ममता का ‘राष्ट्रीय सरकार’ प्रस्ताव निजी खुन्नस की उपज तो नहीं?

तृणमूल सुप्रीमो ममता मुखर्जी नोटबंदी के दिनों से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दबाव डालने की पूरी कोशिश कर रही हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जानती हैं कि बंगाल के चर्चित चिट फंड घोटालों को लेकर गिरफ्तार हुए उनके वरिष्ठ सहयोगियों के कारण फिलहाल तराजू का पलड़ा दूसरी ओर झुका हुआ है. इसके बावजूद वे मोदी पर प्रहार करने से नहीं चूक रही हैं.
ममता ने विपक्ष की सभी पार्टियों को मोदी सरकार के खिलाफ एक होने का आह्वान करते हुए कहा, ‘वर्तमान हालात में शीर्ष पद के लिए भाजपा के अन्य शख्स को लेकर राष्ट्रीय सरकार बनाई जानी चाहिए. दिलचस्प है कि उन्होंने इस प्रस्तावित राष्ट्रीय सरकार के नेतृत्व के लिए केवल भाजपा नेताओं के नाम सुझाए.’ उन्होंने कहा, ‘इस देश को बचाने के लिए राष्ट्रीय सरकार बनने दें: अडवाणीजी, राजनाथजी या जेटलीजी उसके मुखिया बन सकते हैं. वर्तमान स्थितियों को झेलना बिल्कुल संभव नहीं है.’
‘राष्ट्रीय सरकार’ में कौन होगा?
बनर्जी शायद यहां कई पार्टियों की गठबंधन सरकार की बात कर रही हैं. एक ऐसी सरकार, जिसमें सभी पार्टियां अपने मतभेदों को भूलकर राष्ट्रीय हित में सरकार बनाएं. पर ऐसा कभी संभव नहीं है, सिवाय आपात स्थिति के. तो क्या वे ‘राष्ट्रीय सरकार’ बनाने की बात कहकर यह कहना चाहती हैं कि मोदी के अधीन देश संवैधानिक संकट के दौर से गुजर रहा है. ऐसे आरोप दो मुद्दों से उठे हैं, जिसकी वजह से वे हाल में उनसे बहुत चिढ़ी हुई हैं-पहला नोटबंदी और दूसरा, चिट फंड घोटालों में उनकी पार्टी केशामिल होने का आरोप.
निजी खुन्नस तो नहीं?
इस मोड़ पर मुख्य सवाल यह है कि क्या अन्य पार्टियां एक जुट होकर सरकार बनाने को तैयार हैं? तृणमूल के कट्टर प्रतिद्वंद्वी सीपीआई (एम), एमपी (लोकसभा) मोहम्मद सलीम ने शुरू में ही कह दिया था कि प्रस्तावित सरकार के नेतृत्व के लिए भाजपा के नाम सुझाना इस बात का साफ सूचक है कि ममता का भाजपा और आरएसएस और उनकी नीतियों से कोई विरोध नहीं है. उनकी समस्या केवल व्यक्ति विशेष मोदी से है. उन्हें चिट फंड घोटाले की जांच से खुद को बचाने के लिए फिर से एनडीए में शामिल होने में कोई पछतावा नहीं होगा.
कांग्रेस पार्टी ने नोटबंदी का विरोध करने के लिए तृणमूल का साथ दिया था. पर उसे भी अब तक इस प्रस्ताव की जानकारी नहीं है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ प्रवक्ता ने कैच को बताया कि उन्होंने उनका बयान नहीं देखा है, जबकि अन्य ने टिप्पणी देने से इनकार कर दिया. पार्टी ने केंद्र सरकार को अपनी ताजा मांगों की एक सूची जारी की है ताकि नोटबंदी से जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई हो सके. पर उसने ‘राष्ट्रीय सरकार’ के प्रस्ताव का उल्लेख नहीं किया.
थोड़ा सहयोग, पर भाजपा के साथ नहीं
नोटबंदी के हाल के विरोध में एक और पार्टी-आरजेडी, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का साथ दे रही थी. आरजेडी ने प्रस्ताव का स्वागत किया है, पर एक शर्त के साथ. आरजेडी के प्रवक्ता मनोज झा ने कैच को बताया कि उनकी पार्टी जिस पक्षपातपूर्ण तरीके से जांच एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है, उसका विरोध करने में बनर्जी के साथ है.
उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि राष्ट्रीय सरकार की आवश्यकता है क्योंकि मोदी के हाथों में लोकतांत्रिक संस्थाएं देकर आप निश्चिंत नहीं हो सकते. हालांकि झा ने स्पष्ट किया कि इस सरकार के लिए आरजेडी भाजपा का समर्थन नहीं करेगी और यह सरकार गैर भाजपा होनी चाहिए.
तानाशाही के रास्ते खुले
जदयू ने राष्ट्रीय सरकार के प्रस्ताव का समर्थन करने से ही इनकार नहीं किया बल्कि उनके इस विचार को हास्यास्पद, अव्यवहारिक और गैरजिम्मेदार भी बताया. जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कैच को पूछा कि क्या बनर्जी की पार्टी के पास संसदीय बहुमत है, जो वे केंद्र में सरकार बनाने की सोच रही हैं? हम कौन हैं बताने वाले कि भाजपा के भीतर नेता कौन होंगे.
उन्होंने यह भी पूछा कि अगर कल भाजपा यह कहने लगे कि हमारी पार्टी में कौन नेता होने चाहिए, तो क्या हम मान लेंगे? त्यागी ने केंद्र में राष्ट्रपति शासन की बनर्जी की मांग की भी निंदा की यह कहते हुए कि वे तानाशाही के रास्ते खोल रही हैं. इन हालात में लगता है कि बनर्जी के प्रस्ताव को मानने वाला कोई नहीं है.
जदयू और तृणमूल के संबंध नोटबंदी के बाद खासतौर से खराब हुए हैं क्योंकि जदयू प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सैद्धांतिक रूप से नोटबंदी के पक्ष में हैं. और उनके पश्चिम बंगाल के समकक्षों का उसके लिए कड़ा विरोध है. बनर्जी ने पटना में एक विरोध रैली में इस ओर इशारा भी किया था कि कुमार ‘गद्दार’ हो गए हैं.
First published: 8 January 2017, 8:20 IST