कुंभ मेला 2019: जानिए अखाड़ों के नियम और कानून, जहां आज भी चलती है सालों पुरानी परंपरा

दुनियाभर में कुंभ अपनी खास पहचान रखता है. कुंभ को भारत की पहचान माना जाता है. हर 12 और 6 साल बाद लगने वाले कुंभ में दुनियाभर से करोड़ों श्रृद्धालु पहुंचते हैं. देशी ही नहीं विदेशी सैलानी भी कुंभ में पहुंचकर भारत की संस्कृति को समझने की कोशिश करते हैं. कुंभ के दौरान आपको हर जगह आश्चर्यचकित कर देने वाले नजारे दिखाई देंगे.
मां गंगा की गोद में सजे कुंभ में धर्म के ऐसे तमाम रूप दिखाई देंगे जिन्हें आपने आजतक नहीं देखा होगा. जिनमें शामिल है नागा सेना. नागाओं के बारे में तो आप जानते होंगे लेकिन आपको शायद ही इस बारे में पता हो कि अखाड़ों का भी अपना इंटेलीजेंस होता है. हर अखाड़े का अपना प्रोटोकॉल होता है. इनके अपने सिक्योरिटी ऑफिसर होते हैं और इनके पास कोड वर्ड वाली व्यवस्था होती है.
यहां रात 9 बजे पहरा की पुकार दी जाती है और इसकी जिम्मेदारी कोठारी की होती है. डेढ़ महीने के लिए कुंभ में लगाए गए अखाड़े के शिविर की सुरक्षा के लिए आज भी सदियों पुरानी कुंभ सुरक्षा की पद्धति का इस्तेमाल होता है. पारंपरिक सुरक्षा व्यवस्था का सहारा लिया जाता है, जो सदियों से कुंभ की परंपरा का हिस्सा रही है.
रात 9 बजे शुरू हुआ पहरा दो चरणों में होता है. पहला पहरा रात 9 बजे से लेकर साढ़े 12 बजे तक और साढ़े 12 बजे रात से सुबह 4 बजे तक चलता है. बड़ा उदासीन अखाड़ा के श्रीमहंत दिव्यामंबर महाराज बताते हैं कि पहरेदारी की इस परंपरा में पहरेदारों की चूक माफ नहीं है. अगर उनसे गलती हुई और पहरा देते वक्त वो सो गए या उनका भाला जमीन पर गिरा तब उनके लिए बैठक होती है. श्रीमहंतों के सामने उन्हें पेश किया जाता है और उन्हें सजा की जगह सेवा करने वाली किसी प्रक्रिया में भेजा जाता है. सेवा के जरिए उन्हें सबक सिखाने की कोशिश की जाती है.

बता दें कि तमाम आधुनिक सुविधाओं के बावजूद आज भी कुंभ की सुरक्षा पुराने जमाने के मुताबिक ही होती है. यानि कुंभ के दौरान अखाड़ों की सुरक्षा उसी पद्धति से हो रही है, जिस पद्धति से सदियों पहले होती थी. बता दें कि कुंभ में इस सुरक्षा प्रणाली को इसलिए लाया गया था, क्योंकि पहले के जमाने में अंधेरा होने के बाद डकैतों का खतरा होता था. सबकुछ बदलने के बाद भी कुंभ का स्वरूप आजतक नहीं बदला.
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First published: 17 January 2019, 13:11 IST