सोमनाथ चटर्जी हिंदू महासभा की विरासत छोड़ बने थे वामपंथ के पुरोधा

लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष और वामपंथ के पुरोधा सोमनाथ चटर्जी का आज 89 साल की उम्र में निधन हो गया. वामपंथ के पुरोधा कहे जाने वाले सोमनाथ की विरासत इसके ठीक विपरीत थी. सोमनाथ चटर्जी के पिता निर्मल चंद्र अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के संस्थापक अध्यक्ष थे. लेकिन सोमनाथ ने अपने पिता की विरासत को अपनाने की जगह वामपंथ का रास्ता चुना.
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सोमनाथ पिता की विरासत और विचारधारा के विपरीत जाकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने. इतना ही नहीं सोमनाथ 10 बार लोकसभा चुनाव जीते, यानि 10 बार वे सांसद रहे. सोमनाथ चटर्जी के राजनीतिक जीवन की बात करें तो 35 साल तक देश में एक सांसद के रूप में उन्होंने काम किया. वामपंथ को और अधिक उजागर करने वाले सोमनाथ को 1996 में उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया गया.
सोमनाथ चटर्जी का जन्म 25 जुलाई 1929 को असम के तेजपुर में हुआ था. सोमनाथ के पिता बंगाली ब्राह्मण निर्मल चंद्र चटर्जी और उनकी मां का नाम वीणापाणि देवी था. सोमनाथ चटर्जी ने साल 1968 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी.
सोमनाथ के पिता एक प्रतिष्ठित वकील थे साथ ही वे राष्ट्रवादी हिंदू जागृति के घोर समर्थक थे. सोमनाथ के पिता हिंदू महासभा के अध्यक्ष भी रहे. लेकिन सोमनाथ ने अपने पिता की विचारधारा के उलट वामपंथ को चुना. साल 1968 में सोमनाथ चटर्जी ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्स) ज्वाइन की थी.
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इसके बाद वह साल 1971 में CPIM के समर्थन से निर्दलीय सांसद बने थे. वह 9 बार सांसद चुने गए थे फिर साल 1984 में वह ममता बनर्जी से जाधवपुर सीट से हार गए थे. इसके बाद फिर साल 1989 से साल 2004 तक उनकी जीत का सिलसिला जारी रहा. फिर साल 2004 में वह 14वीं लोकसभा में 10वीं बार सांसद चुने गए.
सोमनाथ चटर्जी वामपंथ के एकलौते ऐसे नेता रहे जो लोकसभा अध्यक्ष के पद तक पहुंचे. 10 बार लोकसभा से जीतने के बाद एक बार 1984 में कांग्रेस की ममता बनर्जी से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था.