'धर्मनिरपेक्षता के पैरोकारों ने इस देश को कभी शांत नहीं रहने दिया'

- वामपंथी संगठन डीयू में प्रस्तावित राममंदिर संबंधी सेमिनार का विरोध करने के लिए कमर कस चुके हैं. छह जनवरी को \'डीयू बचाओ\' कार्यकर्ताओं और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के प्रतिनिधियों ने प्रॉक्टर से मुलाकात कर इस आयोजन को रद्द करने की मांग की.
- एवीएपी के संचालक डॉ. चंद्रप्रकाश ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को समझते हुए हम राम जन्मभूमि विवाद के सभी पहलुओं पर विस्तार से विमर्श करेंगे. इसमें इतिहास, पुरातात्विक खुदाई और मसले के कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाएगा.
दिल्ली विश्वविद्यालय में इस हफ्ते दक्षिणपंथ और वामपंथी विचारधारा के बीच जोरदार टकराव की संभावना है. अरुंधति वशिष्ठ अनुसंधान पीठ (एवीएपी) ने नॉर्थ कैंपस की आर्ट्स फैकल्टी में राम जन्मभूमि मंदिर पर सार्वजनिक विमर्श आयोजित करने का फैसला किया है. राम जन्मभूमि मंदिर पर होने वाला यह सेमिनार नौ और दस जनवरी को आयोजित किया जाएगा.
एवीएपी ने देवी अरुंधति से प्रेरणा लेते हुए इस सेमिनार के आयोजन का फैसला किया है जिन्होंने 'रामराज्य' की संकल्पना को जमीन पर उतारा. सेमिनार का मकसद, 'बुद्धिजीवियों और शोधकर्ताओं के साथ अकादमिक जगत के विद्वानों की तरफ से देश में राम राज्य को लाने की दिशा में अहम नीतियों का निर्माण और उसे लागू करना है.'
स्वाभाविक तौर पर वामपंथी संगठनों ने इस पहल का विरोध शुरू कर दिया है. वामपंथी संगठन इस सेमिनार का विरोध करने के लिए कमर कस चुके हैं. छह जनवरी को 'डीयू बचाओ' कार्यकर्ताओं और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के प्रतिनिधियों ने प्रॉक्टर से मुलाकात कर इस आयोजन को तत्काल रद्द किए जाने की मांग की है. उनका कहना है कि सेमिनार के लिए मंजूरी डीपी सिंह के नाम पर ली गई थी जो डीयू के अकादमिक परिषद के सदस्य हैं और अब इसका इस्तेमाल राम जन्मभूमि पर सेमिनार के लिए किया जा रहा है ताकि विश्वविद्यालय परिसर में सांप्रदायिक तनाव पैदा कर उसे विभाजित किया जा सके.
प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस से भी मुलाकात की. उन्होंने कहा कि इस कैंपस में इस तरह के सेमिनार से सांप्रदायिक तनाव फैल सकता है और कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने का खतरा है. वामपंथी छात्र संगठन आइसा की नेशनल प्रेसिडेंट सुचेता डे बताती हैं, 'अगर विश्वद्यिालय इस सेमिनार के आयोजन को हरी झंडी दे भी देती है तो भी हम बड़े पैमाने पर इसका विरोध करेंगे. कैंपस के भगवाकरण की कोशिशों का जबर्दस्त विरोध किया जाएगा.'
कैच ने इस मामले में एवीएपी के संचालक डॉ. चंद्र प्रकाश से बातचीत की ताकि इस सेमिनार के मकसद और चर्चा के विषय को समझा जा सके.
आपने राम जन्मभूमि सेमिनार के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय को क्यों चुना?
हमने इसे स्वाभाविक कारणों से चुना. डीयू देश का एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है और हम केवल अकादमिक सेमिनार का आयोजन कर रहे हैं.
क्या आप विश्वविद्यालय में किसी व्यक्ति या संस्था से जुड़े हुए हैं?
हमारी एक स्वतंत्र शोध संस्था हैं और हमारा पूरा फोकस संस्कृति पर रहता है. इसलिए हमारे पास विश्वविद्यालय में सेमिनार करने का पूरा अधिकार है. हमारे लोग दिल्ली विश्वविद्यालय में हैं और हमने उनकी मदद से यह किया है.
सेमिनार का मकसद क्या है? क्या आप अपने विरोधी विचारों को सुनने जा रहे हैं या फिर यह एक तरह से अपनी जुबानी जैसा कुछ होने जा रहा है?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को समझते हुए हम राम जन्मभूमि विवाद के सभी पहलुओं पर विस्तार से विमर्श करेंगे. इसमें इतिहास, पुरातात्विक खुदाई और मसले के कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाएगा.
ऐतिहासिक निर्णय के पांच साल बाद भी राज्य सरकार की भूमिका बेहद सुस्त रही है और यही वजह है कि लोगों की जबर्दस्त इच्छा और माकूल न्यायिक फैसले के बावजूद अयोध्या में राम मंदिर आज भी सपना बना हुआ है.
ऐसे ही मसलों को लेकर सेमिनार किया जा रहा है ताकि इस सपने को साकार करने के लिए राज्य के संभावित विकल्पों और साधनों पर विचार किया जा सके.

यह सेमिनार कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करेगा:
- श्रीराम की समावेशी, बंधुत्व और सर्वस्वीकार्य छवि.
- श्रीराम: वैसे नेता जिन्होंने मिसाल पेश की.
- श्रीराम: आदर्शों और समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक मूल्यों का कायाकल्प.
- श्रीराम: इमाम-ए-हिंद
- श्रीराम मंदिर: क्या संभव है मेल-मिलाप.
- श्रीराम मंदिर: कानूनी विवाद
- श्रीराम मंदिर: इतिहासवाद का मकसद
- श्रीराम मंदिर आंदोलन और सामाजिक-धार्मिक पुनरुत्थानवाद
- श्रीराम मंदिर आंदोलन: छवि और संभावनाएं
- श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या पर श्रीराम मंदिर का निर्माण
- श्रीराम की जिंदगी और राष्ट्रीय एकीकरण
- श्रीराम जन्मभूमि मंदिर और राष्ट्रीय गर्व
- तो क्या आप सेमिनार में विरोधी विचारों को भी सुनेंगे?
- हां. हमने इसके लिए चार सेशन रखा है.
पहला सेशन 'श्रीराम: चरित्र और विचार: भारतीय संस्कृति का सारांश' का है. दूसरे सत्र में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की वैधता पर विचार किया जाएगा. तीसरा सेशन 'श्रीराम जन्मभूमि मंदिर: खुदाई और पुरातात्विक साक्ष्य' का है जबकि चौथे सत्र में 'राम मंदिर निर्माण: कानूनी पहलू' पर चर्चा की जाएगी.
आपने किन लोगों को प्रमुख वक्ता के तौर पर बुलाया है?
प्रमुख वक्ता डॉ. सुब्रमण्यन स्वामी होंगे जो कि इसके चेयरमैन भी है. हमने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में मध्य भारत के इतिहास के पूर्व प्रोफेसर डॉ. सतीश मित्तल को भी बुलाया है. इसके अलावा वार्ष्णेय कॉलेज में इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष रहे डॉ. विशन बहादुर सिंह, वार्ष्णेय कॉलेज और सरदार राजेंद्र सिंह को बुलाया गया है जो मशहूर सिख इतिहासकार हैं.
इसके अलावा पुरातात्विक विशेषज्ञों मसलन छत्तीसगढ़ सरकार के पुरातात्विक सलाहकार और एएसआई के सेवानिवृत्त सुपरिटेंडेंट डॉ. अरुण कुमार शर्मा, एएसआई के पूर्व अतिरिक्त निदेशक डॉ. सीएन दीक्षित, एएसआई के पूर्व निदेशक डॉ. आरडी त्रिवेदी और छत्तीसगढ़ सरकार के पुरातात्विक सलाहकार सुभाष कुमार सिंह को बुलाया गया है.
इसके अलावा कानूनी विशेषज्ञों मसलन सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट केएन भट्ट, नागालैंड के एडवोकेट जनरल और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विक्रमजीत बनर्जी, भारत के एडीशन सॉलिसीटर जनरल जी राजगोपालन, एडीशनल सॉलिसीटर जनरल अशोक मेहता, वरिष्ठ टिप्पणीकार डॉ. हरवंश दीक्षित और गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. अमरपाल सिंह को भी बुलाया गया है.
इस सेमिनार को लेकर डीयू कैंपस में सरगर्मी बढ़ रही है. क्या आप कोई और जगह नहीं चुन सकते थे?
यह वे लोग हैं जो अक्सर सहिष्णुता की बात करते रहते हैं. हालांकि वह खुद दूसरे के विचारों को लेकर सहिष्णु नहीं है. अगर दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रोफेसर रामजन्मभूमि मंदिर के पक्ष में अदालत में सबूत पेश कर सकता है तो वह उसी सबूत के बारे में बात क्यों नहीं कर सकता है? आपको इसकी तफ्तीश करनी चाहिए कि कौन से प्रोफेसर अदालत में गवाही दे रहे हैं.
अगर कैंपस में इसे लेकर हिंसा हुई तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?
हमें इसकी परवाह नहीं है. हम अपनी योजना के मुताबिक काम करेंगे. हिंसा उनके स्वभाव में है. धर्मनिरपेक्षता के पैरोकारों ने भारत को कभी शांत नहीं रहने दिया. वह दूसरे को सुनने को तैयार नहीं है तो यह असहिष्णुता नहीं हैं? हम इस पर क्या कह सकते हैं? क्या हम उनकी तरह बुद्धिजीवी नहीं है?
आपको इस सेमिनार की मंजूरी कैसे मिली?
हमने पूरी प्रक्रिया का पालन कर इसे हासिल किया. विश्वद्यिालय प्रशासन भी इसे जानता है. हमने इसके लिए उन्हें जरूरी पैसों का भुगतान किया है.
आपने कितने पैसे का भुगतान किया?
हमने हर दिन के लिए 16,500 रुपये का भुगतान किया. वह हर दिन बतौर फीस 15,000 रुपये लेते हैं. हमने शनिवार को पैसों का भुगतान किया और उन्होंने हमसे 1,500 अतिरिक्त लिए.
क्या यह सेमिनार सभी के लिए खुला होगा?
यह बेवकूफों के लिए नहीं होगा. लेकिन हमारा दरवाजा सभी बुद्धिजीवियों के लिए खुला है. यह कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है.
आपको कितने लोगों के आने की उम्मीद है?
हम जहां इस सेमिनार का आयोजन कर रहे हैं वहां 450 लोगों के बैठने की क्षमता है.
क्या आप यह भरोसा दे सकते हैं कि सेमिनार के दौरान हिंसा नहीं होगी?
यह प्रशासन की जिम्मेदारी है. हम एक लोकतांत्रिक समाज में रहते हैं. यह पुलिस की जिम्मेदारी है कि वह हमें सुरक्षा दे. हम हिंसा नहीं करेंगे लेकिन हमें किसी से डर भी नहीं है. 'लड़ेंगे नहीं पर डरेंगे नहीं.'
First published: 9 January 2016, 8:07 IST