यह रेल बजट भी बीत गया पर 5 समस्याएं जस की तस रहीं

- ट्रेन से यात्रा करने वाले व्यक्तियों को यह बात पता है कि जितना बड़ा स्टेशन उतनी ही ज्यादा गंदगी. इसके अलावा पटरियों पर फैली गंदगी भी यात्रियों को परेशान करती है. रेलवे की साफ-सफाई की दशा में कोई बड़ा बदलाव नहीं आ पाया है.
- वेस्टर्न रेलवे हर साल स्टेशन और ट्रेन की साफ-सफाई के लिए हर साल करीब 3.5 करोड़ रुपये खर्च करती है. पिछले साल दिसंबर महीने में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नई दिल्ली स्टेशन के ट्रैक को साफ रखने में विफल होने की वजह से उस पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया.
रोजाना दो करोड़ से अधिक सवारियों को ढोना भारतीय रेलवे के लिए अपने आप में एक कड़ी परीक्षा है. हालांकि अन्य विभागों के मुकाबले रेलवे को ज्यादा तवज्जो मिलती है. अकेले यही विभाग है जिसका राष्ट्रीय बजट से पहले सरकार अलग से बजट पेश करती है.
बीते सालों के दौरान रेल बजट ने नई ट्रेन, यात्री और फ्रेट किरायों में बदलाव, यात्रियों को दी जाने वाली सुविधाएं, सुरक्षा और रेलवे की परिसंपत्तियों एवं इंफ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा समेत कई पहलुओं पर ध्यान दिया है.
हालांकि भारतीय रेल हर साल कई नई ट्रेनों की घोषणा करती है लेकिन जब बात रेलवे में सुधार की आती है तो स्थिति उल्टी नजर आती है. कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां भारतीय रेल का प्रदर्शन अभी भी दशकों पुरानी स्थिति में ही है.
2016-17 के रेल बजट में भी इन समस्याओं को अछूता ही छोड़ दिया गया है.
स्टेशनों की साफ-सफाई
ट्रेन से यात्रा करने वाले व्यक्तियों को इस बारे में बताने की जरूरत नहीं है. जितना बड़ा स्टेशन उतनी ही गंदगी. इसके अलावा पटरियों पर फैली गंदगी भी यात्रियों के लिए बड़ी परेशानी है. इन सबके बावजूद इस दिशा में कोई बदलाव नहीं आया है. साफ-सफाई को लेकर रेलवे ने जबर्दस्त पैसा खर्च किया है लेकिन इस दिशा में कोई बड़ा बदलाव नहीं आ पाया है.
वेस्टर्न रेलवे हर साल स्टेशन और ट्रेन की साफ-सफाई के लिए हर साल करीब 3.5 करोड़ रुपये खर्च करती है. पिछले साल दिसंबर महीने में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नई दिल्ली स्टेशन के ट्रैक को साफ रखने में विफल होने की वजह से उस पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया.
ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि अगर सरकार सफाई में विफल रहती है तो वह रोजाना के हिसाब से एक लाख रुपये का जुर्माना लगाएगी.
गंदे टॉयलेट
ट्रेनों में गंदे टॉयलेट की समस्या लंबे समय से मौजूद है. रेल मंत्री ने 2016-17 के बजट में एसएमएस की मदद से टॉयलेट साफ किए जाने की योजना की घोषणा की है. यह कितना काम कर पाता है, आने वाले समय में पता चल पाएगा.
टॉयलेट की डिजाइनिंग साफ-सफाई की दिशा में बहुत बड़ी समस्या रही है. भारतीय रेल इस समस्या से निपटने के लिए कई तरह के टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर रहा है. अब ट्रेनों में पारंपरिक टॉयलेट, बॉयो टॉयलेट और कंट्रोल डिस्चार्ज टॉयलेट का विकल्प होगा.
अब बॉयो वैक्यूम टॉयलेट पर विचार किया जा रहा है और डिब्रूगढ़ राजधानी में प्रायोगिक तौर पर इसे लगाया जा चुका है. सफल रहने पर ऐसे करीब 80 टॉयलेट को शताब्दी एक्सप्रेस में लगाया जाएगा. ऐसे में हम नई टेक्नोलॉजी के सफल होने की उम्मीद ही कर सकते हैं.
देरी से चलना
सरकार के इस दावे को मान लेना कि करीब 78 फीसदी ट्रेन समय पर चलती हैं. सरकार के गणना के तरीकों में ट्रेन के एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर पहुंचने के दौरान हुई देरी के समय का आकलन नहीं किया जाता. इसलिए बहुत अधिक ट्रेनों की देरी का आंकड़ा सामने नहीं आ पाता.
भारतीय रेलवे ट्रेनों में देरी के लिए कानून और व्यवस्था की समस्या, जन आंदोलन और प्राकृतिक आपदाओं को जिम्मेदार बताती है. भारतीय रेलवे ने माना है कि उपकरणों के विफल होने की वजह से भी ट्रेनों में देरी होती है. हालांकि रेलवे के इंजीनियर इस तरह की देरी को रिपोर्ट नहीं करते.
स्टेशनों का गलत प्रबंधन
जिन स्टेशनों से बड़ी संख्या में यात्री सफ करते हैं वहां भगदड़ की स्थिति बनी रहती है. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कोई स्थायी व्यवस्था भी नहीं है. कई सुविधाओं के बारे में आपको पता भी नहीं होता.
- मसलन कितने टिकट विंडों खुलेंगे.
- कौन सी एंट्री खुलेगी और कौन सी एंट्री बंद रहेगी.
- एस्केलेटर काम करेंगे या नहीं.
- एनाउंसमेंट सिस्टम समय पर ट्रेनों की घोषणा करेंगे या नहीं.
- ट्रेन में खाने की व्यवस्था
भारतीय रेलवे की कई ऐसी ट्रेनें हैं जिनकी टाइमिंग 72 घंटे हैं. ऐसे में इन ट्रेनों में बेहतर खान-पान की व्यवस्था की जरूरत पड़ती है. यहां तक कि छोटी अवधि वाले ट्रेनों की भी यात्रा अवधि 12 से 20 घंटे होती है.
खाने की गुणवत्ता
रेलवे में खाने की गुणवत्ता हमेशा से यात्रियों की बड़ी चिंता का विषय रहा है. अक्सर रेल कैंटीनों के खाने में कीड़े-मकोड़े निकलने की खबरें आती रहती हैं. गुणवत्ता के साथ एक बड़ी समस्या खाने की समय पर डिलीवरी न हो पाना है. रेलवे ने हाल ही में रेस्टोरेंट के साथ करार किया है ताकि ऑन बोर्ड यात्रियों को खाने की डिलीवरी दी जा सके. हालांकि यह अभी दूर की कौड़ी है.