राजस्थान: कैसे वसुंधरा की जिद्द के सामने संघ और शाह की एक भी न चल सकी ?

शनिवार को राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष के रूप में 74 वर्षीय मदन लाल सैनी की नियुक्ति ने लगभग तीन महीने से चल रही अटकलों को ख़त्म कर दिया है. माना जा रहा है कि इस आगामी चुनावी राज्य में अध्यक्ष चुनने में हुई देरी का कारण भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और राजस्थान के मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच चल रहा झगड़ा था.
राज्थान में बीजेपी अध्यक्ष पद अप्रैल के बाद से खाली था क्योंकि बीजेपी नेतृत्व ने राजे के वफादार अशोक परनामी को राज्य प्रमुख से इस्तीफा देने के लिए कहा था. पार्टी को फरवरी में उनकी अगुवाई में तीन महत्वपूर्ण उप-चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था. परनामी का इस्तीफा राजे शिविर के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था. बीजेपी 74 दिनों के तक राज्य प्रमुख के बिना चली गई क्योंकि शाह और राजे बीच उम्मीदवार को लेकर सहमति नहीं बन पा रही थी.
परनामी के इस्तीफे के कुछ हफ्तों बाद राजपूत समुदाय के जोधपुर सांसद और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को पद के लिए सबसे आगे माना जा रहा था. शेखावत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने समर्थन दिया था. ऐसा माना जा रहा था कि शेखावत चुनकर शाह राजपूत समुदाय को मनाने मनाने में सफल होंगे. क्योंकि इस साल की शुरुआत में पद्मावत फिल्म विवाद को लेकर राजे सरकार के प्रबंधन से समुदाय नाराज था. वे एक स्थानीय राजपूत डॉन आनंदपाल सिंह के खिलाफ पुलिस कार्रवाई से भी नाराज थे, जो पिछले साल कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे गए थे.
शेखावत को शाह-आरएसएस समर्थन के बावजूद पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि राजे ने उनकी नियुक्ति का जोरदार विरोध किया था. राजे शिविर का कहना था कि राज्य अध्यक्ष न तो राजपूत और न ही जाट होना चाहिए. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल के अंत में शाह-राजे के बीच मतभेद हुए थे. बीजेपी नेतृत्व ने फैसला लेने से परहेज किया क्योंकि वह कर्नाटक चुनावों में व्यस्त था.राज्य और केंद्रीय नेताओं के बीच कई बैठकें होने के बावजूद राजस्थान में बीजेपी इकाई लगभग तीन महीने अपना अध्यक्ष नहीं चुन सकी.
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First published: 2 July 2018, 17:43 IST