दलितों पर हमला: भाजपा ने उत्तर प्रदेश चुनाव से ठीक पहले कुल्हाड़ी पर पांव दे मारा है

अभी मुंबई में अंबेडकर भवन को बुलडोज़र से गिराए जाने के दंश से भाजपा उबर भी नहीं पाई थी कि गुजरात के उना में दलितों के साथ हुई घटना और उसके चलते दलितों के बीच बढ़ते आक्रोश ने भाजपा के लिए और भी ज़्यादा मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.
मुंबई की सड़कों पर दलितों का सैलाब उमड़ रहा है और राज्य की भाजपा-शिवसेना गठबंधन वाली सरकार को चुनौती दे रहा है. उधर पटेलों से मार खा चुकी गुजरात सरकार ने दलितों के साथ हुई अमानवीयता पर देर से सुध लेकर अपने लिए और मुसीबत खड़ी कर ली है.
राज्य सरकार की आंखें तब खुलीं जब दलित समाज ने सड़कों पर उतरना शुरू कर दिया. उन्होंने गाय की खाल उतार रहे चर्मकारों के साथ हुई ज़्यादती के बदले उग्र प्रदर्शन किए और मरी हुई गायों को सरकारी भवनों में ले जाकर फेंक दिया. इन प्रदर्शनों में एक व्यक्ति के मारे जाने की भी खबर है.
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रही सही कसर भाजपा के उत्तर प्रदेश राज्य के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने मायावती पर अभद्र टिप्पणी करके पूरी कर दी. उन्होंने मायावती को 'वेश्याओं से बदतर' बताया. इस टिप्पणी की आंच संसद तक दिखाई दी. मायावती ने इस मामले पर केंद्र सरकार और भाजपा पर तीखे प्रहार किए. विपक्ष एकजुट हो गया और भाजपा की खासी किरकिरी हुई. हालांकि भाजपा ने दयाशंकर सिंह को पद से हटा दिया है लेकिन भाजपा को जो क्षति हो चुकी है, अब उसकी भरपाई नहीं हो सकती है.
मुश्किल में मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए और भाजपा के लिए ये घटनाएं बुरी खबर हैं. मायावती पर भाजपा नेता की टिप्पणी उस समय सामने आई जिस वक्त वो उना का मुद्दा संसद में उठा रही थीं. गुजरात के दलितों के साथ हुई घटना का संदेश मायावती की पार्टी उत्तर प्रदेश के एक-एक कोने तक ले जाने वाली है. यह मुद्दा पंजाब और गुजरात में भी विपक्ष के लिए हथियार बनेगा.
भाजपा की पूरी कोशिश है कि उत्तर प्रदेश में अपने अगड़े जनाधार को मज़बूत करने के साथ साथ पिछड़ों, दलितों में भी पैठ बनाई जाए. आरएसएस और भाजपा इस तरह की सोशल इंजीनियरिंग में लगातार लगे हैं. ये भी कोशिश हो रही है कि कैसे दलितों को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा किया जाए ताकि मायावती का दलित-मुस्लिम वोटबैंक कमज़ोर पड़े. मायावती का कमज़ोर होना भाजपा के लिए बहुत ज़रूरी है. इसके बिना वो प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकती है.
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लेकिन ताज़ा घटनाक्रम के बाद भाजपा दलितों के बीच अपने लिए गुंजाइश के सारे रास्ते बंद करने पर लगी हुई है. मायावती पर व्यक्तिगत हमला भाजपा को खासा महंगा पड़ने वाला है. मायावती पर जब-जब ऐसे हमले हुए हैं, वो और मज़बूत हुई हैं. भाजपा और अगड़ों की मानसिकता में दलितों के लिए ऐसे शब्द और विचार भाजपा के सारे करे-धरे पर पानी फेरने के लिए काफी हैं.
मायावती ने बुधवार को राज्यसभा में अपना रोष व्यक्त करते हुए कहा, “यह टिप्पणी केवल एक दलित के प्रति नहीं है. मैं एक महिला भी हूं. कल को ऐसे शब्द किसी दूसरे वर्ग की महिला के खिलाफ भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं. अगर ऐसे टिप्पणियों के बाद लोग सड़कों पर उतर आए तो मैं कुछ नहीं कर सकूंगी.”
मायावती का इशारा साफ है. वो इस टिप्पणी को दलितों और महिलाओं से जोड़कर लोगों के बीच ले जाएंगी. इससे भाजपा को नुकसान होगा और मायावती और मज़बूत होंगी. रोहित वेमुला की आत्महत्या के आरोप से अबतक न उबर सकी भाजपा के लिए यह एक राजनीतिक अनिष्ट साबित होने वाला है.
दादरी का जिक्र
उधर भाजपा के लिए दुश्मन कम नहीं हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी गुरुवार को गुजरात में पीड़ित दलितों से मिल रहे हैं. आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी गुजरात जा सकते हैं. यानी पंजाब और उत्तर प्रदेश में ऊना के दलितों का मुद्दा ज़रूर उछाला जाएगा. राहुल और अरविंद इससे पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय भी गए थे और दलित छात्रों के साथ अपना समर्थन व्यक्त किया था.
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हालांकि मायावती को मालूम है कि उन्हें केवल भाजपा को रोकना ही नहीं है, बल्कि दलित वोटबैंक में सेंध लगाने की कांग्रेस की कोशिशों को भी टालना है. गुजरात के दलितों पर बोलते हुए मायावती ने कहा कि राज्य में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है लेकिन उन्होंने समय से यह मुद्दा नहीं उठाया और वो तभी जागे जब उन्होंने खुद सदन में इस घटना को उठाया. मायावती दरअसल, भाजपा के साथ साथ कांग्रेस को भी रोकना चाहती हैं.
जिस तरह दादरी की घटना का ज़िक्र एक-एक मुसलमान बिहार चुनाव के दौरान कर रहा था, उसी तरह से उत्तर प्रदेश और पंजाब में भी गुजरात के दलितों और मायावती पर अभद्र टिप्पणी का मुद्दा दलितों की हर बस्ती तक पहुंचेगा. भाजपा और मोदी के लिए निःसंदेह यह बुरी खबर है.
First published: 21 July 2016, 8:26 IST