वहां पानी की समस्या की कमी नहीं है.
कनापुरकर बताते हैं, 'हमें बदले हुए बारिश के पैटर्न को समझने की जरूरत है. कोई व्यक्ति हर दिन बारशि की उम्मीद नहीं कर सकता. हो सकता है कि एक साल बारिश हो और अगले दो साल बारशि नहीं हो. हमें किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना पड़ता है. मेरे विचार में सबसे बेहतर जल संरक्षण वही है कि अगर तीन सालों तक बारिश नहीं भी हो तो आपको सूखे जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़े.'
राज्य विधान परिषद में विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को पत्र लिखकर मराठवाडा में कृत्रिम बारिश करवाने की अपील की है.
मराठवाड़ाः गांववालों ने दिया चार साल से सूखी हुई नदी को नया जीवन
महाराष्ट्र के जानलेवा सूखे के बीच आशा की किरण दिखाता शिरपुर
First published: 30 August 2016, 7:59 IST