मध्य प्रदेश: स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकार चली निजीकरण की राह

मध्य प्रदेश सरकार सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों हालत में सुधार लाने की बजाय निजीकरण की राह पर चल पड़ी है.
आदिवासी बहुल जिला अलिराजपुर की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पिछले साल नवंबर में गुजरात के गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) 'दीपक फाउंडेशन' के साथ राज्य स्वास्थ्य समिति ने करार किया है.
इस करार के मुताबिक दीपक फाउंडेशन जिला चिकित्सालय और जोबट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्य करते हुए शिशु व मातृ मृत्युदर में कमी लाने के लिए काम करेगा.
मध्य प्रदेश में सरकारी अस्पताओं की हालत बुरी है
इसके अलावा दीपक फाउंडेशन जिला अस्पताल में एनेस्थेटिएस्ट एक्सपर्ट, स्त्री रोग और बाल रोग एक्सपर्ट की पोस्टिंग में सहयोग करेगा.
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इन डॉक्टरों को वेतन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन देता है लेकिन तय वेतन से ज्यादा देने की स्थिति में अतिरिक्त राशि की पूर्ति दीपक फाउंडेशन करेगा.
इसके अलावा अल्टा सोनोग्राम (यूएसजी) और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम में भी यह फाउंडेशन जरूरत पड़ने पर आर्थिक मदद करेगा.
यह सब करने के लिए दीपक फाउंडेशन को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पैसा मुहैया करेगा. यह करार तीन सालों के लिए है. सरकार की इस कोशिश पर सवाल उठ रहे हैं.
करार पर उठ रहे हैं सवाल
जन स्वास्थ्य अभियान के डॉक्टर एसआर आजाद ने बताया है कि इस करार में सरकार ने उन सभी दिशा निर्देशों की अवहेलना की है, जो किसी गैर सरकारी संगठन के साथ करार करने के लिए आवश्यक है.
उन्होंने बताया कि करार से पहले न तो कोई विज्ञापन जारी किया और न ही टेंडर निकाले गए. जब इसकी शिकायत स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख सचिव गौरी सिंह से की गई तो उन्होंने जांच कराने की बात कही है.
जन स्वास्थ्य अभियान के अमूल्य निधि ने बताया है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत अन्य राज्यों की तरह मध्य प्रदेश को भी प्रति वर्ष बजट स्वीकृत होता है लेकिन इस करार में विभाग ने 60 प्रतिशत राशि शुरुआत में ही देने पर सहमति जता दी है.
मध्य प्रदेश सरकार और दीपक फाउंडेशन के करार पर कई लोगों ने आपत्ति जताई
इसके साथ करार में यह भी खुलासा नहीं किया गया है कि फाउंडेशन को कितनी राशि दी जाएगी और फाउंडेशन कितनी राशि खर्च करेगा.
दूसरी ओर मध्य प्रदेश को राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत बेहतर कार्य के लिए वर्ष 2014-15 में केंद्र सरकार की ओर से सम्मानित किया गया है. ऐसे में शिशु और मातृ मृत्युदर कम करने के लिए किसी संस्था से समझौता करने पर सवाल उठना लाजिमी है.