बनारस डूब रहा है और सरकार कहीं नहीं है

- पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तीन लाख से ज्यादा आबादी बाढ़ से प्रभावित है.
- 1978 के बाद आई इस भीषण बाढ़ ने बनारस की आत्मा को झकझोर कर रख दिया है.
- बनारस की लगभग 150 साल पुरानी सीवर व्यवस्था ही बनारस के लिए काल बन गई है.
- शहर में एक मोहल्ले को दूसरे मोहल्लों से जोड़ने के लिए 100 से ज्यादा नावें चलाई जा रही हैं.
- जिलाधिकारी ने सभी स्कूल-कॉलेजों को 25 अगस्त तक बंद रहने के आदेश दिए हैं.
- गंगा के साथ ही वरुणा नदी की बाढ़ से 500 से ज्यादा मकान जलमग्न हो गए हैं.
बाढ़ से पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तीन लाख से ज्यादा आबादी प्रभावित है. गंगा तेजी से मध्य बनारस की ओर दौड़ रही है. अकेले बनारस शहर में तीन हजार से ज्यादा मकान पूरी तरह से जलमग्न हो चुके हैं.
सड़कों पर जाम है. हालत इस कदर बिगड़ चुके हैं कि तकरीबन 80 हजार की आबादी बाढ़ की वजह से शहर के दूसरे हिस्सों में पलायन कर चुकी है. करीब तीन लाख लोग बाढ़ की विनाशलीला से दिन-रात जूझ रहे हैं, लेकिन अफसोस इन सबके बीच सरकार कहीं नहीं है.
1978 के बाद आई इस भीषण बाढ़ ने पीएम मोदी की संसदीय सीट की आत्मा को झकझोर कर रख दिया है. हालात इस हद तक खराब हैं कि आबादी और अतिक्रमण के बोझ तले बनारस कराह रहा है. हैरानी की बात यह है कि बाढ़ पीड़ितों के लिए जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं कहीं नजर नहीं आ रही हैं.
पूरी तरह से डूब चुके तुलसी घाट की सबसे ऊपर की सीढ़ी पर बैठे शिव कहते हैं कि माई गंगा इस बार बनारस से नाराज हैं, न जाने क्या कसूर हुआ है?

बेहाल बनारस, बेखबर सरकार
शिव और आम बनारसियों के यूं कहने के पीछे वाजिब वजहें भी हैं. दरअसल बाढ़ में डूब रहे बनारस का यह हाल प्रकृति की निर्दयता के साथ-साथ सत्ता की नाकामी का नतीजा है. न सिर्फ राज्य सरकार बल्कि केंद्र सरकार ने इस शहर को पहले भी भगवान भरोसे छोड़ रखा था और आज जब शहर गंगा के रौद्र रूप के सामने कराह रहा है तो भी इसे भगवान भरोसे छोड़ दिया है.
अस्सी घाट पर पप्पू की दुकान पर बैठे पीके त्रिपाठी कहते हैं बनारस शहर का पूरा सीवर गंगा में जाता रहा है और अब जब गंगा बढ़ रही है तो पूरा सीवर शहर में वापस आ रहा है, यह तो होना ही था.
त्रिपाठी जी की बातों के पीछे छिपे तर्क पूरी तरह से वैज्ञानिक हैं. बनारस शहर की लगभग 150 साल पुरानी सीवर व्यवस्था ही बनारस के लिए काल बन गई है, रही-सही कसर शहर गंगा से जुड़े नालों पर हुए ताबड़तोड़ अतिक्रमण ने पूरी कर दी है. यह खबर लिखे जाने तक गंगा शहर में एक सेंटीमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बढ़ रही है.

नाकाफी इंतजाम, नदारद स्वास्थ्य सेवाएं
बनारस जिले में जिलाधिकारी के आदेश पर सभी स्कूल-कॉलेजों को 25 अगस्त तक बंद रहने के आदेश दिए गए हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मुसीबत उन लाखों लोगों की है जो रोज नदी पार करके रोजी-रोटी की तलाश में बनारस आते हैं.
शहर में एक मोहल्ले को दूसरे मोहल्लों से जोड़ने के लिए 100 से ज्यादा नावें चलाई जा रही हैं, लेकिन यह भी नाकाफी साबित हो रही है. एक निजी कंपनी में काम करने वाले अखिलेश बताते हैं कि "मालिक नहीं मानता, वो हमारे पैसे काट लेगा, हम कैसे गंगा पार करें, समझ में नहीं आता."
एक बड़ी समस्या स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी है. बीएचयू स्थित सर सुंदर लाल चिकित्सालय और शिव प्रसाद गुप्त अस्पताल में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से आने वाले मरीजों की तादाद अचानक बढ़ी है, लेकिन अब तक आपातकालीन परिस्थितियों के लिए दोनों ही अस्पताल तैयार नहीं हैं.
यह साफ नजर आ रहा है कि पानी उतरने के बाद शहर में संक्रामक रोगों के पनपने की संभावना रहेगी, क्योंकि सीवर का पानी समूचे शहर की सड़कों पर बह रहा है.

गंगा-वरुणा दोनों का कहर
बनारस में बाढ़ की वजह केवल गंगा नहीं वरुणा भी है. वरुणा नदी की बाढ़ से 500 से ज्यादा मकान जलमग्न हो गए. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बनारस में वरुण कॉरिडोर के निर्माण में विशेष रुचि ले रहे थे.
दरअसल वरुणा के तट का पूरा इलाका ही भू माफियाओं का बड़ा केंद्र रहा है. यहां पर कॉरिडोर का निर्माण शुरू होने से पहले और बाद में भी नदी के प्रवाह को रोककर जिस तरह से अचानक बहुमंजिली इमारतों की कतार उग आई उसका नतीजा कुछ न कुछ तो होना ही था.
बाढ़ प्रभावित कुछ ही क्षेत्रों में अभी खाने के पैकेट बांटे जा रहे हैं. शहर के कुछ इलाकों में बासी पैकेट बांटे जाने की सूचना है. बाढ़ की इस भयावह स्थिति में आम बनारसी एक-दूसरे का हाथ थामे खड़े हैं. बनारस को और ज्यादा मजबूत हाथों की जरूरत है. अगर बनारस की जुबान होती तो वो ज़रूर कहता,"मोदी जी, बनारस को बचा लीजिए."
First published: 23 August 2016, 4:23 IST