रोहित वेमुला और उना कांड: दलितों का संघर्ष अभी पूरा होना बाक़ी है

- डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर मुंबई के शिवाजी पार्क में इकट्ठा हज़ारों दलितों में रोहित वेमुला और उना कांड को लेकर सबसे ज़्यादा गुस्सा था.
- वहीं कुछ दलितों का कहना है कि उनकी तरक्की उच्च जाति के लोगों को रास नहीं आ रही है, इसलिए उनपर हमले हो रहे हैं.
आशा मनोवरे का दो साल का बेटा लगातार रो रहा है. उन्हें कल रात खुले आसमान के नीचे सोना पड़ा. अपने घर से दूर, अनजान लोगों के बीच खुद को पाकर वह घबरा गया है. आशा उन सैकड़ों-हज़ारों लोगों में से हैं, जो डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 60वीं पुण्यतिथि पर मुंबई आई हैं. आशा मुंबई से 850 किलोमीटर दूर नागपुर में रहती हैं. वह अपने परिवार के 10 सदस्यों के साथ संविधान निर्माता को श्रद्धांजलि देने आई हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए यह याद रखना जरूरी है कि बाबा साहेब ने किसके लिए लड़ाई लड़ी. पर उना और रोहित वेमुला जैसी घटनाएं हमें चेताती हैं कि अभी लड़ाई पूरी नहीं हुई है.’
दादर में शिवाजी पार्क के मैदान में लाखों की संख्या में लोग जमा होने लगे हैं, जहां से अंबेडकर का स्मारक महज कुछ सौ मीटर दूरी पर है. 28 एकड़ में फैले शिवाजी पार्क में लोगों की रेलम-पेल बनी हुई है. वे पुण्यतिथि से कुछ दिन पहले से यहां आने लगे थे. नागरिक संस्थाओं ने उनके लिए खाने-पीने और सार्वजनिक शौचालयों की व्यवस्था की है.
मैदान पर एक भव्य आयताकार पांडाल कसा हुआ है, जिसके नीचे कुछ जनों ने रात बिताई. अन्य ने मैदान परिसर में ही खुले आसमान के नीचे रात काटी. कुल मिलाकर वही दृश्य रहा, जो पिछले कुछ सालों से रहता आया है.
दलित और शिवाजी पार्क
शिवाजी पार्क में इकट्ठा हुए लोगों के मन में गहरे उत्पीड़न का भाव है. लगता है कि रोहित वेमुला की आत्महत्या और उना आंदोलन ने अधिकांश को यहां आने के लिए प्रेरित किया है. दर्जनों लोगों ने महाराष्ट्र में स्थानीय मराठा समुदाय के विरोध को याद किया, जिसमें दलितों का विरोध साफ झलक रहा था.
इसके साथ ही गोमांस प्रतिबंध और कुछ समय के लिए आईआईटी मद्रास में अंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल में दलितों की पढ़ाई पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध और हिंदुत्व के बढ़ते प्रभाव ने भारत के अधिकांश वंचितों के मन में असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है. शिवाजी पार्क में इकट्ठा हुए लोग शायद यही सब कहने के लिए इकट्ठा हुए हैं.
औरंगाबाद से आए साइंस के तीसरे साल के स्टूडेंट सावंत ने कहा कि वे बढ़ती असहिष्णुता के मद्देनजर पहली बार अंबेडकर की पुण्यतिथि पर आए हैं. उन्होंने कहा, ‘दलितों का दमन वर्षों से हो रहा है, पर पिछले दो सालों में यह यातना और बढ़ी है. हिंदुत्व ने अल्पसंख्यकों को निशाना बना रखा है. उनके मनों में हमारे लिए जन्मजात नफरत है. और यह उना आंदोलन और रोहित वेमुला की घटनाओं से साफ नजर आता है. ज्यादातर लोगों ने गोमांस की आड़ में राजनीति करते हुए निम्न जातियों को अपना निशाना बनाया है. उना में वे अपना काम कर रहे थे. जिस तरह से पूरे देश में हमले हुए, गोमांस पर प्रतिबंध से लगता है कि यह दलितों और वंचितों को निशाना बनाने का बहाना है. हो सकता है, इसके लिए प्रधानमंत्री सीधे जिम्मेदार नहीं हों, पर उनकी पार्टी के लोगों का क्या करें?’
हमले की वजह दलितों की तरक्की?
हुबली से एक ड्राइवर प्रकाश कालेक अवनार (39) ने शिवाजी पार्क के वॉकिंग ट्रैक में लगी एक बेंच पर बैठते हुए कहा कि जिस तरह से दलित समुदाय के स्टुडेंट्स कुछ सालों में आगे बढ़े हैं वह उच्च जाति के लोगों को रास नहीं आया है. ‘रोहित वेमूला को इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि उन्होंने मुश्किल प्रश्न पूछे.’
ड्राइवर के हाथ में एक थैला था. उसके साथ उसके गांव से दस लोग आए हैं. वे आगे कहते हैं, ‘लोग उसकी खूबियों को पचा नहीं सके क्योंकि वह एक वर्ग विशेष से था. ज्यादातर क्षेत्रों पर उच्च जाति का वर्चस्व है और हमारे बच्चों की पढ़ाई से उसमें धीरे-धीरे बदलाव नजर आ रहा है.’
प्रकाश ने आरएसएस समर्थित तत्वों के बारे में कहा, ‘आरएसएस के आरक्षण संबंधी विचारों से सभी वाकिफ हैं, उनकी सरकार सत्ता में होने से वे अपनी प्रभुता को एबीवीपी सहित अपनी विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से बनाए रखना चाहते हैं.’
पिछले 2-3 दिनों में भारी भीड़ हो जाने से पुलिस ने शिवाजी पार्क जाने वाली गलियों की घेराबंदी कर दी. हर साल की तरह इस बार भी दादर के हलचल वाले इलाके में भीड़ और ट्रैफिक को संभालना पुलिस वालों के लिए दुष्कर काम हो गया है.
अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद ये लोग उसी रात या अगले दिन सवेरे अपने-अपने राज्य या जिलों में लौट जाएंगे, वापस उसी उत्साह के साथ अगले साल लौटने के लिए.
उस्मानाबाद से आए दीपक सावंत (39) 12 लोगों के साथ टेंपो में पिछली रात अए, जिनमें उनकी पत्नी और दोस्त भी थे. वे पिछले 20 साल से यहां आ रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘बाबासाहेब को गुजरे 60 साल हो गए हैं, पर क्या हमें सामाजिक समानता मिली, जिसका उन्होंने सपना देखा था? हम हर साल यहां क्यों आ रहे हैं. जातिवाद कहीं नहीं गया, जिसकी वजह से हम अपना काम छोड़ते हैं और यहां समाजिक भेदभाव की चर्चा करने आते हैं. यहां इकट्ठा होकर हम हमारे दमन और अत्याचार का विरोध करते हैं. और जब तक जाति व्यवस्था रहेगी, लोग यहां मिलते रहेंगे और अपनी पीड़ा बताते रहेंगे.’
First published: 7 December 2016, 8:01 IST