बांग्लादेशी 'आतंकी' भारत के बोडो इलाके में क्या कर रहे थे?

असम पुलिस ने शुक्रवार को दावा किया कि उसने आतंकी समूह जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) के सात सदस्यों को गिरफ्तार किया है जो कथित तौर पर बोडो प्रशासनिक क्षेत्र में सक्रिय थे. पुलिस ने आरोप लगाया कि इनकी योजना असम में दूसरे उग्रवादी समूहों द्वारा मुसलमानों पर किए गए हमले का 'बदला' लेने की थी.
चिरांग जिले से गिरफ्तार किए गए लोगों के नाम हैं जैनल आब्दीन(32), रज्ज़ाक अली(21), सुलेमान अली(28), दिलदार अली(23), मो. नूरुल इस्लाम(27), रफ़ीकुल इस्लाम(22) और उखीलुद्दीन(33).
इससे पहले 17 अप्रैल को पुलिस ने दावा किया था कि उसने जेएमबी के चार कथित सदस्यों को गिरफ्तार किया है जिनके नाम हैं अबू बकर सिद्दीकी, जहानुर आलम शेख, समाल अली मंडल और अजीज़ुल हक. पुलिस ने अब तक जेएमबी से ताल्लुक रखने वाले कम से कम 29 लोगों को गिरफ्तार किया है जिनमें कई फिल़हाल ज़मानत पर बाहर हैं.
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ताज़ा गिरफ्तारियों के संबंध में चिरांग के पुलिस अधीक्षक शंकरब्रत राय मेधी ने कहा, ''हमें इन लोगों की सितंबर 2015 से ही तलाश थी.''
बदले की योजना
पुलिस के मुताबिक गिरफ्तार किए गए लोग जेएमबी के एक मॉड्यूल का हिस्सा हैं जिनकी योजना दौखानगर गांव के एक शिविर में स्थानीय मुस्लिमों को प्रशिक्षण देने की थी जिसके बाद प्रतिबंधित उग्रवादी समूह एनडीएफबी समेत स्थानीय बोडो समुदाय पर हमले किए जाने थे.
पुलिस ने दौखानगर के शिविर के गठन के हफ्ते भर बाद ही उसे नेस्तनाबूत कर दिया था, यह जानकारी देते हुए मेधी कहते हैं, ''उस वक्त गिरफ्तार किया गया आशिक भाई नाम का एक शख्स इसका मास्टरमाइंड था. एक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की निशानदेही पर पुलिस ने एक गड्ढे से क्लाशनिकोव की तर्ज पर बनाई गई आठ देसी बंदूकें, दो इंसास राइफलें और फौजी सामान बरामद किए थे.''
आशिक भाई दिसंबर 2014 में बारपेटा से बर्दवान धमाकों के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए जेएमबी के एक संदिग्ध सदस्य शहानुर आलम का करीबी था. एक पुलिस अधिकारी ने बताया, ''हमारे रिकॉर्ड दिखाते हैं कि आशिक भाई आलम के साथ लगातार संपर्क में था.''
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पुलिस का दावा है कि अबू बकर सिद्दीकी उर्फ़ मुफ्ती शाह इस मॉड्यूल में दूसरे नंबर पर था. इसने देवबंद से तालीम हासिल की थी और सोनितपुर के एक मदरसे में 30,000 मासिक वेतन पर पढ़ाता था. इसके बाद वह बीटीएडी में चला गया. यहां उसकी भर्ती आशिक भाई ने ही की थी.
एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक, ''वह स्थानीय लोगों को मज़हबी कट्टरता की शिक्षा देता था और उन्हें दीक्षित करता था. उसने स्वीकार किया है कि आलम से उसकी एकाध बार की मुलाकात है जिसमें कुरान और हदीस पर उसकी चर्चा हुई थी.''
अजीज़ल हक(18) कॉलेज का छात्र है जिसे मुफ्ती शाह की मदद के कथित आरोप में पकड़ा गया है. अधिकारियों के मुताबिक उसका चाचा पुलिस की गिरफ्त से भाग निकला. अधिकारी के मुताबिक बाकी लोग ''केवल इनके प्यादे हो सकते हैं''. अधिकारी ने बताया कि पुलिस ने इनके पास से ग्रेनेड और ''कुछ आपत्तिजनक वीडियो'' बरामद किए हैं.
चिंता का विषय
ये गिरफ्तारियां चौंकाने वाली हैं. कुछ हफ्ते पहले ही कोकराझार जिले के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने इस संवाददाता को बताया था कि ''इस इलाके में किसी भी मुस्लिम समूह द्वारा किसी बड़ी कार्रवाई का कोई मामला सामने नहीं आया है.''
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उन्होंने कहा था, ''यह बात अलग है कि लोगों का आसानी से दोहन किया जा सकता है क्योंकि उनके कट्टर बनने के तमाम हालात मौजूद हैं.'' उनके मुताबिक इस क्षेत्र के बांग्लाभाषी मुस्लिम निवासी मोटे तौर पर गरीब और अशिक्षित हैं और वे लंबे समय से बोडो हिंसा का शिकार होते रहे हैं, साथ ही उग्रवादी समूह एनडीएफबी का संगबजीत धड़ा भी इन्हें अपना निशाना बनाता रहा है.
ये इलाके मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा के सिलसिलेवार गवाह रहे हैं, खासकर कोकराझार में 2012 में हुआ दंगा जिसमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे और 2014 में बक्सा की घटना जहां 38 मुस्लिमों को मार दिया गया था. पिछले डेढ़ साल में हालांकि हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई है क्योंकि फौज, अर्धसैन्यबल और पुलिस लगातार एनडीएफबी के पीछे पड़ी हुई है.
कोकराझार में तैनात रह चुके एक अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने इस संवाददाता को बताया था कि कैसे कुछ मुस्लिम युवाओं ने 2012 के दंगे का हिसाब बराबर करने के लिए एक ढीलाढाला समूह बनाया था.
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सनद रहे कि उन दंगों में चार लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए थे. इन लोगों की हालांकि पैसे और हथियारों तक पहुंच नहीं थी और वे देसी बंदूकों व फिरौती की रकम पर ही आश्रित थे. बाद में इन्हें पुलिस ने पकड़ लिया था.
हालिया ऑपरेशन में शामिल रहे एक पुलिस अधिकारी का कहना है, ''अच्छी बात यह है कि किसी हिंसक घटना के घटने से पहले ही हम इस मॉड्यूल को तोड़ सके.''