राजनाथ सिंह संसद में संविधान का संघी संस्करण पेश कर रहे थे?

- राजनाथ सिंह ने संसद में संविधान दिवस पर बोलते हुए कहा कि संविधान की प्रस्तावना में निहित ‘सेक्युलर’ शब्द का दुरुपयोग हो रहा है. सेक्युलर का अर्थ धर्मनिरपेक्ष नहीं बल्कि पंथनिरपेक्ष होता है.
- संसद में अंबेडकर को श्रद्धांजलि देते हुए राजनाथ सिंह ने संविधान के मूल स्वरूप के पीछे पुरानी धार्मिक मान्यताओं की प्रेरणा बताते हुए भगवान राम तक को इसमें शामिल कर लिया.
राजनाथ सिंह ने बीआर अंबेडकर को शायद सबसे विडंबनापूर्ण श्रद्धांजलि दी है.
लोकसभा में अपने एक घंटे के भाषण के दौरान लगभग हर मिनट राजनाथ सिंह ने संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर की चर्चा की. अपने जीवनकाल में अंबेडकर ने जिन बातों का कटु विरोध किया था, गृहमंत्री उन्हें उन्हीं बातों का समर्थक साबित करने की कोशिश में दिखे.
अंबेडकर भारत की रूढ़िवादी परंपरा को तोड़कर देश को आधुनिकता देश के रूप में आगे बढ़ाना चाहते थे. इसके ठीक उलट राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में ये बात बार-बार कही कि भारतीय संविधान की महानता भारत के "स्वर्णिम अतीत" के कारण संभव हुई है.
सदन अंबेडकर की 125वीं जयंती मना रहा था और सांसदों को "लोकतंत्र के इस मंदिर में" संविधान के प्रति प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए
'भारत के संविधान के प्रति प्रतिबद्धता' विषय पर दो दिवसीय चर्चा की शुरूआत करते हुए राजनाथ ने कहा कि 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान की प्रस्तावना में 'सेक्युलर' और 'सोशलिस्ट' शब्द जोड़े गए. उन्हें इस पर परोक्ष रूप से आपत्ति थी.
संविधान की मूल प्रस्तावना में वर्णित "संप्रभुतासंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य" को लेकर राजनाथ सिंह की जो सोच है उसके मुताबिक संविधान निर्माताओं ने सब कुछ प्राचीन भारतीय परंपरा से प्रेरित होकर लिखा है.
उन्होंने आगे विस्तार से बताया कि भारत सबसे प्राचीन संप्रभु देश है, बल्कि यह दुनिया का सबसे पुराना लोकतांत्रिक गणराज्य है. अपनी बात को बल देने के लिए राजनाथ सिंह मिथक को इतिहास के रूप में स्थापित करने लगे. उनके मुताबिक भारतीय लोकतंत्र की मौजूदा ताकत दरअअसल भगवान राम द्वारा स्थापित की गई थी.
राजनाथ ने इसका सबूत देते हुए कहा कि भगवान राम ने समाज में हाशिए पर खड़े एक व्यक्ति के उंगली उठाने मात्र से अपनी पत्नी सीता से अग्नि परीक्षा मांग ली थी. शायद राजनाथ सिंह यह बात नहीं जानते हैं कि अंबेडकर ने वाल्मिकी रामायण के इस अध्याय का जिक्र करते हुए राम को स्त्रीविरोधी मानसिकता वाला बताया था.
अंबेडकर की इस राय पर कोई भी रामायण के किसी और संस्करण का हवाला देकर उस पर बहस कर सकता है. लेकिन यहां समस्या दूसरी है. राजनाथ सिंह के तर्क में छुपा हुआ खतरा यह है कि वे पौराणिक कथाओं में जो कुछ भी है सबको महान बता रहे है. वर्तमान के लिहाज से चाहे वह कितना भी स्त्रीविरोधी, दलित विरोधी या धर्मविरोधी हो.
दरअसल
अंबेडकर हिंदू समाज के तमाम मूल्यों को बुराई मानते थे. उन्होंने
भारतीय समाज के वर्गीकरण को
कभी नहीं स्वीकारा
यही वजह रही है कि जब पश्चिमी देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था तब अंबेडकर ने भारतीय संविधान को बनाते वक्त हर तबके, हर संप्रदाय, हर वर्ग का ध्यान रखा था.
सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि सदियों से समाज के हाशिए पर रहे तबकों के लिए भी उन्होंने मताधिकार का प्रावधान किया. ऊंच-नीच से ऊपर उठकर सबके मत का एक ही मूल्य स्थापित किया. अंबेडकर उस जातिवाद के शिकार थे जो सदियोंं से भारतीय समाज को दंश दे रहा है. वो एक मुक्त देश चाहते थे जो अपने अतीत के दु:स्वप्न से पूरी तरह मुक्त हो.
राजनाथ ने जिस तरह अंबेडकर की चर्चा की और 'अतीत' की महानता का बखान किया वह सिर्फ और सिर्फ अंबेडकर और उनके नेतृत्व में बने संविधान के प्रगतिशील मूल्यों का अपमान है.
इसके अलावा अपने भाषण में उन्होंने 42वें संशोधन के बारे में कहा कि इस 'आपत्तिजनक अधिनियम' को भूलकर आगे बढ़ने की जरूरत है.
हालांकि, यह चौंकाने वाला था जब राजनाथ ने ''धर्मनिरपेक्ष'' शब्द पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि इस शब्द का सर्वाधिक 'राजनीतिक दुरुपयोग' हो रहा है
साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि यह शब्द सामाजिक व सांप्रदायिक सद्धाव बनाने के लिए किए गए उनके प्रयासों में बाधा बन रहा है.
खासकर उन्हें सेक्युलर शब्द के हिंदी अनुवाद धर्मनिरपेक्षता शब्द से ज्यादा आपत्ति थी. धर्मनिरपेक्ष का अर्थ सभी धर्मों के लिए निष्पक्ष होना माना जाता है. लेकिन राजनाथ के मुताबिक सेक्युलर का औपचारिक अनुवाद पंथनिरपेक्ष होता है, धर्मनिरपेक्ष नहीं.
राजनाथ सिंह दरअसल संघ के उस संस्करण को आगे बढ़ा रहे थे जिसमें तथ्यों को तोड़मरोड़ कर अपनी सुविधा के तर्क खड़े कर लिए जाते हैं. मसलन संघ जब गोरक्षा अभियान की बात करता है तब वह कुरान की कुछ आयतों का जिक्र करके यह साबित करता है कि कुरान में गोमांस खाने की मनाही है जबकि इस्लामी विद्वान इसे खारिज करते हैं. इसी तर्ज पर अब भाजपा संविधान की नई व्याख्या कर रही है.
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First published: 29 November 2015, 9:07 IST