शिवपाल के आईएएस दामाद पर बरसी पीएम नरेंद्र मोदी की कृपा

28 अक्टूबर 2015 को 'अपाइंटमेंट कमिटी ऑफ द कैबिनेट' (एसीसी) ने तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी अजय यादव के इंटर-कैडर डेप्युटेशन को मंजूरी दी थी. यादव को निजी कारणों के आधार पर तीन साल के लिए उनके मूल कैडर से बाहर प्रतिनिुयक्ति (डेप्युटेशन) दी गई. इसे 'विशेष मामला' मानते हुए उनके लिए मौजूदा कानूनों में रियायत दी गई. गौर करने वाली बात है कि एसीसी के चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री होते हैं.
अजय यादव को मिली प्रतिनियुक्ति इसलिए भी ज्यादा चौंकाने वाली है क्योंकि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) अजय यादव का उत्तर प्रदेश में तीन साल की प्रतिनियुक्ति पर भेजने का अनुरोध दो बार ठुकरा चुका था. नौकरशाहों की नियुक्ति एवं प्रतिनियुक्ति इत्यादि डीओपीटी के अंतर्गत आते हैं.
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प्रतिनियुक्ति के बारे में डीओपीटी की नीतियां स्पष्ट नहीं हैं. इसके नियमानुसार, "इंटर कैडर डेप्युटेशन की सुविधा उन्हीं अफसरों के लिए उपलब्ध है जो अपने कैडर में नौ साल की सेवा पूरी कर चुके हों." लेकिन विशेष परिस्थितियों में नियमों में रियायत दी जा सकती है.
2010 बैच के आईएएस अजय यादव ने नौ साल की सेवा पूरी करने से पहले ही अपने गृह प्रदेश यूपी में प्रतिनियुक्ति चाहते थे, जो आखिरकार उन्हें मिल गई.
आखिर ये अजय हैं कौन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके लिए डीओपीटी की अनुशंसा को पलट क्यों दिया?
कौन हैं अजय यादव?
प्रतिनियुक्ति से पहले अजय यादव तमिलनाडु के कोयंबटूर में कमिश्नर, कमर्शियल टैक्स के पद पर तैनात थे. उनकी शादी समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई और यूपी सरकार में लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव की छोटी बेटी से हुई है.
शिवपाल ने खुद पत्र लिखकर पीएम नरेंद्र मोदी से अजय यादव को यूपी में प्रतिनियुक्त करने का अनुरोध किया था.
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प्रधानमंत्री कार्यालय के निदेशक वी शेषाद्री ने डीओपीटी को 26 अगस्त, 2015 को भेजे कम्यूनिक (प्रपत्र) में शिवपाल के पत्र का हवाला दिया है. उन्होंने इस प्रपत्र में लिखा, "इस संबंध में जरूरी कार्रवाई के लिए यूपी के मंत्री शिवपाल यादव का पीएम को लिखा पत्र संलग्न किया जा रहा है."
अजय यादव ने अपने ससुर से एक दिन पहले 25 अगस्त, 2015 को डीओपीटी के सचिव को निजी कारणों के आधार पर प्रतिनियुक्ति की मांग की थी. इन दोनों पत्रों के बाद भारत सरकार अंडर सेक्रेटरी पंकज गंगवार ने डीओपीटी के निदेशक को अजय यादव की रिपोर्ट एसीसी को भेजने के लिए आधिकारिक पत्र भेजा.
अजय यादव की अर्जी
अजय यादव ने पहली बार 7 नवंबर, 2014 को डीओपीटी के सचिव को इंटर कैडर प्रतिनियुक्ति के लिए पत्र लिखा था. उन्होंने पत्र की एक प्रति यूपी के मुख्य सचिव को भी भेजी. क्योंकि प्रतिनियुक्ति के लिए जिस कैडर में स्थानांतरण हो रहा है उसकी सहमति की जरूरत होती है. यूपी में यादव परिवार के राजनीतिक रसूख को देखते हुए उन्हें तत्काल 1 दिसंबर 2014 इसकी अनुमति मिल जाने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ.
14 जनवरी, 2015 को डीओपीटी के सचिव संजय कोठारी की अध्यक्षता में प्रतिनियुक्ति के सात मामलों पर विचार करने के लिए बैठक हुई. इन सात मामलों में अजय यादव का दूसरा नंबर था.
अजय यादव ने तमिलनाडु से यूपी में प्रतिनियुक्ति इस आधार पर मांगी थी कि उनकी पत्नी को लखनऊ के एक अस्पताल में बच्ची हुई है. उन्होंने बताया कि गंभीर स्वास्थ्य कारणों से बच्ची को नई दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल ले जाना पड़ा. उन्होंने पत्र में ये भी लिखा था कि उनके पिता का 15 सितंबर 2014 को देहांत हो गया था जिसकी वजह से अपनी बच्ची की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं पर है और उनकी मां उनके सहारनपुर स्थित घर पर अकेली रहती हैं.
डीओपीटी की कमिटी ने उनकी अर्जी यह कहकर खारिज कर दी कि अजय यादव ने प्रतिनियुक्ति के लिए जरूरी नौ साल की सेवा नहीं पूरी की है और उन्होंने इसके लिए जो आधार दिए हैं उनके आधार पर उनकी अर्जी स्वीकार नहीं की जा सकती.
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उन्होंने दोबारा 4 जून, 2015 को ऐसी ही अर्जी दी, जो खारिज हो गई. बाद में उन्होंने अपने ससुर के पत्र से एक दिन पहले तीसरी बार प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन किया.
शिवपाल के पीएम को लिखे पत्र के बाद स्थिति बदल गई. अजय यादव को न केवल प्रतिनियुक्ति की अनुमति मिल गई बल्कि उनकी नियुक्ति उनकी ससुराल लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर बाराबंकी के डीएम के तौर पर कर दी गई.
ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि क्या पीएम मोदी ने सपा के सहयोग की आकांक्षा के चलते शिवपाल के दामाद को यह विशेष छूट दिलवायी है? संसद के मौजूदा मानसून सत्र में इस सवाल से पर्दा उठ सकता है.
First published: 19 July 2016, 7:55 IST