बनारस तुम्हें याद करता बूढ़ा हो चला है बिस्मिल्लाह

- शहनाई के सिरमौर उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ां को गुज़रे 10 साल हो गए हैं लेकिन शहर बनारस अभी भी उन्हें रह-रहकर याद करता है.
- कोई कहता है कि कैसे उन्होंने सात समंदर पार अमेरिका में बसने से इनकार कर दिया था क्योंकि अपनी ज़मीन और तहज़ीब ज़्यादा प्यारी थी.
10 साल का बिस्मिल्लाह पंचगंगा घाट से दौड़ते-हांफते हुए अपने 5 किलोमीटर दूर मौजूद घर पर पहुंचा था. उसके पांवों से खून बह रहा था तो उसका चेहरा स्याह पड़ा हुआ था. बिस्तर पर बीमार लेटे अपने मामू विलायतु को लगभग झकझोरते हुए उसने उठाकर कहा 'मामू, आज जब मंदिर के नौबतखाने में शहनाई बजा रही थी, अचानक एक कोई सफ़ेद कपड़ा पहने साधू दिखा.
कह रहा था, 'तुम जो चाहोगे बेटा वो होगा' लेकिन फिर अचानक गायब हो गया'. बीमार विलायतु यह सुनते ही बिस्तर से हड़बड़ाकर उठे और एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया 'सुन बे, बिस्मिलवा, अब कभी ई बात केहू से मत कहे'.
बनारस के पिपलानी कटरा स्थित सितारा देवी मार्ग पर पं कामेश्वर नाथ मिश्र यह कहानी सुनाने के बाद एकटक अपने पिता की तस्वीर को देख रहे होते हैं. उनके पिता स्वर्गीय पं बैजनाथ मिश्र सारंगी पर महान शहनाई वादक भारत रत्न बिस्मिल्लाह खां के साथ संगत किया करते थे. कुछ पल की खामोशी फिर अचानक पं कामेश्वर मिश्र कहते हैं,
'बिस्मिल्लाह खां क्या गए, बनारस से मंगल चला गया'. बनारस के हडहा सराय में बिस्मिल्लाह खां अपने मकान के सबसे उपरी मंजिल पर रहा करते थे. उनके कमरे की एक खिड़की काशी विश्वनाथ के मंदिर के सामने खुला करती थी, जब तक बिस्मिल्लाह जिन्दा रहे बाबा भोलेनाथ को भोर में खिड़की खोल शहनाई बजाकर उठाते रहे. खिड़की अब भी खुलती है, काशी विश्वनाथ शायद जाग भी जाते होंगे लेकिन बिस्मिल्लाह की शहनाई नहीं होती.
यादों में बिस्मिल्लाह
बिस्मिल्लाह खां को दफ़्न हुए एक दशक बीत चुके हैं. उनके नाते-रिश्तेदारों को उनके नाम के बदले सरकारी मदद की दरकार है. उनके तमाम शागिर्द शहर पहले ही छोड़ चुके हैं तो बेटा नाज़िम बार-बार यूपी छोड़ने की धमकी देता है. हाल यह है कि उनके शहर बनारस में ही उनके निशान, उनकी बातें, उनकी कहानियां ढूंढने से भी नहीं मिलती.
लेकिन तबला वादक और बिस्मिल्लाह के साथ कई मौकों पर संगत कर चुके पंडित कामेश्वर नाथ मिश्र जैसे उन लोगों की स्मृतियों में ही नहीं, उनके वर्तमान भी उनके उस्ताद की शहनाई घुली हुई नजर आती है, जिन लोगों के लिए बनारस का एक नाम बिस्मिल्लाह खां भी रहा है.
कामेश्वर गुरु कहते हैं बिस्मिल्लाह के जाने बाद हमारा शहर बूढ़ा हो गया है. पं कामेश्वर नाथ के पास बिस्मिल्लाह खां के बेजोड़ किस्से हैं. उनके पिता के पास उनसे भी बेजोड़ किस्से थे. वो कहते हैं 'आप जानते हैं वो अपने लिए शहनाई नहीं बजाते थे, वो श्रोताओं के लिए बजाते थे, धुन वो जो रसिकों को पसंद आये खुद को नहीं'.
बताते हैं कि जब कभी बिस्मिल्लाह खां का दौरा किसी नवाब के यहां हो, तो मेरे पिता के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती थी. आजादी के पहले दरभंगा नरेश बिस्मिल्लाह की शहनाई के मुरीद थे. एक बार जो उनकी टोली गई 20- 25 दिन तो रह ही आती थी. शाम को शहनाई और दिन में पतंगबाजी.
पं कामेश्वर बताते हैं कि मेरे पिता पंडित बैजनाथ मिश्र सारंगी बजाते थे, उन्हें केवल इसलिए दरभंगा ले जाया जाता था कि वो सारंगी पर तो संगत करे हीं, दिन में सबको अपने हाथ से बाटी चोखा बनाकर खिलाएं, मेरे पिता के हाथों का स्वाद वो कभी न भूले.
बाबा की नगरी में बेजोड़ रहे बिस्मिल्लाह
गंगा-जमुनी तहजीब के सही मायनों में प्रतीक बिस्मिल्लाह खां का वो किस्सा भी सामने आता है जब राय कृष्ण दास के बाग़ में 108 ब्राह्मणों द्वारा रामचरितमानस का 9 दिवसीय पाठ ख़त्म होने वाला होता है. पं बैजनाथ बिस्मिल्लाह खां से मिलते हैं और कहते हैं 'सुन यार, अंतिम दिन आकर शहनाई बजा देता त मजा आ जात'. बिस्मिल्लाह कहते हैं बिलकुल आयेंगे. बैजनाथ कहते हैं गाड़ी भेज दे तो बिस्मिल्लाह का जवाब होता है, 'भगवान के काम में कैसी गाडी?'
फिर समापन के दिन हड्हा सराय से पैदल ही अपनी टोली को लेकर चार किलोमीटर दूर बगिया में बिस्मिल्लाह खां पहुंच जाते हैं. तबले पर संगत के लिए किशन महाराज होते हैं. ऐन मौके पर अचानक सब गड़बड़ नजर आने लगता है जब बिस्मिल्लाह कहते हैं हमारी तबियत ठीक नहीं लग रही, किशन महाराज भी आश्चर्यजनक ढंग से खुद की तबियत खराब होने की बात कहने लगते हैं.
चिंतित पं बैजनाथ कहते हैं यार आप लोग बजाएंगे नहीं, तो बड़ी बेइज्जती हो जायेगी. बिस्मिल्लाह बोलते हैं 'तबियत ठीक हो सकती है पर इसके लिए जरुरी है आप सारंगी बजाइए. 'बैजनाथ कहते हैं 'अरे हमने कई महीनों से सारंगी नहीं उठाई. 'खैर,जिद्द स्वीकार होती है और रातभर जो समा बांधा जाता है वो जीवन भर भुलाए नहीं भूला ,न बिस्मिल्लाह को न बैजनाथ को.
जो मजा बनारस में वो अमेरिका में भी नहीं
बिस्मिल्लाह खां कहा करते थे 'देश में 50 हजार शहनाई बजाने वाले होंगे, उनमें से 5 ऐसे होंगे जो मुझसे भी अच्छी शहनाई बजाते होंगे और मेरे उस्ताद बनने लायक होंगे लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि मेरे पास मुकद्दर भी था'. बिस्मिल्लाह खां को एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति ने अमेरिका में बस जाने का न्यौता दिया.
दरअसल 1954-55 में एस्नोवर अमेरिका के राष्ट्रपति हुआ करते थे वो खुद भी संगीत के बहुत शौक़ीन थे. जब उन्होंने बिस्मिल्लाह खां की शहनाई सुनी तो उन्हें दावतनामा भिजवाया. बातचीत शुरू हुई तो राष्ट्रपति ने पूछा आपके घर में कितने लोग हैं? बिस्मिल्लाह ने जवाब दिया '54', एस्नोवर ने पूछा कितना खर्च आ जाता है खाने पर? तो बिस्मिल्लाह ने जवाब दिया कि यह क्यूं पूछ रहे?
एस्नोवर ने कहा 'जितना भी खर्च आता है उसका दोगुना देंगे, तनख्वाह देंगे, घर देंगे, अमेरिका बस जाओ' बिस्मिल्लाह ने जवाब दिया 'साहेब, बस तो जाएं लेकिन सुबह-सुबह जब हम घर से निकलते हैं और दोनों तरफ लोग खड़े होकर आदाब-आदाब करते हैं वो मंजर हमें यहां कहां मिलेगा?'
राग बसंत और महफ़िल में रोशन आरा
पाकिस्तान में 'मल्लिका ए मौसिकी' के खिताब से नवाजी गई रोशन आरा बेगम का दिल्ली के एक मशहूर थियेटर में एकल गायन था. उसी महफ़िल में बिस्मिल्लाह खां को भी शहनाई बजानी थी. रोशन आरा का नाम बेहद बड़ा था, जबकि बिस्मिल्लाह ने अभी सार्वजानिक मंचों पर शहनाई बजानी शुरू ही की थी.
रोशनआरा ने उस दिन जो महफ़िल में गाया, सभी को लाजवाब कर दिया. बिस्मिल्लाह अपने भाई कमसुद्दीन के साथ गये हुए थे, रोशनआरा को सुनने के बाद दोनों भाइयों ने फैसला किया कि आज राग 'बसंत' बजायेंगे, फिर जो सूर दोनों ने मिलकर साधा कि बिस्मिल्लाह हमेशा के लिए बिस्मिल्लाह हो गए.
संगीत को लेकर स्वर्गीय बिस्मिल्लाह खां कितने ईमानदार थे, इसका अंदाजा एक वाकये से लगाया जा सकता है. बनारस के डीएलडब्ल्यू में बिस्मिल्लाह खां और गिरिजा देवी की जुगलबंदी थी. अचानक बिस्मिल्लाह खां ने पं कामेश्वर को पास बुलाया और कहा कि चलो तबले पर संगत करो.
पं कामेश्वर अचकचाए क्योंकि बिस्मिल्लाह के साथ तबले पर हमेशा उनका बेटा नाजिम ही सांगत करता था. पंडित जी ने पूछा 'नाजिम क्यों नहीं?' बिस्मिल्लाह ने जवाब दिया 'नाजिम शहनाई पर संगत किया करते हैं, यहां गिरिजा देवी भी गा रही हैं, तुम बजाओगे'. फिर क्या था पंडित कामेश्वर ने पूरी रात उन दोनों के साथ तबले पर संगत करी.
First published: 28 October 2016, 3:06 IST