'उच्च शिक्षण संस्थाओं में मुसलमान शिक्षकों की हिस्सेदारी केवल पांच फीसदी'

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने बीते हफ्ते जारी अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में मुसलमान शिक्षकों की हिस्सेदारी महज पांच फीसदी है. 'द हिन्दू' की रिपोर्ट के अनुसार सर्वे में कहा गया है कि देश की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी 14.2% है.

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व भी शिक्षण संस्थाओ में बेहद कम है. मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने अपने सर्वेक्षण में कहा है कि उच्च शैक्षणिक संस्थाओं में पढ़ाने वाले दलितों और आदिवासियों का प्रतिनिधित्व केवल 8.3 फीसदी है.
यह प्रतिनिधित्व दर्शाता है इसमें एसटी प्रतिनिधित्व महज 2.2% है. भारतीय जनसंख्या के 16.6 फीसदी के लिए अनुसूचित जाति और एसटी की कुल हिस्सेदारी 8.6% है. वहीँ देश की आबादी में इसकी कुल हिस्सेदारी करीब 17 और नौ फीसदी है.
सर्वे के अनुसार अखिल भारतीय स्तर पर, सामान्य श्रेणी से संबंधित शिक्षक आधे से ज्यादा हैं, जो कि भारत में शिक्षकों की कुल संख्या का 58.2% है. जबकि ओबीसी की हिस्सेदारी 31.3 फीसदी हैं.
सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर अमल के लिए गठित कुंडु समिति ने अपने अध्ययन में पाया कि ग्रामीण इलाकों में सबसे बदहाल दलित हिंदू हैं. शहरों में भी उनकी स्थिति पिछड़े मुस्लिमों जैसी है. दलितों की साक्षरता दर सुधरी है. लेकिन सामान्य वर्ग की 74 फीसदी साक्षरता के मुकाबले उनकी दर 66 फीसदी ही है.
लाभ भी पूरा नहीं मिल पा रहा है. सरकार द्वारा वित्त पोषित उच्च शिक्षा के अकादमिक संस्थानों में एससी के लिए 15 फीसदी और एसटी के लिए साढ़े सात फीसदी आरक्षण है.
First published: 13 January 2018, 11:37 IST