नोटबंदी: गुरु पर्व की रंगत पंजाब में पड़ी फ़ीकी

- जब पांच सौ और हजार के नोटों पर पाबंदी से देश का आम आदमी कदम-कदम पर हलकान हो रहा है, तब इसका असर त्योहारों पर भी साफ़ देखा जा रहा है.
- सोमवार को गुरु नानक जयन्ती पूरे देश में श्रद्धा के साथ मनाई गई लेकिन पंजाब में इसकी रंगत फीकी रही जहां यह पर्व दिवाली की तरह मनाया जाता है.
नोटबंदी से सूबे का ग्रामीण इलाका बुरी तरह प्रभावित हुआ है जहां किसानों के पास गेहूं की बुआई तक के लिए पैसा नहीं है, वह गुरु पर्व मनाने के लिए लाचार हो गया. राज्य के 35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में से अब तक केवल 40-45 फीसदी में गेहूं की बुआई हो पाई है. गेहूं की बुआई के लिए नवंबर का पहला पखवाड़ा सबसे माकूल रहता है लेकिन किसानों को धन मुहैया कराने वाले परंपरागत दलाल यानी आढ़ती इस बार उनकी कोई मदद नहीं कर पाए क्योंकि उनका पूरा धंधा नकदी से ही चलता है.
लुधियाना के बुर्ज लेटान गांव के राजनीतिक पर्यवेक्षक शिव इन्दर ने कहा कि पिछले साल सिखों के पवित्र धर्म ग्रंथ की बेअदबी से पंजाब के ग्रामीण क्षेत्र में गुरु पर्व फीका रहने के बाद इस बार धूमधाम से त्यौहार मनाए जाने की उम्मीद थी. आमतौर पर तीन दिन पहले ही मिठाई, पटाखे और अन्य चीजों की स्टालें लग जाती थीं लेकिन इस बार नाममात्र की दुकानें लगीं. दुकानदारों के पास शहर के थोक व्यापारियों से कच्चा माल या पटाखे आदि खरीदने के लिए पहले से ही पैसे नहीं थे और न वे अब नकदी जुटा पाए.
नगदी से वंचित
किसानों का कहना है कि गुरु पर्व के लिए धन जुटाने को अपना ही पैसा निकालने की खातिर लंबी लाइनों में लगना पड़ेगा, यह किसी ने नहीं बताया. खुशी के इस मौके पर वे बच्चों को नए कपड़े भी नहीं दिला पाए. पाक सीमा पर अमृतसर जिले के धनुआंकलां गांव के किसान अमन सिंह का कहना है कि नए कपड़े लेने हों या मिठाई, हर चीज के लिए नकदी की जरूरत पड़ती है. आसपास के प्रमुख शहरों के गुरुद्वारों में परिवारों के जाने का रिवाज है मगर जाएं तो जाएं कैसे?
आम आदमी पार्टी के किसान नेता जसविंदर सिंह जहांगीर ने कहा कि 'सीमावर्ती गांवों के मजदूर और छोटे किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. दुकानदार उन्हें पांच सौ रुपए के पुराने नोट के मूल्य तक का सामान देना चाहते हैं. इससे वे बीज खरीदें, गुरु पर्व मनाएं या रोजमर्रा की जरूरत का घरेलू सामान लाएं! सरकार के इस कदम से गरीबों को बहुत परेशानी हुई है.'
दलालों में गुस्सा
पटियाला जिले की बलहेड़ा अनाज मंडी के एक दलाल ने कहा कि अगले सप्ताह सभी आढ़ती और किसान आंदोलन करेंगे. हालांकि हम किसानों को चेक से भुगतान कर रहे हैं लेकिन लंबी कतार में घंटों खड़ा रहने के बाद भी उन्हें बैंकों से एक दिन में 4500 रुपए निकालने में निराशा हाथ लग रही है. क्या सरकार सोचती है कि किसान के पास और कोई काम नहीं है.
हाल ही धान की फसल काटने के बाद वे गेहूं की बुआई करना चाहते थे. धान की बिक्री से मिली रकम से उन्हें कई लोगों को भुगतान करना होता है. वे रोजाना बैंक नहीं जा सकते. नाभा के एक आढ़ती के अनुसार शादियों का समय होने से भी उनकी दिक्कतें बढ़ी हैं. इस मौके पर किसान शादी समारोह के लिए उनसे कर्ज में अग्रिम भुगतान ले जाते हैं परंतु विमुद्रीकरण से शादियों पर बहुत बुरा असर पड़ा है.
चंडीगढ़ में ग्रामीण व औद्योगिक विकास अनुसंधान केन्द्र के विशेषज्ञ डॉ. आरएस घुमन का कहना है कि इससे आढ़तियों के लेन-देन पर अस्थाई असर पड़ेगा. नई मुद्रा आने पर उनकी गाड़ी दोबारा पटरी पर आ जाएगी जबकि किसानों पर अधिक मार पड़ रही है. उनमें से ज्यादातर किसानों के पास अपनी चेक बुक भी नहीं होती. ऐसे में वे सरकार की मंजूरी के बावजूद साढ़े चार हजार रुपए रोजाना कैसे निकाल सकते हैं?
अमरिंदर का हमला
इस बीच राजनीति के मोर्चे पर देखा जाए तो पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस अफरा-तफरी के लिए प्रधानमंत्री मोदी पर तीखा प्रहार किया है. रविवार को स्टेट बैंक की पटियाला शाखा के समक्ष रास्ता रोकते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी ने गुरु पर्व की खुशियां छीन लीं. हैरान-परेशान लोग गुरु नानक जयंती पर पैसा खर्च नहीं कर पाए. लोगों ने उनसे ऐसी शिकायत की है कि उनके लिए यह सबसे बड़ा त्यौहार है. अपना कोई कसूर नहीं होने के बावजूद वे इसे पारंपरिक हर्षोल्लास पूर्वक नहीं मना सके.
अमरिंदर ने कहा कि मोदी सरकार के इस मनमाने और क्रूर फैसले ने पूरे देश की आम जनता को बेवजह मुसीबत में डाल दिया. केवल गरीब और निर्दोष लोग इस कार्रवाई से पीड़ित हो रहे हैं. भ्रष्टों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला.
First published: 15 November 2016, 7:32 IST