उत्तराखंड: राज्यपाल विवाद में, रावत दबाव में

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत 28 मार्च को बहुमत साबित कर पाएंगे या नहीं, इस पर अभी संशय बरकरार है. एक तरफ जहां भाजपा कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को अपने साथ मिलाकर विधानसभा में बहुमत का दावा कर रही है, वहीं हरीश रावत को भी यकीन है कि सीएम के पद पर बने रहने के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा उनके पास है.
राज्य में कांग्रेस नेतृत्व के पास आत्मविश्वास शायद इस तथ्य से आया होगा कि कांग्रेस से बागी हुए नौ विधायकों को दल-बदल विरोधी कानून के तहत उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष जीएस कुंजवाल द्वारा सदस्यता से निलंबित कर दिया जाएगा.
यदि ऐसा हुआ तो विधानसभा में विधायकों की संख्या घटकर 62 हो जाएगी, जो कांग्रेस को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने में सहायता कर सकती है. इन नौ बागियों को छोड़ दें तो भी कांग्रेस के पास तीन निर्दलीय विधायकों, एक यूकेडी और एक बीएसपी के विधायक का समर्थन है, जिन्हें मिलाकर उसके पास कुल 33 विधायक हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में कांग्रेस को बहुमत साबित करने के लिए सिर्फ 31 विधायकों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी, जबकि उनका दावा है कि उनके पास 33 विधायक हैं.
बागी हुए नौ विधायकों को दल-बदल विरोधी कानून के तहत उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष जीएस कुंजवाल निलंबित कर देंगे
इतना ही नहीं, देश की सबसे पुरानी पार्टी उत्तराखंड में बागी हुए विधायकों में से कुछ तक पहुंचने और उन्हें वापस पार्टी के पाले में लौटने के लिए मनाने की कोशिश में लगी है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं, “जो भी वापस लौटना चाहता है, हम उसका स्वागत करेंगे. यदि कोई अपने परिवार से गुस्सा होकर सुबह घर छोड़कर चला जाए तो इसका यह मतलब नहीं होता कि परिवार ने उसे त्याग दिया है. और यदि वे वापस नहीं भी आते तब भी हम विधानसभा में अपना बहुमत साबित करके दिखा देंगे.”
इस पहाड़ी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए भाजपा के साथ हाथ मिला लेने वाले सभी बागियों को विधानसभा अध्यक्ष ने शनिवार को ही दल-बदल विरोधी कानून के तहत नोटिस जारी कर दिया था. कांग्रेस के इन बागियों के पास स्पष्टीकरण देने के लिए 26 मार्च तक का समय है. अन्यथा विधानसभा से उनका निष्कासन लगभग तय ही है.
हालांकि भाजपा नेतृत्व ने विधानसभा अध्यक्ष पर आरोप लगाया है कि वे हरीश रावत के “एजेंट” के तौर पर काम कर रहे हैं और भाजपा ने उनके इस्तीफे की मांग भी की है. भाजपा यह भी दावा कर रही है कि चूंकि विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ भी 35 विधायकों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है, ऐसे में वे बागी विधायकों को नोटिस दे ही नहीं सकते. उनके दावे का खंडन करते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी कहते हैं, “विधानसभा अध्यक्ष पर इस तरह का कोई अंकुश नहीं है और ऐसा करना उनके अधिकार क्षेत्र में है.”
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय कहते हैं, “जो भी वापस लौटना चाहता है, हम उसका स्वागत करेंगे
राज्य में कांग्रेस नेतृत्व के सूत्र दावा कर रहे हैं कि बागियों में कुछ यह संकेत दे रहे हैं कि वे झगड़ा खत्म कर पार्टी के साथ वापस हाथ मिला सकते हैं. उत्तराखंड में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि “वे कांग्रेस के उतने खिलाफ नहीं हैं, जितने खिलाफ वे हरीश रावत के हैं. अब उनको महसूस हो गया है कि विश्वास मत प्रस्ताव पर मतदान से पहले ही उनकी विधानसभा की सदस्यता निष्कासित की जा सकती है, इसी बात ने उन्हें परेशान कर दिया है.”
उन्होंने यह भी दावा किया कि कु़ंवर प्रणव सिंह चैम्पियन, शैलेंद्र मोहन सिंघल, उमेश शर्मा और प्रदीप बत्रा को वापस कांग्रेस पार्टी के पाले में लौटने के लिए मनाया जा रहा है. एक और नेता ने कहा कि “हम उन्हें चेतावनी दे रहे हैं कि विधानसभा से निष्कासन उनके लिए राजनीतिक आत्महत्या जैसा साबित हो सकता है.”
कांग्रेस के अनुसार, इन नौ विधायकों को दल-बदल विरोधी कानून के तहत इसलिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा, क्योंकि पार्टी में से टूटकर एक नई पार्टी बनाने के लिए कम से कम दो तिहाई विधायकों की जरूरत होती है.
प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व ने विजय बहुगुणा के बेटे साकेत बहुगुणा और पार्टी के संयुक्त सचिव अनिल गुप्ता को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया
इसी दौरान, प्रदेश के कांग्रेस नेतृत्व ने विजय बहुगुणा के बेटे साकेत बहुगुणा और पार्टी के संयुक्त सचिव अनिल गुप्ता के खिलाफ पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में व्हिप जारी की और उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया.
उत्तराखंड में आश्रित कांग्रेस सरकार को लेकर राजनीतिक खींचतान चरम पर पहुंच चुकी है और इसकी आंच दिल्ली तक महसूस की जा रही है. इस बगावत की शुरुआत उस समय हुई थी जब पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने सात और विधायकों के साथ मिलकर मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उन्होंने 18 मार्च को विधानसभा में मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग कर हंगामा खड़ा कर दिया.
भाजपा ने इन नौ विधायकों के सहारे बहुमत का दावा किया और सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. अगले दिन एक चार्टर प्लेन से वे दिल्ली पहुंच गए और तब से देश की राजधानी में ही डेरा डाले हुए हैं.
सोमवार को भाजपा के प्रतिनिधमंडल ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की. उन्होंने राष्ट्रपति से उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार को भंग करने की मांग की, जो उनके अनुसार अल्पमत में हैं.