पाकिस्तान में किससे करें बात?

भारत, पाकिस्तान से संबंध सुधारने की खूब कोशिश करता है. जवाब में पाकिस्तान की सरकार भी खूब जोश दिखाती है. लेकिन जैसे ही मामला निर्णय की टेबल पर आता है, बात बिगड़ जाती है. यह सिलसिला आज से नहीं पिछले करीब 68 सालों से चल रहा है. भारत की मुश्किल यह है कि वह पाकिस्तान की सरकार से बात करता है और वहां की सरकार की मुश्किल यह है कि, बात करने के सिवाय उसके अख्तियार में कुछ नहीं है.
दरअसल पाकिस्तान में सब कुछ सेना के नियंत्रण में है. सीमा भी और सरकार भी. विदेश नीति भी और आंतरिक सुरक्षा नीति भी. पाकिस्तान के बजट का बड़ा हिस्सा भी उसी पर खर्च होता है और उसे मिलने वाली विदेशी सहायता का बड़ा हिस्सा भी उसी पर खर्च होता है.
फिर आईएसआई क्या करेगी?
भारत और पाकिस्तान की निर्वाचित सरकारें यदि आपसी समस्याओं का समाधान बातचीत से कर लेती हैं तो फिर सेना की क्या कद्र रह जाएगी? उसे कौन पूछेगा? फिर आईएसआई क्या करेगी? इसीलिए उनकी पूरी कोशिश होती है, सुलह के इन रास्तों को बंद करने की ताकि वे कमजोर नहीं हों.
पाकिस्तान का इतिहास इस बात का गवाह है कि वहां भारत से सुलह-सफाई की बात करने वाली सरकार चल ही नहीं पाई. उसका तख्ता ही पलट गया. निर्वाचित सरकारों की तो बात ही अलग है यदि जनरल जिया उल हक या परवेज मुशर्रफ जैसे फौजी जनरलों ने भी अगर ऐसी कोशिशें की तो उन्हें नाकामी ही मिली.
हक तो हवाई हादसे में मारे गए और मुशर्रफ को कुर्सी छोड़नी पड़ी. हाथ तो सेना का ही मजबूत रहा. 68 साल के इतिहास में वहां चार तो जनरल (जनरल अय्यूब खां, याह्या खां, जिया उल हक और परवेज मुशर्रफ) ही राष्ट्रपति बन गए.
भुट्टो का अन्त सारी दुनिया ने देखा
तीन बार सत्ता तो बदली पर राजी-खुशी. जुल्फिकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक रहे लेकिन भुट्टो का अन्त सारी दुनिया ने देखा. उनका अंत फांसी के फंदे पर हुआ. उनकी लोकप्रियता आज भी वहां कम नहीं बताई जाती. तभी तो उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनी. लेकिन उनका अंत भी गोलियों से ही हुआ. आज तक पता नहीं चला किसने मारा?
कहने का मतलब वहां सत्ता किसी के भी हाथों में दिखे चलती सेना और आईएसआई की ही है. आज की स्थिति में भी यही माना जा रहा है कि, भले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ हों लेकिन असल सत्ता तो सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ के पास है. प्रधानमंत्री शरीफ यह कह भी नहीं सकते कि, उनकी नहीं चलती लेकिन अपने मन का कुछ कर भी नहीं सकते. उनके कन्ट्रोल में जैसे कुछ है ही नहीं.
किसी में हिम्मत नहीं कि हाफिज सईद को चुप कर सके
ताजा उदाहरण कश्मीर का है. हमेशा बातचीत की बात करने वाले शरीफ इस मुद्दे पर एक साथ आक्रामक हो गए. उन्हीं के जैसा रुख उनके विदेश सलाहकार सरताज अजीज ने अपना लिया. और तो और वहां के राष्ट्रपति हुसैन तक वही भाषा बोल रहे हैं जो हाफिज सईद की है. किसी में हिम्मत नहीं कि सईद को चुप कर सके.
ऐसे में बातचीत किससे और कैसे हो? भारत को यही सवाल अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के सामने उठाना चाहिए. गृहमंत्री राजनाथ सिंह की पाक यात्रा इस सवाल को उठाने का सही मौका है. जब सारे सार्क देशों के गृहमंत्री वहां होंगे, अपने अन्दरूनी हालात की चर्चा करेंगे तब हम बता तो सकते ही हैं कि, कश्मीर में क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है? हम कितनी बातें कर रहे हैं? कोई समाधान नहीं निकल रहा और क्यों नहीं निकल रहा? राह भले यहां भी नहीं निकले लेकिन कम से कम पाकिस्तान दुनिया के सामने एक्सपोज तो होगा?
First published: 1 August 2016, 12:40 IST