महाराष्ट्र: निकाय चुनाव में भाजपा का बहिष्कार करने की धमकी के बाद मराठों में फैली दुविधा

महाराष्ट्र में मराठा योद्धाओं का गौरवमय इतिहास रहा है. उनकी वीरता और जज्बे का मुकाबला करने से पहले मुगल सम्राटों को भी दो बार सोचना पड़ता था. उन्होंने बाहरी आक्रांताओं के छक्के छुड़ाए हैं और घुटने टेकने पर मजबूर किया है. मराठा समुदाय में आज भी वही गौरव बरकरार है. आज भी वही एकता है.
इसी एकता के बल पर उन्होंने वर्तमान शासकों को भी अपनी मांगें मंजूर करने पर विवश किया है. कोई हंगामा खड़ा करके नहीं, बल्कि मौन रैलियों के जरिए. मराठा समुदाय में बगावत और जिस तरह से आरक्षण, कोपर्डी गांव (अहमदनगर) की एक नाबालिग लडक़ी के साथ रेप और हत्या के आरोपियों को मृत्यदंड और एससी/एसटी अत्याचार (निरोधक) अधिनियम को खत्मम करने जैसी मांगों के लिए उन्होंने एकता दिखाई, उसे सरकार के माथे पर बल पड़ गए हैं.
मराठा समुदाय की एकता
राज्यभर में मराठा समुदाय की मौन रैलियों को देखते हुए राज्य सरकार ने उनकी मांगों पर तुरंत विचार करने का आश्वासन दिया है. राज्य सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक हलफनामा भी पेश किया, जो मराठा समुदाय के आरक्षण की मांग के समर्थन में था. कोपर्डी गैंग रेप और हत्या के आरोपियों पर अहमदनगर की फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामला दर्ज किया गया. उनकी मांगों को पूरा करने के लिए राज्य सरकार ने हर जरूरी कदम उठाए.
राज्य सरकार की पहल के बावजूद मराठा क्रांति मोर्चा के आयोजकों ने राज्यभर में अपनी मौन रैलियां जारी रखी हैं. पुणे, थाने, सोलापुर में विशाल रैलियों के बाद आयोजकों ने पिछले साल दिसंबर में विधानसभा के शीत सत्र के दौरान नागपुर में मौन रैली आयोजित की. हालांकि यह रैली विफल रही क्योंकि इसमें लोगों की संख्या बहुत कम थी.
यह इसका संकेत था कि जो वृहत आंदोलन जाति के आरक्षण के नाम पर शुरू हुआ था, समुदाय का जोश और साथ कम हो रहा है. शुरू में समुदाय जाति के नाम पर एक हुआ था. आंदोलन का नेतृत्व समुदाय के नेताओं के पास था. आंदोलन को बचाने के लिए राजनीतिक नेताओं तक को इससे दूर रखा गया. मराठा समुदाय के सदस्यों ने, अपने-अपने राजनीतिक दलों से स्वतंत्र, बेमिसाल एकता दिखाते हुए समुदाय के हित में एक दूसरे का हाथ पकड़ा.
दरार
आंदोलन सही दिशा में चल रहा था और नतीजे पक्ष में आने को ही थे कि मराठा समुदाय बंटने लगा. लड़ाई को लगभग जीतने के बाद, मराठे अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टियों और सिद्धांतों में लौट गए. राज्य में भाजपा सरकार पर हावी होने के मौके को हथियाने के लिए. औरंगाबाद के मराठा समुदाय के नेताओं के एक वर्ग ने भाजपा के खिलाफ मुहिम छेड़ी. आरोप था कि पार्टी ने आरक्षण और अन्य मांगों के वादे पूरे नहीं किए.
सोशल मीडिया पर मराठा समुदाय को एक संदेश सर्कुलेट किया गया है कि 21 फरवरी को होने वाले नगर निकाय के चुनावों में वे भाजपा को वोट नहीं दें. मराठा क्रांति मोर्चा की औरंगाबाद इकाई द्वारा सुर्कलेट इस संदेश से पूरा समुदाय असमंजस में है. मराठा क्रांति मोर्चा की केंद्रीय इकाई ने ऐेसे किसी संदेश को सर्कुलेट करने का खंडन किया है. केंद्रीय नेतृत्व की एकता बनाए रखने की कोशिश के बावजूद दरारें नजर आने लगी हैं.
सोशल मीडिया पर संदेश
औरंगाबाद इकाई द्वारा सर्कुलेट संदेश दावा करता है कि औरंगाबाद में आयोजित मराठा मौन रैली के आयोजकों ने भाजपा को वोट नहीं देने का फैसला लिया है. उन्हें शिकायत है कि पार्टी ने समुदाय से किए वादे पूरे नहीं किए. संदेश था, ‘हमने नगर निकाय के चुनावों में भाजपा को वोट नहीं देने का फैसला लिया है क्योंकि पार्टी ने आरक्षण के मुद्दे को सुलझाने का आश्वासन देने के बावजूद लटका दिया.'
'सरकार मांगों को लेकर गंभीर नहीं है, इसके बावजूद कि लाखों लोग सडक़ों पर आए और उन्होंने राज्यभर में अनुशासित और मौन विरोध प्रदर्शन किए. इसके विपरीत भाजपा ने मराठा समुदाय को विभाजित करने की कोशिश की. हमने मराठा समुदाय के मतदाताओं से अपील की है कि वे किसी भी पार्टी को वोट करें, पर भाजपा को नहीं.’ मराठा समुदाय के नेताओं ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने आरक्षण की प्रक्रिया को जल्दी निपटाने के लिए कुछ नहीं किया. बल्कि पूर्व सरकार द्वारा बनाई नारायण राव कमेटी के काम को कमजोर करने में उसका बड़ा हाथ है.
मराठा समुदाय नासमझ नहीं
महाराष्ट्र में जिन मराठा नेताओं ने आंदोलन की पहल की थी, वे इस संदेश को लेकर नाराज हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे समुदाय को शांत कैसे करें. राज्य में भाजपा-विरोधी संदेश जंगल में आग की तरह फैलाया गया है. मराठा क्रांति मोर्चा के मीडिया कोओर्डिनेटर भैया पाटिल ने कहा, ‘जो भी फैलाया गया है, वह मराठा क्रांति मोर्चा का अधिकारिक बयान नहीं है. यह औरंगाबाद की स्थानीय इकाई के कुछ लोगों का फैसला है. हमारा इससे कोई सरोकार नहीं है.’
समुदाय में स्पष्ट विभाजन के बाद भी पाटिल ने दावा किया कि वे एक हैं और मांगों को लेकर उनके बीच कोई भ्रांति नहीं है. राज्यभर में मौन रैलियों की पहल करने वाली मूल समिति के सदस्य, सकल मराठा समाज के किशोर शिटोले ने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग समुदाय को बहका रहे हैं. इन लोगों के उन राजनीतिक दलों से संबंध हैं, जो भाजपा के विरोध में हैं. यह चुनाव का समय है और उनके पास कुछ और काम नहीं है.
मराठा समुदाय के राजनीतिक एक्टिविस्ट का एक वर्ग स्थितियों का राजनीतिक लाभ उठा रहे हैं. पर मराठा समुदाय अपने फैसले लेने में खुद समझदार है. अब जब लडाई लगभग जीत चुके हैं, सिर्फ औपचारिकताएं बाकी हैं, कुछ लोग अपने राजनीतिक मास्टर्स के पास लौट रहे हैं. बदकिस्मती से इससे समुदाय का नुकसान हो रहा है.’ भले ही ये लोग कितनी ही कोशिश करें, वे समुदाय को राजनीतिक मोर्चे पर विरुद्ध सलाह देने में सफल नहीं होंगे.
First published: 20 February 2017, 8:01 IST