स्वामी विवेकानन्द: भारत का ऐसा सन्यासी, जिसके आगे नतमस्तक हो गया था अमेरिका

National Youth Day 2021: स्वामी विवेकानंद ने सपेरों का देश कहे जाने वाले भारत को दुनियाभर में जो प्रसिद्धि दिलाई, उसकी गूंज आज भी विश्वभर में सुनाई देती है. 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में जन्मे स्वामी विवेकानंद को युवावस्था में पाश्चात्य दार्शनिकों के निरीश्वर भौतिकवाद तथा ईश्वर के अस्तित्व में दृढ़ भारतीय विश्वास की वजह से गहरे द्वंद्व से गुजरना पड़ा था.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें विश्वास दिलाया कि ईश्वर वास्तव में है और मनुष्य ईश्वर को पा सकता है. परमहंस ने सर्वव्यापी परमसत्य के रूप में ईश्वर की सर्वोच्च अनुभूति पाने में विवेकानंद का मार्गदर्शन किया. स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में एक विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया था.
स्वामी विवेकानंद द्वारा दिया गया वो भाषण आज 129 साल बाद भी ऐतिहासिक है. भारत के एक सन्यासी ने अमेरिका के शिकागो में आयोजित 'विश्व धर्म महासभा' में ऐसा भाषण दिया कि उस समय अमेरिका को भी अपना दीवाना बना लिया था. उन्होंने 'मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों' के साथ जब अपने भाषण की शुरुआत की थी तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था.
आप भी पढ़िए उस ऐतिहासिक भाषण का मुख्य अंश-
"अमेरिका के मेरे बहनों और भाइयो.. आपके स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है. आपको मैं दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं. आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से मैं धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से मैं आपका आभार व्यक्त करता हूं.
मेरा धन्यवाद उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं.
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है. मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था. और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी.
मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है."
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