नीति आयोग की नीति में बदलाव कर सकते हैं मोदी

- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीति आयोग से नाराज हैं. आयोग डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया जैसी स्कीमों को प्राथमिकता के आधार लागू करवाने के लिए राज्यों को सहमत नहीं कर पाया है.
- अपनी स्थापना का एक साल पूरा कर चुका नीति आयोग इस साल राज्यों के साथ मिलकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार की रूपरेखा तैयार करेगा. कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नीति आयोग में व्यापक फेरबदल के बारे में सोच रहे हैं.
केन्द्र में सरकार बनाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बदलाव की दिशा में जो पहला कदम बढ़ाया था वह योजना आयोग को भंग करने का था. उसकी जगह नई सरकार ने एक नए आयोग की कल्पना पेश की जिसका नाम है नीति आयोग. लेकिन सत्ता के गलियारों में चर्चा तेज है कि प्रधानमंत्री अपने इस विचार के फलीभूत न होने से बेहद नाराज हैं.
प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक नीति आयोग ने देश के कृषि क्षेत्र पर जो रिपोर्ट सौंपी है उस पर नरेंद्र मोदी ने गहरी नाराजगी जताई है. सूत्र बताते है कि प्रधानमंत्री की नाराजगी के कारण ही नीति आयोग को अब तक गरीबी पर काफी समय से तैयार पड़ी रिपोर्ट को जारी करने के लिए हरी झंडी नहीं मिल रही है.
प्रधानमंत्री की नाराजगी की जो प्रमुख वजह उभर कर सामने आ रही है उसके मुताबिक नीति आयोग सरकार द्वारा शुरू की गई कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं मसलन डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया जैसी स्कीमों को प्राथमिकता के आधार लागू करवाने के लिए राज्यों को सहमत नहीं कर पाया है.
नीति आयोग केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं में राज्यों की भागीदारी सुनिश्चित करने में असफल रहा है
प्रधानमंत्री कार्यालय को उम्मीद थी कि नीति आयोग डिजिटल इंडिया, मेेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्वच्छ भारत, स्मार्ट सिटी जैसे अहम कार्यक्रमों में राज्यों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करेगा, सभी राज्यों को इन कार्यक्रमों को लागू करने के लिए राजी करेगा और साथ ही राज्यों की हिस्सेदारी भी सुनिश्चित करेगा. लेकिन नीति आयोग प्रधानमंत्री की उम्मीदों पर बुरी तरह से असफल सिद्ध हुआ है.
पीएमओ के एक सूत्र बताते है कि प्रधानमंत्री मोदी ने नीति आयोग को राज्यों के लिए एक रोड मैप प्रस्तुत करने के लिए कहा था. इसका मकसद राज्यों में गवर्नेंस की स्थिति सुधारना और विकास की गति को तेज करना था. मोदी की सोच थी कि अगर यह योजना सफल होती है तो केंद्र द्वारा गवर्नेंस के लिए एक व्यापक योजना के साथ राज्यों तक पहुंच बनाने का यह पहला उदाहरण होगा.
यह संविधान के संघीय ढांचे के भी अनुकूल होता. लेकिन प्रधानमंत्री का मानना है कि नीति आयोग राज्यों में वह विश्वास पैदा कर पाने में असफल रहा है.
अब शिक्षा और स्वास्थ्य पर रुख़ केंद्रित करेगा नीति आयोग
अपनी स्थापना का एक साल पूरा कर चुका नीति आयोग इस साल राज्यों के साथ मिलकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार की रूपरेखा तैयार करेगा. नीति आयोग शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में देशभर में चल रही सरकारी योजनाओं की समीक्षा करने के साथ ही साथ ही कमजोर तथा मजबूत राज्यों का वर्गीकरण करेगा.
आयोग के एक अधिकारी के मुताबिक जनवरी के अंत तक राज्यों के साथ गवर्निंग काउंसिल की बैठक होगी और इसमें शिक्षा-स्वास्थ्य क्षेत्र की मौजूदा स्थिति पर चर्चा होगी और फिर राज्यों के साथ रिपोर्ट तैयार करने पर रणनीति बनेगी.
नीति आयोग की भूमिका बदल सकती है. आयोग को अब शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जिम्मेदारी दी जाएगी
अधिकारी के मुताबिक शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रहे राज्यों से इस पर राय ली जाएगी. आयोग की नज़र दोनों सेक्टरों में सरकारी योजनाओं की मौजूदा दशा पर होगी. गत पांच साल में विभिन्न राज्यों के प्रदर्शन की समीक्षा के साथ उसमें जरूरी सुधार और भविष्य की रूपरेखा तय होगी.
फेरबदल की अटकलें
चर्चा है कि पीएम जनवरी के अंत में राज्यों के साथ आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक के बाद इसके पुनर्गठन पर भी विचार कर सकते हैं. मोदी की नाराजगी के चलते नीति आयोग के एक साल पूरा होने पर वर्षगांठ का आयोजन भी नहीं हुआ क्योंकि पीएम से मंजूरी नहीं मिली. नाराज मोदी नीति आयोग में बदलाव करने की दिशा में गंभीरता से विचार कर रहे हैं.
नीति आयोग को ज्यादा अधिकार देने की सलाह
मोदी भले ही नीति आयोग के कामकाज से नाखुश हैं लेकिन नीति आयोग के हाथ भी बंधे हुए हैं. इस समस्या की तरफ इशारा करते हुए वित्त मामलों की स्थायी समिति ने, जिसके अध्यक्ष वीरप्पा मोइली हैं, सरकार से नीति आयोग को कार्यपालिका से जुड़े अधिकार देने की सिफारिश की है. इससे नीति आयोग ज्यादा असरदार तरीके से काम कर सकेगा.
सूत्र बताते है कि सरकार नीति आयोग के अधिकारों में वृद्धि कर सकती है. गाहे-बगाहे नीति आयोग के सदस्यों ने भी यह स्वीकार किया है कि नीति आयोग की हैसियत एक थिंक टैक और सलाहकार परिषद सरीखी है. नीति आयोग की न तो अधिकारी सुनते हैं न केन्द्रीय मंत्री और न ही राज्य.
नीति आयोग के एक अधिकारी के मुताबिक इतने सीमित अधिकारों के चलते सरकार को हमसे ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए. नीति आयोग के एक सदस्य तो नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि सिर्फ नाम बदला है- योजना आयोग से नीति आयोग. बाकी कुछ नहीं बदला है. योजना आयोग के पास तो वित्तीय अधिकार थे, हमारे पास तो वह भी नहीं है.
First published: 23 January 2016, 8:59 IST