Birthday Special: भगत सिंह ने मौत को 'महबूबा' और आजादी को माना था 'दुल्हन'

भगत सिंह, एक ऐसा नाम जिसे सुनकर हमारे शरीर का खून उबाल मारने लगता है. युवाओं के प्रेरणास्रोत शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिया. उन्होंने मौत को 'महबूबा' और आजादी को 'दुल्हन' माना था. 'कफन' का सेहरा बांधकर उन्होंने अपनी मां से कहा था 'मेरा रंग दे बंसती चोला'.
आज उन्हीं भारत मां के सच्चे सपूत भगत सिंह की जन्मतिथि है. भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा गांव में हुआ था. वह एक सिख परिवार में पैदा हुए थे. भगत सिंह ने फांसी के ठीक एक दिन पहले एक खत लिखा था. जिसे पढ़कर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. आप भी पढ़ें उनके खत को..
"साथियों,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता. लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं, कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता.
आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं. अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिंह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी.
हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हजारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है. कामना है कि यह और नजदीक हो जाए."