कहानियों में दर्ज रहेगा कि एक धोनी जैसा कप्तान भी हुआ था

पहली नजर में ऐसा लग सकता है, लेकिन महेंद्र सिंह धोनी का सीमित ओवर की कप्तानी छोड़ने का फैसला हैरान करने वाला नहीं माना जाना चाहिए. धोनी से इसकी घोषणा ऐसे वक्त में की है जब भारत इंग्लैंड के खिलाफ सीमित ओवरों वाले मैच की श्रृंखला खेलने जा ही रहा है, लेकिन धोनी ने हमें इसके संकेत तभी दे दिए थे जब उन्होंने आस्ट्रेलिया में सीरीज के बीच में टेस्ट की कप्तानी विराट कोहली को सौंप दी थी. इस तरह धोनी ने हमें तैयारी के लिए दरअसल दो साल का वक्त दिया!
धोनी ने जब टेस्ट मैचों की कप्तानी छोड़ी थी तभी यह साफ हो गया था कि धोनी उन लोगों में नहीं हैं जो किसी पद से चिपके रहना चाहते हैं. विशेषकर तब जब उन्हें यह एहसास हो जाए कि उनकी एक्सपायरी डेट हर दिन पीछे छूटती जा रही है.
हैरान होने की यह भी कोई वजह नहीं होना चाहिए कि धोनी का कप्तानी छोड़ने का फैसला बुधवार को देर शाम ऐसे समय में आया जबकि प्राइम टाइम न्यूज बुलेटिन में अंतिम समय में फेरबदल करने पड़े हों या फिर समाचार पत्रों के पेज की सामग्री अचानक से बदलनी पड़ी हो.
धोनी की विरासत: आंकड़े और असर
चूंकि धोनी ने कहा है कि वह सीमित ओवरों के मैचों में खेलने के लिए उपलब्ध बने रहेंगे, इसलिए हमें अभी चर्चा सिर्फ उनकी कप्तानी के रिकॉर्ड की ही करनी चाहिए.
यह तो तय है कि धोनी को ऐसे एक मात्र कप्तान के रूप में याद किया जाएगा जिसकी कप्तानी में भारत ने आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप (2011), आईसीसी वर्ल्ड ट्वेंटी-20 (2007) और आईसीसी चैंपियन ट्रॉफी पर कब्जा जमाया. धोनी को इसलिए भी याद किया जाएगा कि उनके नेतृत्व में भारत 110 एक दिवसीय और 41 टी-20 मैच जीते. लेकिन धोनी का आकलन सिर्फ आंकड़ों के आधार पर करना अपर्याप्त होगा.
धोनी को एक ऐसे कप्तान के रूप में याद किया जाएगा जिसने भारतीय क्रिकेट के पिछड़े क्षेत्र से आकर अपनी टीम के साथियों, विरोधियों और फैन्स सभी पर ऐसी छाप छोड़ी है जिसे देर तक याद रखा जाएगा.
दबाव में भी स्थिरचित्त बने रहने की धोनी की काबिलियत झील के शांत पानी की याद दिलाती थी जिस पर इसका कोई असर नहीं होता कि उसके चारों तरफ क्या है. मैदान पर विरोधी टीम के विकेट लेते रहने की चुनौती के बीच अपने सीमित बॉलरों का अंतिम समय तक उचित प्रयोग बेहतर से बेहतर नेतृत्व को दबाव में ला देता है, लेकिन धोनी के चेहरे पर यह सब करते हुए कभी शिकन तक नहीं आई. धोनी इस मामले में हमेशा धैर्य के पर्याय बने रहे.
बात सन 2008 की है जबकि धोनी को कप्तान बने हुए कुछ ही अरसा हुआ था, धोनी ने पिच पर अपने शांत रहने की वजह उजागर की. धोनी ने कहा था कि वह बॉलरों के सामने अपनी भावनाओं के प्रदर्शन में विश्वास नहीं करते, क्योंकि "बॉलर को अपने कप्तान को तनाव में देखने से कोई सहायता नहीं मिलती. पिच पर दबाव तो हमेशा होता है, लेकिन उस मौके पर उसको छिपाना ही महत्वपूर्ण होता है." यही वह फलसफा है जो कि धोनी के चरित्र को परिभाषित करता है.
कठिन फ़ैसले लेने से भागना नहीं
धोनी की एक सबसे बड़ी ताकत रही है बिना किसी पक्षपात के निर्णय लेने की क्षमता. धोनी कभी मैदान पर खेलने वाले 11 खिलाड़ियों के चुनाव में इस बात से डरे नहीं कि उनका फैसला लोगों का पसंद नहीं आएगा. धोनी ने लोकप्रियता की चाहत में फैसले नहीं लिए. धोनी का एक ही लक्ष्य होता था कि टीम के हित में सबसे बेहतर फैसला क्या हो सकता है, वही फैसला लेना.
धोनी कभी अपनी पसंद को जाहिर करने में, उसकी जिम्मेदारी लेने में डरे नहीं. विशेषकर तब जबकि बात नये खिलाड़ियों को टीम में जगह देने की हो और उनको बड़े मौकों के लिए तैयार करने की हो.
निश्चित रूप से ऐसे मौके आए हैं जबकि धोनी की पसंद और न पसंद बहुत साफ थी. विशेषकर आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप 2011 की तैयारी के दौरान, जबकि धोनी सीमित ओवरों की टीम में कुछ खास खिलाड़ियों पर तवज्जो दे रहे थे. लेकिन इस दौरान भी यह साफ था कि धोनी की पसंद उनकी ही पसंद थे. वे किसी खिलाड़ी या अधिकारी को खुश करने के लिए ऐसा नहीं कर रहे थे. वे विभिन्न लोगों से राय जरूर लेते थे लेकिन टीम को चलाने में सिर्फ अपनी समझ पर ही भरोसा करते थे.
जो विचलित हो वह धोनी नहीं
धोनी की एक सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वह हार से नर्वस नहीं होते थे. घबराते नहीं थे. ऐसे मौक़े बहुत कम आए जबकि वह मैच के बाद मीडिया ब्रीफिंग के दौरान बॉलिंग में कमजोरी पर खीजते नजर आए हों, वैसे ही धोनी जीतने पर भी कभी बहुत मुखर नहीं हुए. हार—जीत में उत्तेजित न होना भी धोनी की बड़ी खूबी रही है. अपनी इसी खासियत के चलते क्रिकेट के चाहने वालों और आम आदमी, दोनों में उनको पसंद करने वालों की कमी नहीं रही.
वर्ष 2014-15 के दौरान जब मेलबर्न टेस्ट के बाद धोनी ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास से घोषणा कर दी, तब भी वे आईसीसी वर्ल्ड कप की तैयारी के लिए आस्ट्रेलिया में रुके रहे. अब धोनी ने अपने लिए यह चुनौती स्वीकार की है कि वे सीमित ओवरों के मैच में कैसे अपनी बैटिंग को अधिक से अधिक निखारें जिससे कि वह लंबे समय तक खेल सकें. अभी इस पर दांव लगाने की सोचना भी नहीं चाहिए कि वह कितने लंबे समय तक इस फ्रेम में बने रहते हैं.
सुरेश रैना की बीमारी और चयनकर्ताओं की तरफ से उनकी जगह किसी बाएं हाथ के बल्लेबाज को मौका नहीं देने के अबूझ निर्णय के बीच धोनी को न्यूजीलैंड के खिलाफ अंतिम सीरीज में बैटिंग में उच्च क्रम में खेलने का मौका मिला था. अब कोहली को यह तय करना है कि धोनी को अब भी वही आजादी इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में मिलेगी या नहीं.
अब जब धोनी ने कोहली-कुंबले की जोड़ी को टेस्ट मैच में अपना रंग जमाते देख लिया है, ऐसे में धोनी को यही समय सबसे उचित लगा होगा कि अब सीमित ओवरों में भी कोहली के लिए कप्तानी की जगह खाली कर दी जाए. ऐसा करते हुए धोनी ने शायद यह भी सोचा होगा कि अभी कोहली के लिए माहौल भी सकारात्मक है और ऐसे में उनके लिए सभी फॉर्मेट की कप्तानी की जिम्मेदारी उठाने के लिए मानसिक रूप से तैयार होना आसान होगा.
अपने इस फैसले से धोनी एक बार फिर देश में क्रिकेट के चाहने वालों लोगों की सामूहिक चेतना में क्रिकेट को केंद्र में ले आए हैं. धोनी के इस निर्णय ने अब सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के असर को पीछे धकेल दिया है जिसके अंतर्गत कोर्ट ने बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष और सचिव को हटा दिया था और क्रिकेट के प्रशासन में सफाई का आदेश दिया था.
धोनी और सिर्फ धोनी ही ऐसा कर सकते थे.
First published: 5 January 2017, 9:06 IST