'हुर्रियत के मुखिया का सर लाल चौक पर टांग दूंगा अगर कश्मीर के संघर्ष को सियासी कहा'

कश्मीर में चल रही उथल-पुथल के बीच हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर जाकिर मूसा के इस बयान का काफी महत्व है, जिसमें उन्होंने हुर्रियत नेताओं को उनका सिर कलम करने की धमकी दी है. मूसा ने कहा कि अगर हुर्रियत के नेता अब भी कश्मीर की आजादी के आंदोलन को इस्लामिक के बजाय राजनीतिक लड़ाई बताते हैं, तो उनका सर काट देंगे.
शुक्रवार दोपहर को जारी पांच मिनट के वीडियो में, जो कि अब वायरल हो चुका है, मूसा ने कहा है कि उनके संघर्ष का एकमात्र उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ इस्लाम का गौरव और शरीया का क्रियान्वयन है. उसने चेतावनी दी है कि उग्रवादी इस
लक्ष्य से विचलन कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे.
मूसा ने इस वीडिया में कहा है, "मैं इन लोगों (हुर्रियत नेताओं) को चेतावनी देता हूं कि अगर वे हमारे मार्ग में कांटा बनने की कोशिश करते हैं, तो पहला काम हम जो करेंगे वो यह कि उनको सूली पर टांग देंगे. हम काफिरों से संघर्ष करना छोड़कर सबसे पहले उन्हें टांग देंगे. हम उन्हें चेतावनी देते हैं कि वे अपनी राजनीति खेलना बंद करें."
वीडियो में मूसा ने कहा, "हुर्रियत के लोग हमारे नेता नहीं हो सकते. अगर उन्हें अपनी राजनीति करनी है तो वे हमारे मार्ग में और शरीया के क्रियान्वयन में कांटा बनना बंद करें. अन्यथा हम आपका सिर कलम कर देंगे और आपको लाल चौक पर टांग देंगे."
इस धमकी का महत्व
कश्मीर की आजादी की लड़ाई के 30 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि सबसे बड़े स्वदेशी उग्रवादी संगठन के टॉप कमांडर ने हुर्रियत के खिलाफ ही बगावत कर दी है और उनको सीधे-सीधे एक वैचारिक टकराव के मुद्दे पर ही जान से मारने की धमकी दी है.
कश्मीर संघर्ष की आत्मा को बदलने वाली एक शाही जंग आकार लेती दिख रही है. क्या इसे सिर्फ कश्मीरियों के राजनीतिक अधिकारों के लिए चलने वाला आंदोलन बना रहना चाहिए, जैसा कि हुर्रियत चाहती है अथवा इसे खलीफा की स्थापना के लिए एक व्यापक इस्लामिक आंदोलन का हिस्सा बन जाना चाहिए.
इस वीडियो में चेहरा ढके हुए यह कमांडर जनसमूह को संबोधित करते हुए कहता है, "हमारी लड़ाई किसी संगठन या देश के लिए नहीं है, बल्कि इस्लाम के लिए है. कल हमें इंडिया भी जाना होगा और वहां इस्लामिक प्रणाली को कायम करना होगा. पाकिस्तान में भी कोई इस्लामिक प्रणाली नहीं है, इसलिए हमें वहां भी इस्लामिक प्रणाली कायम करना होगी."
वीडियो में नकाबपोश कमांडर यह भी कहता है कि उग्रवादियों के अंतिम संस्कार के दौरान पाकिस्तानी झंडे नहीं फहराये जाएं और लोगों पर इस बात के लिए दबाव डाला गया है कि वे तालिबान के समर्थन में नारे लगाएं. पाकिस्तान स्थित यूनाइटेड जिहादी काउंसिल, सैयद सलाउद्दीन के नेतृत्व में हिजबुल मुजाहिदीन जिसका एक प्रमुख भाग है, ने तुरंत इस अपील को खारिज कर दिया.
यूजीसी के प्रवक्ता सैयद सदाकत हुसैन ने एक वक्तव्य में कहा, "'पाकिस्तानी राष्ट्र और झंडे का विरोध करके और नसीर की कब्र पर मुजाहिदीन का स्वांग रचकर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का समर्थन करने वाले इस हथियारबंद समूह ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं." प्रवक्ता ने आगे कहा कि ये हथियारबंद लोग उग्रवादियों और लोगों के बीच भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.
हालांकि इसके बाद वायरल हुए वीडियो में मूसा ने शरीया लागू करने का आह्वान किया था, लोगों ने करीमाबाद के नकाबपोश कमांडर और मूसा के बीच में मनमाना संबंध जोड़ लिया.
क्या यह बगावत है?
मूसा ने इस वीडियो में कहा है, "अगर कश्मीर एक राजनीतिक संघर्ष है तो फिर आप क्यों इस लड़ाई में मस्जिदों का इस्तेमाल कर रहे हैं? आप मस्जिद के मंच पर खड़े होकर अपनी राजनीति कर रहे हैं. आप सड़क पर धरना क्यों नहीं देते हैं? अगर यह इस्लामिक संघर्ष नहीं है, तो आप क्यों इस्लाम के मुजाहिदीन को अपने लोग बताते हैं? आप उनके अंतिम संस्कार में क्यों आते हैं? अपनी यह राजनीति बंद करो."
हुर्रियत का वक्तव्य
यह वीडियो हुर्रियत के तीनों नेताओं सैयद अली शाह गिलानी, मीर वायज उमर फारूक और यासीन मलिक के हालिया जारी किए गए संयुक्त वक्तव्य की प्रतिक्रिया में आया है. इस वक्तव्य में हुर्रियत नेताओं ने उग्रवादियों के एक समूह के इस्लामिक शोर को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया था कि कश्मीर बुनियादी रूप से एक राजनीतिक आंदोलन था.
इस वक्तव्य में भारतीय एजेंसियों के कथित कश्मीर विरोधी मिथ्या प्रचार पर दोषारोपण किया गया. वक्तव्य में कहा गया था कि "हमारे आंदोलन का आईएसआईएस और अल-कायदा से कोई लेना देना नहीं है और व्यावहारिक रूप से ये समूह राज्य में अपनी मौजूदगी ही नहीं रखते. 'इन समूहों की हमारे आंदोलन में कोई भूमिका नहीं हो सकती."
वक्तव्य में नेताओं ने सरकार पर पाखंडी तत्वों को राज्य में बढ़ावा देने का आरोप लगाया, जिससे कश्मीर संघर्ष के मुद्दे पर दुनिया में भ्रम पैदा किया जा सके.
करीमाबाद का संबोधन
हुर्रियत का वक्तव्य अपने आप में ही अप्रैल में करीमाबाद के हथियारबंद नकाबपोश कमांडर और उग्रवादियों द्वारा जनसमूह को दिए गए एक संबोधन की प्रतिक्रिया में दिया गया था, जिसमें उन्होंने कश्मीरी उग्रवाद के इस्लामिक टर्न के बारे में कोई शक नहीं छोड़ा था.