हैप्पी न्यू ईयर 2017: इस बार देर से शुरू होगा नया साल

यूं तो हर साल 31 दिसंबर की रात 11 बजकर 59 मिनट और 59 सेकेंड खत्म होते ही नया साल चालू हो जाता है. लेकिन इस साल लोगों को हैप्पी न्यू ईयर 2017 की शुभकामनाएं देने के लिए कुछ इंतजार करना होगा. यानी 31 दिसंबर 2016 की रात 11:59:59 के तुरंत बाद 1 जनवरी 2017 नहीं शुरू होगी बल्कि इसमें वक्त लगेगा.
शायद यह सुनकर आप हैरानी में पड़ गए होंगे लेकिन यह हकीकत है. इसकी वजह यह कि इस साल के अंतिम सेकेंड में एक 'लीप सेकेंड' जोड़ा जाएगा जिससे नए साल की शुरुआत एक सेकेंड देरी से होगी.
टाइमकीपर्स के मुताबिक पृथ्वी की धीमी परिक्रमा से हुए वक्त के नुकसान को बराबर करने के लिए एक अतिरिक्त सेकेंड को जोड़ा जाएगा. कई बार एक अतिरिक्त सेकेंड जोड़ना इसलिए बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि पृथ्वी जिस रफ्तार से अपनी धुरी पर घूमती है, उसमें अचानक कोई बदलाव आ जाता है.
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इस साल 27वीं बार यह तय किया गया है कि बीतते साल को खत्म करने में एक अतिरिक्त सेकेंड जोड़ा जाएगा. पेरिस ऑब्जर्वेटरी द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि तमाम पश्चिमी अफ्रीकी देश, ब्रिटेन, आयरलैंड और आइसलैंड जैसे देश जो कोऑर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम का इस्तेमाल करते हैं, वे 2017 के काउंटडाउन में एक अतिरिक्त सेकेंड जोड़ देंगे.
इसके परिणामस्वरूप 2016 का अंतिम मिनट सामान्यता 60 सेकेंड की बजाय 61 सेकेंड का हो जाएगा. वहीं, अन्य देशों के लिए उनके यूटीसी से संबंधित टाइम जोन के मुताबिक निर्धारित वक्त को तय किया जाएगा.
बयान के मुताबिक, "यह अतिरिक्त सेकेंड या लीप सेकेंड बेहद स्थिर यूटीसी के साथ एस्ट्रोनॉमिकल टाइम को तय करने की संभावना को पुख्ता करेगा. यह टाइम पृथ्वी की परिक्रमा से निर्धारित होता है लेकिन रफ्तार की वजह से ये अनियमित हो चुका है. यूटीसी काफी स्थिर है और 1967 से इसे एटॉमिक क्लॉक्स के साथ निर्धारित किया जाता है."
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बताया गया है कि यह समायोजन बहुत जरूरी है क्योंकि पृथ्वी की परिक्रमा नियमित नहीं है. कभी-कभी यह तेज हो जाती है और कभी धीमे, लेकिन पूर्णरूप से यह धीमी होती जा रही है. इसके पीछे कई वजह हैं जिनमें चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से पृथ्वी की रफ्तार धीमी करने की ताकत भी शामिल है जिससे समुद्रों में ज्वार-भाटा आता है.
यह पृथ्वी पर एस्ट्रोनॉमिकल टाइम तय करता है. वहीं, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में करीब 400 सुपर एक्यूरेट (अतिरिक्त सटीक) एटॉमिक क्लॉक्स लगी हुईं है, जिनसे पृथ्वी की रफ्तार में अंतर आने पर दोनों के वक्त के बीच सामंजस्य में अंतर आ जाता है.
हालांकि लीप सेकेंड की वजह से कई बार कम्यूनिकेशन नेटवर्क, फाइनेंसियल सिस्टम्स और अन्य सिस्टमों में दिक्कत आ जाती है, क्योंकि यह सभी बिल्कुल सटीक वक्त पर आश्रित होते हैं. ऐसे में कोई गलती न हो जाए इन्हें पहले से ही प्रोग्रामिंग की जरूरत पड़ती है.
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यह अतिरिक्त सेकेंड सामान्यता जून या दिसंबर के अंतिम मिनट में जोड़ा जाता है, जबकि काफी कम मौकों पर इसे मार्च या सितंबर में भी जोड़ा जाता है.
जानिए क्या होगा कंप्यूटरों में
सबसे पहले तो जान लीजिए कि हर व्यक्ति एक ही वक्त में एक ही तरह से लीप सेकेंड को नहीं जोड़ेगा. कुछ सिस्टमों में कंप्यूटर क्लॉक अगला मिनट दिखाने से पहले 60 सेकेंड दिखाएंगी या फिर दो बार 59 सेकेंड दिखाएंगी.
इससे कंप्यूटर एक लीप सेकेंड को यू देखेगा जैसे वक्त आगे की बजाय पीछे भाग रहा हो. इससे सिस्टम एरर हो जाती है और सीपीयू ओवरलोड हो जाता है.
2012 में भी इसी तरह टाइम चेंज किए जाने पर कई सिस्टम हैंग हुए थे जिसका असर तमाम सर्वरों पर पड़ा था.
गूगल ने खुद का सिस्टम बनाया इस लीप सेकेंड के लिए
जब कंप्यूटर सिस्टम 61वें सेकेंड से तारतम्य बिठाने में असमर्थ हैं तो गूगल ने खुद से अपना एक 'लॉन्ग सेकेंड' यानी ज्यादा वक्त वाला सेकेंड बना लिया है जिससे मशीनों को यह लीप सेकेंड जोड़ने में आसानी रहेगी.
स्मीयर्ड टाइम कहे जाने वाले इस वक्त को जोड़ने के लिए गूगल 20 घंटों का वक्त लेगा. गूगल इन 20 घंटों के 1200 मिनट में आने वाले 72,000 सेकेंडों को 0.0014 फीसदी बढ़ा देगा. यह नया वक्त गूगल नेटवर्क टाइम प्रोटोकॉल में अप्लाई कर दिया जाएगा, जिससे कंपनी का सर्वर इस्तेमाल करने वाली सभी मशीनें इस अतिरिक्त सेकेंड से तालमेल बिठा पाएंगी.
First published: 30 December 2016, 16:11 IST