नक्सली चढ़े नोटबंदी की भेंट, लगे बैंकों की लाइन में

- नोटबंदी के अचानक आए फ़ैसले ने देशभर में काला धन जमा किए कारोबारियों और संगठनों की नींद उड़ा दी है.
- झारखंड में सक्रिय कई नक्सली संगठन किसी तरह अपनी अवैध कमाई को बैंक में जमाकर उसे सफ़ेद करने में जुटे हुए हैं.
नोटबंदी के बाद जब देशभर में अपनी काली कमाई बचाने की तरकीब ढूंढी जा रही है, तब झारखंड में सक्रिय नक्सली भी पीछे नहीं हैं. नक्सल प्रभावित बेड़ो में नक्सलियों ने 25 लाख रुपए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की ग्रामीण शाखा में जमा करने की कोशिश तो की मगर पकड़े गए.
जिस दिन नोटबंदी की घोषणा हुई, उसके एक दिन बाद ही रांची से सटे बेड़ो से यह खबर आयी. यहां पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया के प्रमुख दिनेश गोप के 25 लाख रुपये स्टेट बैंक की ग्रामीण शाखा में जमा कराने की कोशिश की जा रही थी लेकिन चार लोग मौके से ही दबोच लिए गए.
इन चार लोगों को गिरफ्तार करने की कमान ख़ुद रांची के एसएसपी कुलदीप द्विवेदी ने संभाल रखी थी. कुलदीप द्विवेदी के मुताबिक गिरफ़्तार मुलज़िमों ने कुबूल लिया है कि 25 लाख की रकम नक्सलियों की थी और ट्रायल के तौर पर जमा कराई जा रही थी. सफल होने पर इस काम में तेज़ी आ सकती थी.
कुलदीप द्विवेदी कहते हैं कि नक्सलियों और उग्रवादियों के लेन-देन पर नजर रखने के लिए स्पेशल टीम गठित की गयी है, जिसमें सीआरपीएफ भी शामिल है. नोटबंदी के दूसरे-तीसरे दिन राजधानी रांची में यह कार्रवाई हुई तो नक्सली सकते में आ गए. मगर झारखंड के दूसरे हिस्से से हर रोज ऐसी सूचनाएं मिल रही हैं.
कई संगठन सक्रिय
पीएलएफआई की तरह ही एक प्रमुख नक्सली संगठन तृतीय प्रस्तुति कमिटी है. बताया जाता है कि सरकार के सौजन्य से यह संगठन माओवादियों से लड़ने-भीड़ने के लिए बनाया गया था और ऐसा टीपीसी ने किया भी लेकिन अब इसने अपने धंधे का भी अपार विस्तार कर लिया है. झारखंड के चतरा जिले के पीपरवार टंडवा इलाके में इसका दबदबा है और वहां कोयले के कारोबार में सिर्फ इसी का सिक्का चलता है. नोटबंदी के बाद टंडवा-पीपरवार जैसे इलाके से सूचना मिली रही है कि हर दिन करीब दो करोड़ का नोट टीपीसी के उग्रवादी खपा रहे हैं.
केंद्र सरकार की ओर से नक्सलियों और उग्रवादियों के आर्थिक स्रोतों पर नजर रखने के लिए सीबीआई, ईडी, सीआईडी आदि को मिलाकर गठित मल्टी डिसिप्लनरी ग्रुप की एक अर्जेंट बैठक राज्य स्थापना दिवस के दिन झारखंड में 15 नवंबर को हुई थी. इस बैठक में शामिल एक अफसर बताते हैं कि नक्सलियों और उग्रवादियों द्वारा खपाये जा रहे धन पर रणनीति बनाई गई है और एक एक्शन प्लान भी तैयार है. सूत्र बता रहे हैं कि पीपरवार-टंडवा के इलाके में आम्रपाली और मगध जैसी कोल परियोजनाओं में करीब 750 से अधिक ट्रक, 650 से अधिक डंफर, 100 के करीब हाईवा कोयला ढोने का काम करते हैं.
कोयला ढुलाई में परोक्ष तौर पर टीपीसी उग्रवादियों का ही दबदबा है तो वे इन ट्रकों, डंफरों और रोजाना काम करनेवाले मजदूरों को भुगतान कर ही उसे खपा रहे हैं. हर दिन करीब दो करोड़ रुपये का भुगतान होता है. इसकी पुष्टि इस रूप में भी हो रही है कि इन दिनों ट्रक, हाईवा आदि के मालिक-ट्रांसपोर्टर, जिन रुपयों को लेकर बैंक में जमा करने पहुंच रहे हैं, उनमें अधिकांश नोट नत्थी किये हुए हैं, जिन्हें देख साफ लगता है कि वे वर्षों से रखे हुए नोट हैं. जबकि रिजर्व बैंक ने तो कई सालों से नोटों को नत्थी करना बंद कर दिया है.
ऐसी ही खबर झारखंड में माओवादी जोन के तौर पर ख्यात रहे सारंडा और पलामू के इलाके से मिल रही है. सारंडा इलाके के किरिबुरू और पलामू के लातेहार इलाके से सूत्र बता रहे हैं कि इन इलाकों में माओवादियों के पास अकूत पैसा लेवी के रूप में है और अब नोटबंदी के बाद उसे खपाने के लिए ग्रामीणों का उपयोग कर रहे हैं. झारखंड में सक्रिय माओवादी और नक्सलियों के पास अकूत संपत्ति है, यह बात समय-समय पर सामने आती रही है और उसकी पुष्टि पुलिस की पकड़ में आनेवाले माओवादी-नक्सली-उग्रवादी नेता भी करते रहे हैं.
बताया जा रहा है कि किरिबुरू और लातेहार के इलाके में माओवादी ग्रामीणों को पैसा बांट रहे हैं कि वे उसे अपने खाते में जमा करें और फिर बाद में कुछ हिस्सा रखकर लौटा दें. यह सब तो फिर भी एक बात है, जिससे नक्सल अपने नोटों को खपाने के लिए परेशान हैं लेकिन दूसरी ओर नोटबंदी की आड़ में दूसरे खेल भी शुरू हो गये हैं.
कारोबारी की हत्या
15 नवंबर को जब झारखंड स्थापना दिवस मना रहा था, उस दिन झारखंड के बॉर्डर इलाके का जिला खरसांवा दूसरे कारण से चर्चे में आया. खरसांवा में साईं नर्सिंग होम चलानेवाले एक कारोबारी योगेश मिश्र की हत्या नक्सलियों ने कर दी. उस दिन योगेश शाम को मुर्गा खरीदने एक गांव जा रहे थे, बीच रास्ते में ही उन्हें नक्सलियो ने रोका, उनकी आंख पर पट्टी बांधा और फिर जंगल में ले जाकर उनके शरीर को चीरकर मार डाला, उनकी गाड़ी में आग लगा दी. योगेश की पत्नी मधुमिता कहती हैं कि उन पर हजार और पांच सौ के नोट बदलवाने का दबाव था लेकिन वे वैसा करने में सक्षम नहीं थे. वह दबाव और धमकी से परेशान थे और मैं मायके में थी तो बार-बार फोन कर अपनी परेशानी बता रहे थे कि मैं नोट बदलवा नहीं सकता लेकिन दबाव बन रहा है, धमकी दी जा रही है.
योगेश को नोट नहीं बदलवाने के कारण ही नक्सलियों ने मारा, यह अभी स्पष्ट नहीं है क्योंकि योगेश के शव के पास नक्सलियों ने जो परचा छोड़ा है, उसमें योगेश पर पुलिस का मुखबिर होने का भी आरोप है और लिखा हुआ है कि जो भी पुलिस की मुखबिरी करेगा, उसे इसी तरह का अंजाम भुगतना होगा.
सरायकेला-खरसांवा के एसपी इंद्रजीत महथा कहते हैं कि पुलिस सभी बिंदुओं पर जांच कर रही है. योगेश की नक्सलियों से बात होती थी. वे शाम को जंगल के गांव में क्यों गये, किस स्थिति में गये, इसकी जांच कर रहे हैं. बकौल एसपी महथा, यह मामला नोट नहीं बदलने के कारण भी हो सकता है और पुलिस इस दिशा में तफ्तीश कर रही है. वहीं रांची के एसएसपी कुलदीप द्विवेदी कहते हैं कि पुलिस उग्रवादियों के धन पर कई स्तरों पर नजर रखी हुई है और उनके मददगारों पर देशद्रोह का भी मामला चलेगा.
First published: 18 November 2016, 7:54 IST