फोटो स्टोरी: मिलिए अनोखे चित्रकार विजयानंद बिस्वाल से

बिजयानंद बिस्वाल भारतीय रेलवे में चीफ ट्रैवलिंग टिकट इग्जामिनर (टीटीई) हैं. फिलहाल वो नागपुर में तैनात हैं. ओडिशा के एक छोटे से गांव के रहने वाले बिस्वाल को देखकर उनका असली टैलेंट पता नहीं चलता. जी हां, उनकी असल खूबी है चित्रकारी.
बिस्वाल पहली बार सुर्खियों में तब आए जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में उनका जिक्र किया.
पेश है इस अनोखे चित्रकार से कैच की बातचीत.

अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताएं?
मेरा जन्म ओडिशा के अंगुल जिले के एक छोट से गांव में हुआ है. मेरे पिता छोटे कारोबारी थे. परिवार में हम चार भाई बहन थे. मेरी शुरुआती पढ़ाई इलाके के सरकारी स्कूल में हुई. हम स्कूल के बस्ते के साथ चटाई लेकर जाते थे क्योंकि वहां बैठने के लिए कोई टेबल-कुर्सी नहीं होती थी.


आपने पेंटिंग कब शुरू की? नौकरी के साथ आप चित्रकारी को कैसे समय देते हैं?
पेंटिंग से मुझे शुरू से प्रेम था था लेकिन मैंने कभी इसका प्रशिक्षण नहीं लिया. गांव में मैं अपनी मां के संग काफी वक्त बिताता था. जब मेरी मिट्टी के बर्तन में खाना पकाती थी तो मैं राख पर फूल-पत्ती बनाया करता था. मेरी मां इसके लिए मुझे हमेशा डांटती थी.

मैं स्कूल में शनिवार को होने वाली चित्रकला की साप्ताहिक कक्षा का बेसब्री से इंतजार करता रहता था. वो लिए हफ्ते का सबसे खुशगवार दिन होता था. मैं केवल खुद के लिए पेंटिंग नहीं करता था. मैं दूसरे बच्चों की भी मदद करता था. पेंटर के तौर पर मेरी शुरुआत ऐसे हुई.

जहां तक नौकरी का सवाल है मेरे पिता भी आम माता-पिता की तरह चाहते थे कि मैं अपनी हॉबी के साथ-साथ नौकरी भी करूं. मुझे अपने शौक़ के साथ जीविका के लिए कोई नौकरी जरूरी थी. मुझे पहली नौकरी टीटीई की मिली और उसके बाद से मैं इसी में खुश हूं. मैंने नौकरी के बाद भी पेंटिंग जारी रखी. नौकरी ने मुझसे पेंटिंग में मदद भी की क्योंकि मुझे इससे नए-नए विषय मिलते रहे.

आप पेंटिंग, परिवार और नौकरी में तालमेल कैसे बिठाते हैं?
अच्छा सवाल है. मेरी नौकरी के शुरुआती दौर में मेरे सहकर्मी भी ऐसी ही चिंताएं जाहिर किया करते थे. लेकिन जैसा मैंने कहा, मेरी नौकरी मेरा शौक़ जारी रखने का जरिया थी. मैं जब तक नौकरी पर होता था एक साधारण टीटीई होता लेकिन ऑफिस के टाइम के बाद मैं रंगों और कैनवास की दुनिया में आराम पाता था. मैं काम से लौटकर हर रोज करीब 7-8 घंटे अपने स्टूडियो में बिताता हूं. कई बार मेरी पत्नी खीझ जाती हैं लेकिन आम तौर पर वो मेरी काफी मदद करती हैं.

आपकी एक पेंटिंग में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक रेलवे स्टेशन पर टहलते हुए दिखते हैं. उन्होंने अपने 'मन की बात' रेडियो कार्यक्रम में भी आपका जिक्र किया था. क्या इसका आपकी जिंदगी पर कोई असर हुआ?
प्रधानमंत्री का तारीफ करना अच्छा लगा. उनकी तारीफ के बाद जिम्मेदारी का एहसास बढ़ गया. मुझे पता चला कि मेरे काम पर लोगों का ध्यान जा रहा है. लोग मेरे काम पर बात करने के लिए मेरे पास आ रहे हैं. प्रधानमंत्री द्वारा 'मन की बात' में जिक्र करने के बाद मेरे दफ्तर समेत हर जगह मुझे लोग तवज्जो देने लगे. ये बहुत सुंदर अनुभव है.

बहुत सारे नौजवान सरकारी नौकरी पाने के लिए कई सालों तक तैयारी करते हैं, ऐसे नौजवानों से आपको कुछ कहना है?
मैं कोई संदेश देने लायक नहीं हूं. मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि हमें कभी अपने शौक़ को मरने नहीं देना चाहिए. अपने जुनून का पूरी शिद्दत से पीछा करना चाहिए. इससे आपको कठिन मेहनत करने की प्रेरणा मिलेगी और आप आनंददायक जीवन जी सकेंगे.




