तमिलनाडु कांग्रेस प्रमुख का इस्तीफा और कांग्रेस बुरे से बुरे होते दिन

- तमिलनाडु कांग्रेस शुरू से ही आंतरिक गुटबाजी का शिकार रहा है. पार्टी में कई धड़े हैं, जिनकी वजह से पार्टी को चुनाव से पहले गठबंधन की जरूरत पड़ती है.
- तमिलनाडु कांग्रेस प्रमुख इलैंगोवन हाल के विधानसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे चुके हैं. पार्टी ने डीएमके के साथ गठबंधन में 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसे महज 8 सीटों पर कामयाबी मिली.
तमिलनाडु कांग्रेस प्रमुख इलैंगोवन हाल के विधानसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे चुके हैं. पार्टी ने डीएमके साथ गठबंधन में 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसे महज 8 सीटों पर कामयाबी मिली. गठबंधन को कुल 89 सीटें मिली.
राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की खराब स्थिति को देखते हुए करुणानिधि ने पार्टी को उसकी उम्मीद से ज्यादा सीटें दी थीं. ऐसा इसलिए किया गया ताकि सोनिया गांधी को खुश रखा जा सके और साथ ही कांग्रेस को एआईडीएमके के साथ गठबंधन में जाने से रोका जा सके.
हालांकि यह पहली बार नहीं हुआ है जब प्रदेश कांग्रेस प्रमुख को चुनाव में हार के बाद बाहर होना पड़ा है. इलैंगोवन हालांकि पहले वैसे व्यक्ति हैं जिन्होंने नवंबर 2014 के बाद से कई शिकायतों के बावजूद पार्टी ने प्रेसिडेंट बनाए रखा. विरोधी धड़े के नेता लगातार पार्टी आलाकमान से इलैंगोवन के बारे में शिकायत कर रहे थे.
विरोधी गुट के नेताओं का कहना था कि पार्टी को 41 सीट मिलने के बावजूद भी इलैंगोवन कांग्रेस की मजबूत स्थिति वाले विधानसभा क्षेत्रों मसलन शिवगंगा, चेय्यार और अन्य जगहों पर नहीं गए.
लगातार कई शिकायतों के बाद इलैंगोवन को पिछले हफ्ते दिल्ली बुलाया गया और उनकी मुलाकात कांग्रेस के वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी से हुई. गांधी ने उनसे पार्टी के प्रदर्शन को लेकर नाराजगी जताई. इलैंगोवन की मुलाकात पार्टी प्रेसिडेंट सोनिया गांधी से नहीं हो पाई.
पार्टी प्रवक्ता गोपन्ना ने कहा कि इलैंगोवन को पता था कि अब उन्हें जाना होगा, इसलिए उन्होंने खुद ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
आलाकमान स्थानीय चुनाव से पहले पार्टी के संगठन में बदलाव चाहता है. चुनाव के पहले भी इस बात की शिकायत आ रही थी कि वह दूसरे धड़े के नेता मसलन पी चिदंबरम, पूर्व प्रदेश कांग्रेस समिति प्रमुख केवी थंगाकाबालू और कृष्णास्वामी के साथ दो बार विधायक रह चुके वसंत कुमार को साथ लेकर नहीं चल रहे थे.
वास्तव में वसंत कुमार और विजयधारानी उन विधायकों में से हैं जो चुनाव जीतने में सफल रहे. दोनों ही कन्याकुमारी से लड़े थे, जहां कांग्रेस की मजबूत पकड़ है. यहां की राजनीति पड़ोसी राज्य केरल से प्रभावित होती है.
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के संस्थापक पेरियार ईवी रामासामी के परपोते इलैंगोवन काफी मुखर माने जाते रहे हैं. उनका पहला कार्यकाल भी विवादों में रहा था.
इस बार हालांकि कुछ ज्यादा ही हो गया. पार्टी की महिला ईकाई के सदस्यों की तरफ से उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराना पार्टी आलाकमान को रास नहीं आया. नए प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के तौर पर पीटर अलफोंसे और वसंत कुमार का नाम सामने आ रहा है.
चिदंबरम स्थानीय राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखते हैं. हालांकि कई लोगों को लगता है कि वह जल्द ही राज्य कांग्रेस का प्रमुख हो सकते हैं. लेकिन उनका राज्य में बड़ा समर्थन नहीं है और दूसरी वजह उनके बेटे कार्ति चिदंबरम का भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी होना भी है.
गुटबाजी का इतिहास
तमिलनाडु कांग्रेस में गुटबाजी का इतिहास रहा है और यह एक बड़ी वजह है कि कांग्रेस डीएमके के 1969 में सरकार बनाने के बाद से राज्य में कभी वापस नहीं आई.
1969 में पार्टी के टूटने के बाद इंदिरा गांधी ने डीएमके के साथ 1971 में करार किया ताकि कामराज को उनकी जगह दिखाई जा सके. कामराज के मरने के बाद राज्य में कांग्रेस का कोई बड़ा कद्दावर नेता नहीं हुआ.
वास्तव में पिछली बार पार्टी को सबसे ज्यादा 44 फीसदी वोट कामराज के नेतृत्व में कांग्रेस-ओ को मिला था जब इस पार्टी ने कांग्रेस आई और डीएमके के गठबंधन के खिलाफ 1971 में चुनाव लड़ा था.
कामराज की मौत के बाद उनके वफादार जीके मूपनार इंदिरा कांग्रेस में चले गए. मूपनार का मानना था कि पार्टी डीएमके और एआईडीएमके के गठबंधन की मदद से कभी भी वापसी नहीं कर पाएगी. राजीव गांधी ने उन्हें अकेले जाने का मौका दिया और पार्टी को 1989 में 27 सीटें मिलीं. इतनी ही सीटें जयललिता की पार्टी को भी मिली थी.
परिणाम से असंतुष्ट राजीव गांधी ने मूपनार को हटाकर उनकी जगह के राममूर्ति को राज्य कांग्रेस का प्रमुख बनाया था, लेकिन वह भी सफल साबित नहीं हो पाए.
1996 में पार्टी एक बार फिर से 'भ्रष्ट' जयललिता के साथ गठबंधन को लेकर विभाजित हुई. मूपनार के नेतृत्व में तमिल मनीला कांग्रेस अलग हुई और डीएमके के साथ इसने गठबंधन कर शानदार प्रदर्शन किया. मूपनार को उस वक्त बड़ा झटका लगा जबकि डीएमके 1999 में बीजेपी की तरफ चली गई. उन्होंने फिर से कांग्रेस में आने का फैसला लिया और 2000 में उनकी मौत हो गई.
विडंबना यह है कि उनके बेटे जी के वासन कभी यूपीए में मंत्री रहे थे और उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़कर 2014 में तृणमूल को संभालने में लग गए. तृणमूल को हालांकि सफलता नहीं मिली लेकिन यह उसके लिए बड़ी उपलब्धि रही. फिलहाल कांग्रेस तृणमूल के खराब प्रदर्शन से खुश हो सकती है.
First published: 27 June 2016, 16:50 IST